चतुर्थ कूष्मांडा
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।
मां आदि शक्ति दुर्गा का चतुर्थ रूप कूष्माण्डा के नाम से सुविख्यात है। यह सम्पूर्ण जगत की जननी हैं। यह सृष्टि की सृजन कर्ता आदि शक्ति हैं। जिनके संदर्भ में कहा जाता है, कि यह त्रिविध ताप से युक्त संसार को अपने उदर में समाहित किए हुए, ऐसी मां जगत जननी आदि शक्ति कहलाती हैं। यह विश्व के समस्त प्राणियों पर दया करने वाली हैं। मां दिव्य रूप के साथ अष्टभुजाओं से युक्त है और जगत कल्याण के लिए अपने दाहिने हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प से शुशोभित हो रहे है। माता के बाएं हांथों में अमृतपूर्ण कलश, माला, गदा, चक्र को लोक हितार्थ धारण कर रखा है। यह सिंहारूढ़ है, तथा अपने दिव्य तेज से दिशाओं व विदिशाओं को प्रकाशित कर रही हैं। सभी चल, अचल सजीवों में जो भी प्रकाश व आभा है, वह इनके प्रकाश से ही हैं। मां की कृपा से भक्तों के रोग, दु:ख, भय, चिंताएं दूर होती है तथा प्रत्यक्ष व परोक्ष शत्रु भी कुछ नही बिगाड़ सकते हैं।
मां कूष्माण्डा सृष्टि के सृजन हेतु चतुर्थ रूप में प्रकट हुई, जिनके उदर में सम्पूर्ण संसार समाहित है। आदि काल मे घने अंधकार से घिरे हुए संसार में प्रकाश का आभाव होने से संसारिक व जैविक हलचल ठप्प सी हो गई थी। किन्तु मां की प्रतिमा ऐसे प्रतिभासित हो रही थी कि जैसे अनेको सूर्य चमक रहे हो। मां के चेहरे के दिव्य प्रकाश से सम्पूर्ण सृष्टि में प्रकाश व रोशिनी का प्रादुर्भाव हुआ। जैसे किसी किसी पुष्प में अंडे का निर्माण होता है। वैसे ही देवी की कुसुम के समान हंसी मात्र से यह संसार हंसने लगा, अर्थात इस संसार का जन्म हुआ। जिसके कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। सब देशों में समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करने वाली देवी अपने उत्पन्न किए हुए जगत के जीवों के शुभाशुभ कर्मो को विशेष रूप से देखती हैं और उनके अनुरूप फल की व्यवस्था करने के लिए समस्त विभूतियों को धारण करती है। इतना ही नहीं, यह ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञान के अंधकार को नष्ट कर देती है। जिससे अविद्यामय अंधकार स्वत: नष्ट हो जाता है। इन मां रूप बड़ा ही दिव्य है। जो संसार की माता ही नहीं, बल्कि ज्ञान, धन, बुद्धि, प्रकाश, बल की दाता परम कल्याणी देवी हैं।