Makar Sankranti 2023: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय चौधरी बगान, हरित भवन के सामने हरमू रोड, रांची द्वारा लोहड़ी मकर संक्रान्ति पूर्व दिवस के अवसर पर एक आध्यात्मिक समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा- ‘मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। इस शुभ दिन तिल-खिचड़ी का दान करते हैं। वास्तव में स्थूल परम्पराओं में आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है। सारी मानवता दुःखी अशांत हैं। हर कोई परिवर्तन के इंतजार में हैं। सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। ऐसे समय में विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा शिव कलियुग, सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रह्मा के तंग में आ चुके हैं। जिस प्रकार भक्ति मार्ग में पुरुषोत्तम मास में दान पुण्य आदि का महत्व होता है उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग, जिसमें ज्ञान स्नान करके बुराईओं का दान करने से पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बन सकती है।‘
‘इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं। इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरियता की मिलावट हो चुकी है अर्थात उसके संस्कार खिचडी हो चुके हैं जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोड़कर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है।‘
‘परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों की भी हमें तिलांजलि देनी है। जैसे उस गंगा में भाव – कुभाव से जोर जबरदस्ती से एक दो को नहलाकर खुश होते हैं और शुभ मानते हैं। इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा में नहलाकर मुक्ति जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना है। जैसे जब नई फसल आती है तो सभी खुशियां मनाते हैं। उसी प्रकार वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती हैं।‘
‘बुराइयों का त्याग करने से फसल कटाई का समय देशी मास के हिसाब से पौष महीने के अंतिम दिन तथा अंग्रेजी महीने के 12,13 एवं 14 जनवरी को आता है। इस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है अर्थात् एक दशा से दूसरी दशा में जाने का समय। यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत, सतयुग के आरंभ में घटता है। इस संक्रमण काल में ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं। वे परमधाम छोड़ कर साकार वतन में अवतरित होते हैं। संसार में अनेक क्रांतियां हुई। हर क्रांति के पीछे उद्देश्य परिवर्तन रहा है। हथियारों के बल पर जो क्रांतियां हुईं उनसे आंशिक परिवर्तन हुआ, किन्तु सम्पूर्ण परिवर्तन को आज मनुष्य तरस रहा है।‘
‘सतयुग में खुशी का आधार अभी का संस्कार परिवर्तन है। इस क्रांति के बाद सृष्टि पर कोई क्रांति नहीं हुई। संक्रांति का त्योहार संगमयुग पर हुई उस महान क्रांति की याद में मनाया जाता है। यदि इस पर्व को निम्नलिखित विधि द्वारा मनाएं तो न केवल हमें सच्चे सुख की प्राप्ति होगी, बल्कि हम परमात्मा दुआओं के भी अधिकारी बनेंगे। स्नान, ब्रह्म मुहूर्त में उठ स्नान, ज्ञान स्नान का यादगार है।‘
‘तिल खाना, तिल खिलाना, दान करने का भी रहस्य है। वास्तव में छोटी चीज की तुलना तिल से की गई है। आत्मा भी अति सूक्ष्म है। आर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है। पतंग उड़ाना-आत्मा हल्की तो उड़ने लगती है देहभान वाला उड़ नहीं सकता है जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर कर सकता है।‘
यह भी पढ़ें: PM मोदी ने दुनिया में सबसे लंबा जलमार्ग तय करने वाले MV Ganga Vilas Cruise को दिखाई हरी झंडी
Makar Sankranti 2023: