न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध अपने शिखर पर है। वैसे, झारखंड सरकार के इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल में बदलने के फैसले को गलत नहीं कहा जा सकता, लेकिन बात अब आस्था पर आकर टिक गयी है। जब भारत में हर धर्म को अपनी मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करने की इजाजत है तो यह अधिकार जैन समाज को भी है कि वह अपनी मान्यताओं के अनुसार जीयें। जैन समाज का विरोध मात्र इस बात का है कि उस स्थान को, जिसे राज्य सरकार पर्यटन स्थल में बदलना चाहती है, पर्यटकों के आने और उनके क्रिया-कलापों से दूषित होगा। तो उनकी इस बात को समझा जाना चाहिए।
वैसे भी सम्मेद शिखर ऐसा पवित्र स्थल नहीं है जहां पर शुचिता रखने की बात कही जा रही है। मध्य प्रदेश को दो तीर्थस्थलों को पवित्र स्थल घोषित किया गया। जैन तीर्थस्थल कुंडलपुर और बांदकपुर पवित्र स्थल घोषित कर वहां मांस-मदिरा की बिक्री प्रतिबंधित की गयी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या, वृंदावन और मथुरा को भी तीर्थ स्थल घोषित करने जा रहे हैं। इन स्थलों पर भी मांस-मदिरा की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। राजस्थान में भी कई धार्मिक स्थलों में भी मांस-मदिरा का प्रचलन नहीं है। फिर जैन समाज, जो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अहिंसक समुदाय है, फिर उसको उसकी भावनाओं के साथ जीने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए।
जैन समाज अहिंसक समुदाय है तो जाहिर है कि उसका विरोध प्रदर्शन भी अहिंसक ही होगा। सम्मेद शिखर पारसनाथ के मसले पर दिगंबर एवं श्वेतांबर जैन समुदाय एकजुट हैं। दोनों सम्प्रदायों के लोगों ने मौन रह कर अपनी आवाज बुलंद करने का फैसला किया है। इसी कड़ी में रांची में जैन समुदाय आज मौन जुलूस निकाला और राज्यपाल रमेश बैस से मिलकर ज्ञापन सौंपेगा। जैन समाज का संकल्प है कि सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र में विकसित करने का नोटिफिकेशन वापस होने तक उसका शांतिपूर्ण विरोध जारी रहेगा। बता दें राज्यपाल रमेश बैस ने पहले ही पत्र लिखकर केन्द्र सरकार से इस सम्बंध में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
यह भी पढ़ें: रामगढ़: सीएम Hemant Soren ने परिवार संग रजरप्पा मंदिर में टेका मत्था, राज्य की सुख-समृद्धि की कामना की