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May Day 2023: रस्म अदायगी तक सिमट कर रह गया श्रमिक दिवस का दायरा! !

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May Day 2023:प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के कई हिस्सों में 1 मई को मई दिवस (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ (International Workers’ Day) के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के सभी कामगारों, श्रमिकों को समर्पित यह दिवस श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन से अवगत कराता है। मजदूर दिवस (May Day)का मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों के  लिए कल्याणकारी कदम उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करना होता है। देश के मजदूरों को उनके अधिकार के प्रति जागरूक कर उनकी बदहाली दूर करने के लिए प्रयास का दिन है।

सुविधाओं की बाट जोह रहा मजदूर 

मजदूरों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए बीमा, पेंशन, नि:शुल्क साइकिल वितरण समेत सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन इनका लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता है। वजह है अशिक्षा। भारत का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी आस लगाए बैठा है। हमारे देश में मजदूरों का शोषण आज भी जारी है। समय बीतने के साथ मजदूर दिवस को लेकर श्रमिक वर्ग में आज भी उदासीनता चाई हुई है। बढ़ती महंगाई और उसपर से पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ ने भी मजदूरों के इस श्रमिक दिवस के प्रति पनपे उत्साह को भंग कर दिया है, ऐसे में अब सवाल उठाए जा रहे हैं कि मजदूर दिवस इनके लिए के सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह गया है? जैसा कि आलोचक सवाल उठाते रहे हैं। नहीं,  इस नव उदारीकरण के वर्तमान दौर में  यदि देखा जाए तो लगातार इसकी प्रासंगिकता भी बढती ही जा रही है। मजदूर आने अधिकार के प्रति जागरूक भी हुए हैं। कोरोना महामारी के दौरान सबसे ज्यादा किसी की आजीविका पर गाज गिरा थी तो वह मजदूर वर्ग ही था ।फिर भी लॉकडाउन के दौरान जब देश के लाखों प्रवासी परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए तब भी कारपोरेट घरानों के मुनाफे सैकड़ों गुना की दर से बढ़ रहे थे।

मजदूरों का शहर की तरफ बढ़ता पलायन

रोजगार के अभाव में मजदूर महानगरों की ओर पलायन करने को मजबूर है। गांव में रोजगार के अभाव के कारण गरीब मजदूर वर्ग के लोग पलायन कर रहे हैं। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को गांवों में काम नहीं मिल रहा है। मजदूरों को गांव से पलायन करना पड़ रहा है। ग्रामीण मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिल सके। इस उद्देश्य से मनरेगा कानून बनाया था। जिसके तहत वर्ष में कम से कम 100 दिन गांव के मजदूरों को रोजगार दिया जाना अनिवार्य किया था। काम नहीं देने की दिशा में बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान भी था। ग्रामीण अंचलों से प्रतिदिन सैकड़ों मजदूर अपने घरों में ताला लगाकर रोजी रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। हमारे देश का मजदूर वर्ग आज भी अत्यंत ही दयनीय स्थिति में रह रहा है। उनको न तो नियोक्ता द्वारा पूरी पारिश्रमिक ही दी जाती है और ना ही अन्य वांछित सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती है। आर्थिक कमजोरी के चलते शहरों में रहने वाले मजदूर वर्ग जैसे तैसे कर वहां अपना गुजर-बसर करते हैं।

मजदूरों का जारी है शोषण

आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है।  मजदूरों से आज भी फैक्ट्रियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है, लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है। जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्च वहन करना मुश्किल हो जाता है।

बच्चे शिक्षा से वचित

गरीब मजदूर परिवार के लोग अपने बच्चों को साथ लेकर जा रहे हैं। मजदूरों के पलायन के कारण उनके बच्चे स्कूल शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों को भोजन उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था है। परन्तु जब गरीब मजदूर परिवार के सभी लोग बाहर जा रहे हैं तब बच्चों को घर पर कैसे छोड़ सकते हैं। घर पर केवल वृद्ध लोग रह जाते हैं जो काम करने के लायक नहीं है। ऐसे मजदूर अपने बच्चो को कैसे घर पर छोड़ सकते हैं।

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दूसरों के लिए बड़े बड़े आशियाने बनाने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नहीं 

अमेरिका में 1886 में जब मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे करने के लिए हड़ताल की जा रही थी। इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो की हेय मार्केट में बम फोड़ दिया, इसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं, जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गयी। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई (May Day)को मनाया जाता है। लेकिन विडम्बना ये भी है कि आज भी श्रमिकों से12-12 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। दूसरों के लिए  बड़े बड़े आशियाने बनाने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नही हो पाता है।

सकारात्मक सुधार की आवश्यकता 

मज़दूर दिवस (May Day) एक विशेष अवसर है जब दुनिया भर में लोग मज़दूर वर्ग की सच्ची भावना और मज़दूर आंदोलन का जश्न मनाते हैं। यह वह दिन है दुनिया भर के कार्यकर्त्ता एकजुट होते हैं और अपनी एकता का प्रदर्शन करते हैं जो यह दर्शाता है कि वे समाज के मज़दूर वर्ग के लिये सकारात्मक सुधार लाने हेतु किस प्रकार प्रभावी ढंग से संघर्ष कर सकते हैं। बीते दिनों देश में ऐसी कई घटनाएँ सामने आईं हैं, जिनमें देश के सामान्य वर्ग विशेष रूप से मज़दूर वर्ग के अधिकारों का हनन देखा गया। गौरतलब है कि हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार से महामारी के दौरान देश के संवेदनशील वर्ग के अधिकारों की रक्षा करने का अनुरोध किया था। सरकार मज़दूर वर्ग के मुद्दों को सुनें और नीति निर्माण में मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जाए , आज इसकी जरूरत है।

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