न्यूज़ डेस्क/ समाचार प्लस झारखंड- बिहार
एकीकृत बिहार के समय वाली बिहार पुलिस की छवि अभी भी झारखंड प्रदेश के लोगों के मन में बैठी हुई है। यहां की पुलिस (jharkhand police)की कार्यशैली को लोग कथित तौर पर ‘बिहारी टाइप’ कार्य संस्कृति वाली ही मानते हैं। हालांकि किसी भी क्षेत्र की कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस की नितांत आवश्यकता होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि आम लोग मदद के लिए पुलिस के पास जाने से बचते हैं । पुलिस चाहे हमारे देश की हो चाहे विदेश की, वह चाहे झारखंड राज्य की हो या बिहार या अन्य किसी राज्य की, लोग उससे डरते हैं। लोगों के मन में बचपन से ही पुलिस की कुछ छवि ही ऐसी बनती है कि उसके बारे में सोचते ही सुकून से अधिक भय की भावना व्याप्त हो जाती है। भले ही बचपन से सुनते आ रहें हों कि पुलिस कानून व्यवस्था की रक्षक होती है, चोर उचक्कों को पकड़ती है और शरीफ एवं सभ्य आदमी को सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन व्यवहार में पुलिस के नाम से ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। यहां के आम लोगों में झारखंड पुलिस की यही छवि है, भले ही इसकी पुलिस की परिभाषा पुरुषार्थ, लिप्सारहित …वाली क्यों ना हो।
झारखंड पुलिस पर ‘बिहारी टाइप’ कार्य शैली का लगता रहा है आरोप
अगर हम झारखंड राज्य की पुलिस की बात करें तो 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य स्थापना के साथ-साथ झारखंड पुलिस भी अस्तित्व में आया। उस समय राज्य विभाजन के नीतियों के अनुरूप करीब 28,000 स्वीकृत बल का झारखंड राज्य पुलिस बल में करीब 8,000 की रिक्ति थी। पुलिस का वास्तविक बल करीब 20,000 था। नए पदों को सृजित कर उसे भरना प्रथम प्राथमिकता राज्य पुलिस के लिए बन गया। लेकिन बिहार से अलग हुए झारखंड राज्य के 20 वर्ष गुजर जाने के बाद भी यहां की पुलिस में बिहार के लोग ही ज्यादातर बहाल होते हैं जिसके कारण लोग यहां के पुलिस पर ‘बिहारी टाइप’ कार्य शैली का आरोप लगा देते हैं। पुलिस की जरूरत से ज्यादा सख्ती, आरोप साबित होने से पहले ही उनके द्वारा दोषी ठहरा देना, अनावश्यक मारपीट और अपशब्द का प्रयोग कर पुलिसिया रौब गांठना, अनावश्यक पुलिस थाने का चक्कर लगवाना, पैसे की मांग करना आदि कई ऐसे कारण हैं जिसके कारण लोग पुलिस से दूरी बनाना ही उचित समझते हैं जिससे राज्य में मित्रवत पुलिसिंग की अवधारणा कमजोर पड़ती जा रही है।
उभरता रहता है राज्य में अक्सर पुलिस का बर्बर चेहरा
राज्य में अक्सर पुलिस का बर्बर चेहरा समय समय पर उभरता रहता है। बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं , जब पुलिस वालों के किसी अच्छी कामों के लिए तारीफ़ कर सकें। ज्यादातर मामलों में उनकी क्रूरता और हैवानियत ही सामने आती हैं। हाल ही में बोकारो में पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आया था, जब जिले के बालीडीह थाना क्षेत्र में एक घर में हुई चोरी के मामले में पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने बुलाए गए एक शिक्षक को अमानवीय यातनाएं दीं । आरोप है कि थाना प्रभारी ने पूछताछ के दौरान जबरन आरोप कबूल करने के लिए अमानत हुसैन नाम के व्यक्ति को प्रताड़ित किया। पैर के नाखून तक उखाड़ दिए । जमकर मारपीट की। यह आचरण तब किया गया जब अमानत पेशे से शिक्षक हैं। वह इलाके में निजी स्कूल चलाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। यह एकमात्र घटना नहीं है, कई ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जिसमें पुलिस का क्रूर चेहरा देखने को मिलता है।
पब्लिक फ्रेंडली पुलिसिंग के लिए प्रयासरत है झारखंड पुलिस
अगर हम राज्य पुलिस की सकारात्मक पक्ष की चर्चा करें तो इसकी सराहनीय भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। कोरोना संक्रमण काल के दौरान फ्रंट लाइन वारियर के तौर पर झारखंड पुलिस ने पहली और दूसरी लहर दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सड़क से लेकर अस्पताल तक, चाहे मरीजों को अस्पताल पहुंचाने की बात हो या फिर बुजुर्गों और महिलाओं के घरों तक दवा उपलब्ध करवाने की, इन सभी कार्यों में पुलिसकर्मियों की भूमिका बेहद सराहनीय रही है । कोविड काल में झारखंड पुलिस ने अच्छा काम किया है। झारखंड पुलिस बेहतर काम कर लोगों के दिल में भरोसा जगाने का काम भी कर रही है। यहां की पुलिस इस प्रयास में भी जुटी है कि लोगों के मन में पुलिस का चेहरा जब भी उभरे तो वह फ्रेंडली हो न कि झंझट से भरा ताकि आम जनता अपनी समस्या लेकर बेधड़क पुलिस के पास पहुंचें।
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