Jharkhand: श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम मंदिर का उद्घाटन 5 जनवरी को

स्वामी सदानंद जी महाराज विश्व शांति, सर्वधर्म समभाव, राष्ट्रीय एकता के प्रेरणा पुंज

श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी संजय सर्राफ ने कहा है कि 5 जनवरी को पुंदाग रांची में राज्य का सबसे बड़ा श्रीराधा- कृष्ण के मंदिर का उद्घाटन परमहंस भागवत भास्कर डॉ. संत शिरोमणि श्रीश्री 1008 स्वामी सदानंद जी महाराज करेंगे। यह भव्य मंदिर स्वामी सदानंद जी महाराज के अथक प्रयास एवं गुरुजी राधिका दास जी महाराज के आशीर्वाद से 8 वर्षों में बनकर तैयार हुआ है।

श्रीकृष्ण प्रणामी सेवा धाम ट्रस्ट के संस्थापक एवं संरक्षक परम श्रद्धेय स्वामी सदानन्द जी महाराज का जन्म भिवानी जिले के छोटे से गांव जुई कलां में खंडेलवाल ब्राह्मण परिवार में आयुर्वेदाचार्य पिता बजलाल व मामला शिवबाई को कोख से 1 अगस्त, 1945 को हुआ। इनके पिताजी एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे जिनसे उपचार के लिए लगभग 500 गांवों से लोग इलाज करवाने आते थे। स्वामी जी के बचपन का नाम मानु था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही करने के बाद युवावस्था में विद्या ग्रहण करने के पश्चात शिक्षक का दायित्व संभाला।

1962 में उनकी पहली नियुक्ति हिसार जिले के गांव पाबड़ा के सरकारी स्कूल में हुई। इसी दौरान राष्ट्र सेवा की भावना से प्रभावित होकर स्वामी सदानन्द जी देश सेवा के लिए सेना में भर्ती हो गये। देश की सीमा पर दुश्मनों से मातृभूमि की रक्षा करते हुए भारतीय संतों की आदर्श जीवनशैली से प्रभावित होकर संतों की श्रेणी में आने की सोचने लगे। बाल्यावस्था से ही श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर जूई, भिवानी में प्रार्थना सभा में प्रतिदिन भाग लिया करते थे, जहां श्रीकृष्ण प्रणामी पथ में दीक्षित संत राधिकादास जी के “तुम सेवा से पाओगे पार”, इस आदर्श वाक्य से प्रभावित होकर धार्मिक क्षेत्र में पदार्पण किया। अपने गुरु के आदर्शमय जीवन से प्रभावित होकर अपने जीवन को सदा सर्वदा के लिए आध्यात्मिक सेवा एवं जन-कल्याण कार्यों में समर्पित कर दिया। राधिकादास महाराज जी से प्रभावित होकर उनसे मंत्रदीक्षा प्राप्त की तथा उन्होंने शिष्य की प्रतिभा और कर्तव्य निष्ठा आध्यात्मिक लग्न को देखकर अपने गुरू मंगलदास जी महाराज के पास आध्यात्मिक अध्ययन के लिए कालिमपोंग (पश्चिम बंगाल) भेज दिया तथा 1972 में बंसत पंचगी के दिन सिलीगुडी मंदिर में वैराग्यवेश प्रदान करते हुए सदानन्द नामकरण किया एवं गले में तुलसी की माना पहनाकर श्रीमद भागवत कथा करने के लिए आदेश दिया।

तत्पश्चात वह न केवल भारतवर्ष अपितु विदेशों में भी आज तक 2226 श्रीमद् भागवत कथा कर चुके है। वर्ष 1972 में गुरु राधिकादास महाराज जी ने अपने शिष्य के रूप में कर्मनिष्ठा को देखते हुए उनका नामकरण सदानन्द के रूप में किया। स्वामी जी ने 8 हजार निर्धन कन्याओं का विशेष रूप से सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल), रांची (झारखंड), भिवानी, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद (हरियाणा) में सामूहिक विवाह जैसा पुनीत कार्य अपने कर कमलों से पूर्ण किया है। गोवंश सरंक्षण के लिए लगभग 113 गौशालाओं के निर्माण कार्य से 80 हजार बेसहारा गायों व नंदियों को आश्रय देने का पुण्य कार्य किया है। स्वामी जी के तत्वावधान में 1 लाख पौधे रोपित किये जा चुके है।

1 लाख 35 हजार पोलियोग्रस्त रोगियों का निरीक्षण करके 35000 रोगियों का ऑपरेशन करवाया एवं 45000 कैलीपर्स वितरण भी करवाया। भिवानी, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद (हरियाणा), सिलीगुडी, कलकत्ता (पश्चिम बंगाल). रायगढ़ (छतीसगढ़), कानपुर (उत्तरप्रदेश) एवं पटना (बिहार) में बेसहारा महिलाओं के लिए आश्रम बनाकर मानवत्ता की सेवा कर रहे सदानन्द महाराज जी को मानव सेवा का अग्रदूत कहा जाए चो अतिशयोक्ति न होगी।

सैनिक से संत बने स्वामी सदानन्द महाराज जी भारतीय सेना, थैलेसीमिया और कैंसर पीडितो के लिए अब 121 रक्तदान शिविरों के माध्यम से 19500 यूनिट रक्त एकत्रित करके भी मानवता की सेवा कर चुके है। स्वामी जी ने समाज में बेसहारा, मदबुद्धि व्यक्तियों के लिए विभिन्न सदगुरु कृपा अपना घर आश्रमों की स्थापना की और उनके भोजन एवं दवाइयों की व्यवस्था का सदप्रयास भी किया है। उन्होंने नारी शक्ति के उत्थान के लिए विभिन्न प्रशिक्षण केन्द्रों का शुभारम्भ भी किया है। उन्होंने विश्वशांति, सर्वधर्म समभाव, राष्ट्रीय एकता, समरसता, सुसंस्कार निर्माण और सतत जनजागृति के लिए प्रेरणा पुंज का कार्य किया है।

स्वामी जी के सान्निध्य में नैतिक मूल्यों के विकास के लिए विभिन्न आध्यात्मिक केन्द्रों की स्थापना हुई है। प्रधानमन्त्री जी के आह्वान पर स्वामी जी ने भारत को टीबी मुक्त अभियान के तहत 200 मरीजों को गोद लिया और उनका इलाज भी करवाया। कोविड-19 महामारी के दौरान स्वामी जी ने प्रधानमन्त्री राहत कोष, भारत सरकार को 1 करोड 25 लाख 25 हजार 525 रुपये तथा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं पश्चिम बंगाल को कोविड राहत कोष हेतु मुख्यमंत्रियों को 11-11 लाख रुपये का आर्थिक सहयोग दिया।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नेपाल नरेश द्वारा स्वामी जी को प्रबल गोरखा दक्षिणबाहु पुरस्कार से सम्मानित किया गया है तथा गतवर्ष बंसी लाल विश्वविद्यालय, भिवानी (हरियाणा) द्वारा उनके द्वारा किए गए जन-कल्याण कार्यों एवं राष्ट्रनिर्माण में अद्वितीय योगदान को ध्यान में रखकर डॉक्टर की मानद उपाधि से अंलकृत किया गया है। सांस्कृतिक मंच के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम में हरियाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री द्वारा स्वामी सदानन्द जी को मां सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया। साम्प्रदायिक सौहार्द, सामाजिक समरसता एवं राष्ट्रीय एकता के लिए समर्पित संत सदानन्द जी को सर्वधर्म समन्वय भारतीय आदर्श संस्कृति के लिए न केवल भारत में अपितु भूटान, सिंगापुर, हॉगकॉग, अमेरिका व नेपाल आदि देशों में भी सेवा प्रकल्पों को संचालित करने के कारण राष्ट्रीय संत की उपाधि से विभूषित किया जा चुका है।

स्वामी जी के सान्निध्य में बहुत सी जनकल्याणकारी ट्रस्ट कार्य कर रही है, जिनमें स्वामी सदानन्द प्रणागी गौ-सेवा चैरीटेबल ट्रस्ट (रजि.) फतेहाबाद, हरियाणा, श्रीकृष्ण प्रणामी जन-कल्याण ट्रस्ट (रजि.). भिवानी, और स्वामी सदानन्द चैरीटेबल ट्रस्ट (रजि.), दिल्ली सुचारू रूप से चल रही है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

यह भी पढ़ें: Jharkhand: पूर्व राज्यसभा सांसद अजय मारू ने राज्यपाल से मुलाकात कर दीं नववर्ष की शुभकामनाएं