Jharkhand Niyojan Niti: झारखंड में नियोजन नीति (Jharkhand Niyojan Niti) पर राजनीति छिड़ी हुई है. झारखंड सरकार की ओर से हाल में घोषित नियोजन नीति को लेकर भाजपा के विधायकों ने झारखंड विधानसभा के अंदर और बाहर प्रदर्शन किया. विधायकों के हंगामे के कारण सदन में प्रश्न काल नहीं चल सका. बीजेपी विधायक छात्रों के समर्थन में हैं. झारखंड के लिए नियोजन नीति अब राजनीतिक एजेंडा बन गई है. एक तरफ जहां राज्य सरकार नियोजन नीति (Jharkhand Niyojan NIti) में संशोधन कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी कर रही है. वहीं दूसरी ओर छात्र सरकार के द्वारा किए गए संशोधन के कारण गुस्से में हैं. नियोजन नीति में झारखंड के मूलवासियों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को छात्रों विरोधस्वरूप ट्विटर पर अभियान चलाया. जिसमें लाखों छात्र जुड़े. छात्र खतियान आधारित नियोजन नीति की मांग कर रहे. वहीँ बीजेपी का कहना है कि राज्य के अभ्यर्थी इस बात को लेकर आशंकित हैं कि सरकार की 60-40 के अनुपात वाली रिक्रूटमेंट पॉलिसी से प्रदेश में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों पर राज्य के बाहर के लोगों का दखल बढ़ जाएगा.

22 वर्ष बीत गए, अबतक नहीं बन पायी नियोजन नीति
राज्य गठन के 22 वर्ष में अब तक तीन बार नियोजन नीति बनी, मगर नीति के असंवैधानिक होने से हर बार झारखंड हाईकोर्ट से रद्द होती गई. राज्य बनने के बाद सर्वप्रथम बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की. स्थानीय और नियोजन नीति में खामियों की वजह से झारखंड हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. फिर 2016 में रघुवर सरकार ने नियोजन नीति को फिर से पारिभाषित किया. जिसके तहत राज्य के 13 जिलों को अनुसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को गैर-अनुसूचित श्रेणी में बांटकर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की. यह नियोजन नीति भी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रद्द कर दी गयी. साल 2019 में हेमंत सरकार ने रघुवर शासनकाल में बनी नियोजन नीति को खारिज करते हुए वर्ष 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाई. जिसके तहत झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास की अनिवार्यता और प्रत्येक जिला में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया.

2021 में तैयार हुई यूपीए की नियोजन नीति
2019 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी यूपीए की सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुरूप नियोजन नीति बनाने की प्रक्रिया शुरू की. 2021 में तैयार होने के बाद इसे लागू किया गया. हेमंत सरकार की यह नियोजन नीति भाषाई विवाद और झारखंड से मैट्रिक- इंटर पास होने की अनिवार्यता के मुद्दे पर काफी विवादों में आ गया और अंततः हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. इस वजह से एक दर्जन से अधिक नियुक्ति प्रक्रिया सरकार की लटक गई. छात्र एक बार फिर सड़कों पर आ गए. व्यापक विरोध को देखते हुए एक बार फिर हाल ही में कैबिनेट के द्वारा नियोजन नीति में मैट्रिक इंटर पास की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है. इसके अलावा हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी को क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ जोड़ा गया है. मगर स्थानीय नीति का मुद्दा आज भी तय नहीं हो पाया है.
2016 में बनी नीति
2016 में जब हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री थे, तब सरकार ने नियोजन नीति लाई गई . जिसमें झारखण्ड के 24 जिलों को को दो भागों में बांट दिया गया था. 11 जिलों को गैर- अनुसूचित और 13 जिलों को अनुसूचित जिला गैर- अनुसूचित के अंतर्गत पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा और देवघर और अनुसूचित जिले के तहत रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावाँ, लातेहार, जामताड़ा, दुमका, पाकुड़ और साहेबगंज को रखा गया. इसमें प्रावधान रखा गया था कि अभ्यर्थी अगर अनुसूचित जिले से हों, तो वो गैर- अनुसूचित जिले में जेएसएससी के अंतर्गत नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन गैर- अनुसूचित जिले के अभ्यर्थी अनुसूचित जिले में नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. साथ ही बाहरी राज्य के अभ्यर्थी भी अनुसूचित जिले के अंतर्गत आवेदन कर सकते हैं.
क्या है 40- 60 का माजरा
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दिसम्बर में नियोजन नीति को गैर संवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था. इसमें यह प्रावधान किया गया था कि अगर अभ्यर्थी झारखण्ड का निवासी है, तो उसके लिए 60% और वहीँ अगर अभ्यर्थी बाहरी है तो उनके लिए 40% सीट आरक्षित रहेगी. लेकिन यहाँ फिर से इस बात को लेकर पेंच फंस गया कि कौन झारखण्ड का निवासी है, और कौन नहीं. इसके निर्धारण को लेकर सवाल खड़े होने लगे. गौरतलब है कि जिनके पास 1985 का खतियान है, वो झारखण्ड के निवासी माने जाते हैं (रघुवर सरकार के समय ये कट ऑफ तय किया गया था) . अगर अभ्यर्थी के पास खतियान नहीं है. लेकिन 30 साल से यहाँ रह हैं तो भी उसे झारखण्ड निवासी मान लिया जाएगा. साथ ही अगर किसी ने यहाँ से मैट्रिक किया है, तब भी उसे यहाँ निवासी मान लिया जाएगा.
बाहरी कौन, राज्यवासी कौन?
जिन लोगों ने 10वीं और 12वीं झारखण्ड से पास की है, वो जेएसएससी द्वारा निकाली गई नियुक्ति फॉर्म भर सकते हैं. अन्य राज्य के अभ्यर्थियों के लिए उनके द्वारा 10वीं और 12वीं झारखंड से नहीं किए जाने की स्थिति में आवेदन करने के लिए अयोग्य माना गया फिर यहाँ भी बाहरी कौन और झारखंड का मूलनिवासी कौन, के निर्धारण को लेकर सवाल खड़े होने लगे.ऐसे में हेमंत सरकार द्वारा 1932 खतियान की नीति लायी गयी. इस नीति को भी कोर्ट में चैलेंज किया गया और झारखण्ड हाई कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया. इस विधेयक को पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने वापस लौटा दिया था. और ये कहा था कि ये विधेयक असंवैधानिक है.
युवाओं में रोष व्याप्त
इसके बाद अब एक नई नियोजन नीति बनकर आ गई जिसमें प्रावधान किया गया कि 60% सीट का आरक्षण झारखण्ड वासियों के लिए और 40% अन्य राज्य के अभ्यर्थियों के लिए निर्धारित होगी. इसमें झारखण्ड के सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को भी शामिल किया गया और पेपर 2 में हिंदी इंग्लिश और उर्दू को जोड़ दिया गया. बता दें कि हेमंत सोरेन की सरकार के आने के बाद मात्र 357 बहाली हुई है, वो भी हाईकोर्ट के निर्देश पर. बीते दिनों इसके विरोध में ’60- 40 नाय चलतो’ कैंपेन भी चलाया गया. इसमें लगभग पांच लाख ट्वीट किये गए. हेमंत सरकार की नियोजन नीति के तहत 60% आरक्षण के अंतर्गत 50% झारखण्ड के लोगों के लिए सीट अरक्षित रखा गया है और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए और बाकी 40% पूरी तरह से ओपन रखा गया जिसके तहत देश का कोई भी नागरिक नौकरी के लिए आवेदन कर सकेगा. इस नीति के खिलाफ युवाओं में रोष व्याप्त है. छात्र तो आंदोलनरत हैं ही, सदन में विपक्ष द्वारा भी इसका विरोध किया जा रहा है.
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