न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई ने उदाहरण पेश किया है। चंडीगढ़ के एक मामले की न्यायमूर्ति गवई सुनवाई कर रहे थे, लेकिन इस फैसला आने में दो महीने की देरी हो गयी तो उन्होंने इस देरी के लिए माफी मांगी है। न्यायपालिका के इतिहास में सम्भवतः पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी न्यायायाधीश ने न्याय में हुई देरी के लिए माफी मांगी हो। हालांकि न्यायमूर्ति गवई ने में देरी का कारण पक्षकारों को भी बताया।
मामला चंडीगढ़ शहर से जुड़ा हुआ है, जहां आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में बदलने के बढ़ रहे कल्चर पर न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश फैसला सुना रहे थे। न्यायाधीशों ने इस मामले में 3 नवंबर, 2022 को ही फैसला सुरक्षित रख लिया था। उसके बाद फैसला अब जाकर सुनाया है। इस दो महीने की हुई देरी के लिए ही न्यायमूर्ति बीआर गवई ने माफी मांगी है। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि हमें विभिन्न कानूनों के सभी प्रावधानों और उनके तहत घोषित किए गए नियमों पर विचार करना होता है। इस कारण फैसला सुनाने में यह देरी हुई है।
चंडीगढ़ मामले में क्या हुआ फैसला?
चंडीगढ़ मामले में न्यायमूर्ति गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता अव्यवस्थित विकास के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान दें और यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए, ताकि विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।
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