न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
झारखंड की राजनीति जिस दिशा में चल रही है, विधानसभा का एक नया रूप देखने को मिल सकता है। और अगर ऐसा हो जाये तो इसमें अचरज भी नहीं होना चाहिए। सारा खेल कुर्सी और सत्ता बचाने का है। झामुमो की नैया और सरकार बचाने की एक मात्र उम्मीद शिबू सोरेन ही हैं। झारखंड की राजनीति की जो ग्रह-दशा चल रही है, उसमें सबसे ज्यादा और बड़ी संभावना शिबू सोरेन के एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने की है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का एक कदम इस समय कोर्ट में है। विधायकी पर खतरा मंडरा रहा है। खुद को कॉन्फिडेंट दिखाने का प्रयास भले कर रहे हैं, लेकिन अशांत भी हैं। दिल में एक ही इच्छा है, खुद भले ही सत्ता से बाहर हो जायें लेकिन झामुमो सत्ता से बाहर नहीं होनी चाहिए और बागडोर सोरेन परिवार के हाथ में ही रहे। खनन लीज और शेल कंपनी मामले में मुख्यमंत्री बुरी तरह फंसे हुए हैं। कुर्सी डगमगाती नजर आ रही है। अपनी कुर्सी बचे यह चिंता तो है ही, अगर न बचे तो अपनी पार्टी की सरकार चलती रहनी चाहिए, इस उधेड़बुन में भी हैं। कुर्सी बचाने के लिए वह विशेषज्ञों से लगातार राय भी ले रहे हैं। वह सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी गये हैं ताकि झारखंड हाई कोर्ट में चल केस से छुटकारा पाया जा सके। पर साथ ही साथ उत्तराधिकारी पर भी पार्टी में मंथन चल रहा है। पर एक बात और, शिबू सोरेन पर बात बनती है तो क्या उनके लिए हेमंत का ‘उत्तराधिकारी’ शब्द उचित होगा? शायद उन्हें उनका ‘पूर्वाधिकारी’ कहना उचित होगा।
हेमंत और बसंत दोनों का संकट
दुमका विधायक बसंत सोरेन भी खनन लीज मामले में फंसे हुए हैं। हेमंत सोरेन की तरह उनकी भी विधायकी पर खतरा है। ऐसे में हेमंत सोरेन की विधायकी जाने के बाद बसंत सोरेन के सीएम बनने की गुंजाइश नहीं बन रही। गुंजाइश अगर बन भी गयी तो राजनीतिक परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं हो पायेंगी। हेमंत और शिबू के बिना पार्टी के खुद संकट में आ जाने का खतरा है।
सीता सोरेन पर नहीं लगा सकते दांव?
हेमंत सोरेन अपनी भाभी सीता सोरेन पर दांव लगाना नहीं चाहेंगे। सीता सोरेन और उनकी बेटियों ने जिस तरह बागी तेवर दिखाये हैं, हेमंत सोरेन किसी तरह का खतरा मोल नहीं ले सकते। यह उनके राजनीतिक करियर के लिए भी खतरा हो सकता है। सीता सोरेन अगर मुख्यमंत्री बन जाती हैं तो यह हेमंत सोरेन के कुनबे के लिए घातक फैसला बन सकता है। वैसे अभी भले ही सीता सोरेन जांच और कोर्ट के लफड़े में नहीं हैं, फिर भी कई मामलों में सीता सोरेन के पीछे भी जांच एजेंसी लगी हुई है।
शिबू सोरेन ही एकमात्र विकल्प
झामुमो नेताओं भी मानते हैं कि बसंत सोरन हों या सीता सोरेन इन नामों पर झामुमो के अंदर सहमति बन पाना संभव नहीं लगता। तब पार्टी के अंदर बगावत होना तय है। लोबिन हेंब्रम सरीखे कई नेता पहले ही बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। ऐसे में हेमंत सोरेन पार्टी को टूटने का खतरा मोल नहीं ले सकते। तब पार्टी के एक ही विकल्प बच जाता है, वह हैं- दिशोम गुरु शिबू सोरेन।
शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बन जाने से सत्ता की बागडोर सोरेन परिवार के हाथ में ही रहेगी। शिबू के नाम पर पार्टी में सहमति आसानी से बन जायेगी। बागवती तेवर दिखा रहे पार्टी के विधायक भी शांत करेंगे। और सबसे बड़ी बात सहयोगी पार्टी कांग्रेस भी सहजता से उन्हें गठबंधन का नेता स्वीकार करेगी।
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