झारखंड के गुमला से अजित सोनी की रिपोर्ट
आज देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है। 23 साल पहले 26 जुलाई 1999 को हमारी सेना ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को परास्त किया था। हालांकि इस विजयगाथा को लिखने में सैकड़ों जवानों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी। झारखंड के गुमला जिले के तीन लाल ने अपने लहू से वीरता की अमिट कहानी लिखी है। लोगों का कहना है कि गुमला के इन तीन बेटों को देश कभी भुला नहीं सकता। इनके शौर्य को देश नमन करता है।
जॉन अगस्तुस एक्का
रायडीह प्रखंड के परसा तेलेया गांव के रहने वाले जॉन अगस्तुस एक्का का तिरंगा में लिपटा शव जब गांव पहुंचा था, तो पूरा इलाके में गर्व और गम का माहौल था। उस पल को याद कर शहीद की पत्नी कहती हैं कि तब मेरे दोनों बेटे छोटे थे, जिसकी चिंता मुझे सता रही थी। अगस्तुस देश के लिए शहीद हुए, पर परिवार को जो सुविधा मिलनी चाहिए थी, वह आज भी नहीं मिली है। परिवार आज भी सेना व सरकार से मिलने वाली सुविधा से महरूम है।
शहीद की पत्नी ने बताया कि अगस्तुस लांस नायक से हवलदार रैंक तक गये थे। इस दौरान उन्हें चार मेडल मिले थे. उनका सपना दोनों बेटों को फौज में बड़ा अधिकारी बनाने का था, जो अब अधूरा रह गया।
दरअसल शहीद एक्का की पत्नी के आधारकार्ड में टाइटल लकड़ा लिखा हुआ है। इस वजह से उन्हें मार्च 2018 से पेंशन नहीं मिल रही है.।सरकार ने जमीन- घर देने का वादा किया, वो भी नहीं मिला है।
बिरसा उरांव
सिसई प्रखंड के जतराटोली शहिजाना के बेर्री गांव के रहने वाले शहीद बिरसा उरांव कारगिल युद्ध में 2 सितंबर, 1999 को शहीद हुए थे। शहीद की पत्नी मिला उरांव ने बताया कि बिरसा उरांव हवलदार के पद पर बिहार रेजिमेंट में थे. यहां बता दें कि सिसई प्रखंड झारखंड के गुमला जिले में आता है।
शहीद बिरसा उरांव की दो संतानें हैं। बड़ी बेटी पूजा विभूति उरांव वर्ष 2019 में दारोगा के पद पर बहाल हुई है. वर्तमान में गढ़वा में पोस्टेड है. वहीं बेटा चंदन उरांव रांची में पढ़ रहा है. शहीद को छह पुरस्कार मिले थे।
सिसई प्रखंड के बरी जतराटोली निवासी शहीद बिरसा उरांव की शहादत पर परिवार को फक्र है। शहीद हवलदार बिरसा उरांव फर्स्ट बटालियन बिहार यूनिट के जवान थे। उन्हें उनकी वीरता के लिए कई सम्मान मिले। नगालैंड सम्मान सेवा, सैनिक सुरक्षा मेडल, संयुक्त राष्ट्र संघ से ओवरसीज मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से वह सम्मानित हुए।
भतीजा अरविंद उरांव कहते हैं कि बड़े पापा भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके शौर्य की गाथा पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। उन्हीं से प्रेरणा लेकर हम भी सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
करीबी रिश्तेदार निर्मल उरांव कहते हैं कि तब हमलोगों को काफी गौरव महसूस होता है, जब बड़े मंचों से शहीद बिरसा उरांव की शहादत को नमन किया जाता है।
विश्राम मुंडा
शहीद जॉन अगस्तुस एक्का और शहीद बिरसा उरांव की तरह ही विश्राम मुंडा भी देश की खातिर कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। आज भी इन तीनों शहीदों का नाम जिले में सम्मान के साथ लिया जाता है।
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