भारत में जाति जनगणना (Caste Census) कराने का फैसला मोदी सरकार ने कर लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब जनगणना के साथ होने वाली जातिवार गणना में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों की जातियों की गणना की जाएगी। सरकार के जातिगत जनगणना के फैसले से एक तरफ हिंदू जातियों का आकलन तो होगा ही, वहीं पहली बार मुस्लिम समुदाय की जातियों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति के सही आंकड़ें सामने आएंगे।
मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति पर लगेगा लगाम!
पसमांदा मुसलमान दरअसल वो मुस्लिम हैं, जो हिंदू समाज के दलित और पिछड़े वर्ग से आते थे और इन लोगों ने धर्मांतरण कर इस्लाम धर्म अपना लिया था। मुस्लिम समाज में पसमांदा मुस्लिम आज भी पिछड़े हुए हैं, इनको किसी भी प्रकार का सामाजिक, राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। इनकी जातिगत आधार पर गणना नहीं होने से इनकी आवाज अब भी अनसुनी कर दी जाती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। जानकारी के मुताबिक पसमांदा मुसलमानों को ओबीसी की कैटेगरी में रखा जा सकता है। वहीं एकजुट मुस्लिम वोट बैंक की अवधारणा को खत्म करने की दिशा में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों की जातियों की गणना को अहम माना जा रहा है। अभी तक जनगणना के साथ मुस्लिमों की गणना एक धार्मिक समूह के रूप में की जाती थी, वह छिन्न – भिन्न हो सकती है।
मुसलमानों में भी हैं अगड़े, पिछड़े और दलित जातियां
गौरतलब है कि मुसलमानों में भी अगड़े, पिछड़े और दलित जातियां हैं। इनमें शामिल 36 जातियों को इसी आधार पर ओबीसी आरक्षण का फायदा मिलता है। पसमांदा जो पिछड़े मुसलमान में हैं, उनमें चूड़ीहार, रंगरेज, मछुआरा, पासी, जुलाहे, कुंजड़े, धुनिया, कसाई, फकीर, मेहतर, धोबी, मनिहार, नाई जैसी कई जातियां आती हैं।
धार्मिक आधार पर संविधान में आरक्षण की अनुमति नहीं
मुस्लिमों की जाति पूछने (Caste Census) के पीछे के उद्देश्य की बात करें तो आंकड़ों से पता चल सकेगा कि पसमांदा जो पूरे मुस्लिमों में 85 प्रतिशत हैं और ये विकास में कितने पिछड़े हुए हैं। साथ ही मुस्लिमों की गणना एक धार्मिक समूह के रूप में की जाती थी, वह अब नहीं होगी। हालांकि, पूरे मुस्लिम समाज के आरक्षण की मांग को मंजूर करना असंभव है, क्योंकि धार्मिक आधार पर भारत के संविधान में आरक्षण की अनुमति नहीं है। अगर अब मुस्लिम समुदाय में भी जातिगत जनगणना हो जाएगी तो उन आंकड़ों के आधार पर समाज के पसमांदा मुसलमान भी अपने संख्या के आधार पर सामाजिक, राजनीतिक प्रतिनिधित्व मांग कर सकते हैं।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस, झारखंड- बिहार
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