Jharkhand Niyojan Niti: झारखंड में इन दिनों नियोजन नीति (Jharkhand Niyojan Niti) पर राजनीति छिड़ी हुई है। राज्य में पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी नियोजन नीति को सही बताने में लगे हुए हैं तो वहीँ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी राज्य सरकार से जल्द से जल्द रोजगार देने की मांग कर रहे हैं। बता दें कि राज्य में 24 प्रतिशत आदिवासी, 10 प्रतिशत हरिजन और 20 प्रतिशत बाहर से आकर बसे लोगों के अलावा करीब 46 प्रतिशत मूलवासी रहते हैं। एसटी और एससी के लिए तो आरक्षण नीति लागू है जिससे उन्हें लाभ मिल जाता है, लेकिन सवर्ण, ओबीसी और मुस्लिम अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं।
राज्य के 70 प्रतिशत युवा 2016 से पहले जैसी नियोजन नीति के पक्ष में
राज्य के 70 प्रतिशत युवा 2016 से पहले जैसी नियोजन नीति(Jharkhand Niyojan Niti) की मांग कर रहे हैं। जिसमें नियुक्तियों में पचास प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के आरक्षण यानी ईडब्ल्यूएस को जोड़ दिया जाए तो इस नीति के अनुरूप 60 प्रतिशत नियुक्तियां आरक्षित हो जाती। साथ ही झारखण्ड से निर्गत प्रमाणपत्र को इस नीति के तहत वैध माना गया था। इसमें यहां के स्थानीय लोगों को भी प्राथमिकता देने की बात कही गई थी।
2016 में अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू हुई थी
बता दें कि 14 जुलाई, 2016 को राज्य सरकार की ओर से एक अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू की गई थी। नियोजन नीति (Jharkhand Niyojan Niti) के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया था। नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप C और D की नौकरियों में वहीं के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था। अर्थात अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए वही लोग आवेदन कर सकते थे और नियुक्ति पा सकते थे जो इन जिलों के निवासी थे। इन जिलों की नौकरियों को यहीं के निवासियों के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया गया था, जबकि गैर अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए हर कोई आवेदन कर सकता था। राज्य सरकार ने यह नीति दस साल के लिए बनाई थी।
हाईकोर्ट में दी गई थी चुनौती
2016 में राज्य सरकार की ओर से 17572 पदों के लिए शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए। इस भर्ती के 8423 पद अनुसूचित जिलों में जबकि 9149 पद गैर-अनुसूचित जिलों में थे। नियोजन नीति की वजह से गैर-अनुसूचित जिलों से आने वाले अभ्यर्थी अनुसूचित जिलों के लिए आवेदन नहीं कर पाए। इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई ।
झारखंड हाईकोर्ट ने नीति को रद्द कर दिया था
झारखंड हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इस नीति को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि किसी भी स्थिति में कोई भी पद शत-प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता है। आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत ही हो सकती है, जबकि नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों में ये 100 प्रतिशत हो गई थी। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य की हेमंत सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गई थी।
वर्ष 2021 में बनी नियुक्ति नियमावली को भी हाई कोर्ट ने रद्द किया
बाद में हेमंत सरकार ने रघुवर सरकार द्वारा बनाई गई नियोजन नीति को रद्द कर नई नियोजन नीति लाने की घोषणा कर दी। राज्य सरकार ने वर्ष 2021 में
नियुक्ति नियमावली बनायी थी जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने अपनी नियुक्ति नियमावली में अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए झारखण्ड से इंटर और मैट्रिक की परीक्षा पास होना अनिवार्य किया था। इस नीति को कोर्ट ने संविधान की मूल नीति के विरुद्ध बताया था। जिसके बाद सरकार को सभी विज्ञापन रद्द करने पड़ गए थे।
नई नियोजन नीति में 60/40 का प्रावधान रखा गया
झारखंड सरकार द्वारा बनाई गई नियोजन नीति 2021 को झारखंड उच्च न्यायालय ने 16 दिसंबर को रद्द कर दिया था। इसके बाद झारखंड में कई परीक्षाएं और नियुक्तियां भी रद्द हो गई थीं। इसके बाद नई नियोजन नीति बनाने के लिए हेमंत सरकार ने राज्य के युवाओं से राय मांगी थी। उसी के आधार पर नई नियोजन नीति बनाई गई है।इस नीति की घोषणा से पहले यह कहा गया था कि राज्य के 70 प्रतिशत युवा 2016 से पहले जैसा नियोजन नीति चाहते हैं। इसलिए सरकार उनकी राय के मुताबिक नियोजन नीति ला रही है.।जब नई नियोजन नीति की घोषणा की गई तो इसमें 60/40 का प्रावधान रखा गया, जिसके तहत 60 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय को और बाकि 40 प्रतिशत में अन्य को नौकरी दी जाएगी। स्थानीय युवा इसी प्रावधान से नाराज हैं। इसे लेकर ट्वीटर से लेकर सड़क और सदन तक आंदोलन कर रहे हैं। सरकार के नियोजन नीति पर निर्णय नहीं लेने से छात्रों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
अभ्यर्थियों की निकलती जा रही है उम्र
छात्रों की उम्र नियोजन नीति के अभाव में निकलती जा रही है। इसमें से कई तो सरकारी नौकरी की उम्र की पात्रता भी खो चुके हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार हर बार यही कहती है कि हम नयी नियोजन नीति लाएंगे. लेकिन सवाल यह उठता है कि नियोजन नीति को रद्द क्यों किया गया। सरकार को अपनी तरफ से वो यही सुझाव देते हैं कि अगर सरकार को नियोजन नीति लाना है तो उसमें सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर विचार किया जाए जिन मुद्दों के कारण नियोजन नीति रद्द हुई थी। उन्हीं मुद्दों में सुधार किया जाए, जैसे सामान्य वर्ग के स्थानीय लोगों को राहत दी जाने की बात। वहीं भाषा के चयन में हिंदी को भी जोड़े जाने की मांग क्योंकि उर्दू को भाषा में जोड़ा गया है तो फिर हिंदी हटाया जाना अनुचित है।
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