न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
पूरे देश में बिजली संकट गहरा है, लेकिन इसका समाधान कब निकलेगा यह सवाल हर किसी के मन में है। बिजली की कमी के कारण आम जीवन बुरी तरह प्रभावित है। बिजली संकट के साथ कई समस्याएं जुड़ी होती है, बिजली नहीं रहने के कारण पानी की समस्या तथा दूसरी घरेलू समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं। इस समस्याओं से घरेलू महिलाओं को ज्यादा दो-चार होना पड़ता है, क्योंकि घरों में ज्यादा समय उन्हें ही बिताना होता है।
देश में बिजली का जो भी संकट है उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक कोयला है। पूरे देश से ऊर्जा संयंत्रों से खबरें आ रही हैं कि उनके पास कोयले की भारी किल्लत हो गयी है, लेकिन केन्द्र सरकार मानती है कि देश में कोयले की कमी नहीं है। तो फिर आखिर यह समस्या क्यों है? कोल इंडिया के स्वतंत्र निदेशक, सह असम अनुसूचित जनजाति भाजपा के सह प्रभारी और रिटायर्ड आईपीएस अरुण उरांव ने ‘समाचार प्लस’ से बातचीत में स्थिति को स्पष्ट किया कि देश में कोयले की कमी नहीं है, उत्पादन भी इस समय रिकॉर्ड स्तर पर है, जो भी दिक्कत है वह स्थानीय स्तर पर है जिसके कारण खदानों से कोयला बिजली प्लांट तक समय पर नहीं पहुंच पा रहा है। भारतीय रेलवे भी रिकॉर्ड कोयला रैक का उठाव कर रही है, लेकिन ऊर्जा कंपनियों तक कोयला पहुंचने के बाद उसे स्टॉक करने में वे विलम्ब कर रही हैं, जिसके कारण रैक वहीं पर फंसा रह जा रहा है। इसका असर दूसरे स्थानों पर कोयला पहुंचने पर पड़ रहा है।
अरुण उरांव ने यह भी कहा कि देश में कोयले की कमी भले ही नहीं है, लेकिन सरकार फिर भी कोयले के प्रोडक्शन को बढ़ाने के उपाय लगातार कर रही है। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी झारखंड दौरे पर आये थे। उन्होंने सीसीएस और ईसीएल के अधिकारियों से बात की और कंपनियों के द्वारा किये जा रहे कार्यों की सराहना की। इससे समझा जा सकता है कि झारखंड में कोयले के उत्पादन की स्थिति सही है।
अरुण उरांव ने बताया कि कोयला ढुलाई के लिए इस बार सरकार ने जो कदम उठाया है वैसा इससे पहले कभी नहीं उठाया गया था। ऊर्जा संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने के लिए रैक की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की गयी है। इतना ही नहीं, रैक को ऊर्जा संयत्रों तक पहुंचने में दिक्कत नहीं हो इसके लिए 657 पैसेंजर ट्रेनों को एक महीने के लिए निलंबित भी कर दिया गया है। ताकि कोयला रैक बिना किसी समस्या के ऊर्जा संयंत्रों तक पहुंच सकें।
पूरे देश में बिजली की डिमांड रिकॉर्ड स्तर पर क्यों पहुंच गयी है, इस सवाल पर अरुण उरांव ने कहा कि बिजली की यह मांग अचानक नहीं है। कोरोना काल में दो साल देश की इंडस्ट्री पर ताले लगे हुए थे। इंडस्ट्री के ताले जब खुले तब उनके सामने दो साल के नुकसान की भरपायी का दबाव था। कोरोना का प्रकोप कम होने से उत्पादन बढ़ाने की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गयी। खास कर अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के कारण यह स्पर्द्धा और बढ़ी है।
कोयला जब झारखंड में पर्याप्त है तो फिर झारखंड में ही बिजली की कमी क्यों है जबकि कंपनियां झारखंड से ही कोयला खरीदती हैं, इसको लेकर राजनीतिक पार्टियां भी सवाल खड़े कर रही है, इस सवाल पर अरुण उरांव ने कहा कि हर राज्य को बिजली ऊर्जा कंपनियों से खरीदनी पड़ती हैं, पैसा बकाया हो जाने के बाद ये कंपनियां भी बिजली की आपूर्ति रोक देती हैं। झारखंड के साथ भी ऐसा ही है।
यह भी पढ़ें: यात्रिगण कृपया ध्यान दें! भारतीय रेलवे अभी विद्युत गृहों तक कोयला पहुंचाने में व्यस्त है, इसलिए कुछ दिन बाद यात्रा करें!
यह भी पढ़ें: Electricity Crisis: ‘पीक आवर’ में उच्चतम स्तर पर पहुंची बिजली की मांग