गुमला से मुकेश सोनी की रिपोर्ट / समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड के बच्चे आने वाले कल के भविष्य हैं। इसके लिए बच्चों को अच्छी शिक्षा और बेहतर सीख मिलनी जरूरी है। लेकिन जब स्कूल में शिक्षक ही ना हों, तो देश और बच्चों का भविष्य क्या होगा?
तिलवारी पाठ गांव की पाठशाला सुविधाओं से वंचित
चैनपुर प्रखंड के मालम पंचायत अंतर्गत पहाड़ो में बसा तिलवारी पाठ गांव जहां आदिम जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह गांव कई मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है। यहां एक नव प्राथमिक विद्यालय है जहां तिलवारी पाठ व उमाकोना पाठ के लगभग 30 आदिम जनजाति बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। 30 बच्चों का भविष्य एक पारा शिक्षक डहरू असुर सवारने की कोशिश कर रहे हैं। मगर एक शिक्षक रहने के कारण कई दिन विद्यालय के काम से उन्हें यहां वहां आना जाना पड़ता है। जिस दिन शिक्षक नहीं रहते हैं उस दिन विद्यालय बंद हो जाता है। जिससे बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। 1 से लेकर 5 कक्षा तक के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है।
विद्यालय भवन की हालत जर्जर
विद्यालय का भवन भी काफी जर्जर है। जान जोखिम में डालकर बच्चे शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। इस कारण भी बच्चों की उपस्थिति कम रहती है। स्कूली बच्चों के लिए पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है। रसोईया एतवारी देवी ने बताया कि 1 किलोमीटर दूर जल मीनार से पानी लाकर मिड-डे-मील बनाया जाता है बच्चों को पानी पीने के लिए 1 किलोमीटर दूर जलमीनार तक जाना पड़ता है। वहीं उन्होंने बताया कि जल मीनार खराब होने पर स्कूली बच्चों को ग्रामीणों को गड्ढे (चुवां) का पानी पीना पड़ता है। जल मीनार खराब हो जाने पर ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर इसकी मरम्मत कराते हैं। कोई भी जनप्रतिनिधि गांव के विकास पर ध्यान नहीं देता है। स्कूली बच्चों के लिए बना शौचालय भी पूरी तरह जर्जर है जिसके कारण कोई भी स्कूली छात्र छात्राएं शौच के लिए शौचालय का उपयोग नहीं कर पाते हैं।
पढ़ाई को लेकर अभिभावकों की शिकायत
सरिता करवाईन राजेंद्र कोरवा सहित कई ग्रामीणों ने कहा कि हमारे बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही हैं। गांव के स्कूल में एक मात्र पारा शिक्षक है जिन्हें आए दिन विद्यालय के काम से ही यहां वहां आना जाना पड़ता है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है और बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे है सुविधा के अभाव के कारण हम अपने बच्चों को दूसरी जगह भी पढ़ने के लिए नहीं भेज पाते हैं। यही कारण है कि आज विलुप्तप्राय आदिम जनजाति के बच्चे अशिक्षित ही रह जाते हैं। सरकार आदिम जनजाति के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का दावा तो करती है मगर हकीकत यह है कि एक शिक्षक के भरोसे यहां विद्यालय चलता है सभी बच्चे स्कूल में एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं कक्षा 1 से लेकर 5 तक के बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है ऐसे में बच्चा क्या सीख पाएगा।
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