23 जुलाई को मिलेगी नयी ‘झारखंड पर्यटन नीति 2021’
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
पर्यटन अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाला बहुत बड़ा क्षेत्र है। पड़ोसी श्रीलंका जहां की प्राकृतिक सुन्दरता बेमिसाल है, इस समय आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, उसके कई कारण हैं, लेकिन कोरोना काल में पर्यटन का खत्म हो जाना बड़ा कारण है। इससे पर्यटन के महत्व को समझा जा सकता है। यह बात झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी समझी है और पर्यटन की अपार सम्भावनाओं वाले राज्य में एक नयी शुरुआत करने की ठानी हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 23 जुलाई को दिल्ली में ‘झारखंड पर्यटन नीति 2021’ का शुभारंभ करेंगे। उम्मीद है, इस नयी पर्यटन नीति से झारखंड का पर्यटन नये रास्ते पर आ जाये।
कहना न होगा, अतुल खनिज सम्पदा से भरे-पूरे झारखंड को प्रकृति ने दिल खोलकर दिया है। कमी रह गयी यहां पर्यटकों का आकर्षित करने के उपायों की। कई बड़ी हस्तियां, देश-विदेश के प्रकृति प्रेमी झारखंड की प्राकृतिक सुन्दरता पर फिदा होकर वापस लौटे हैं। तो आखिर कहां कमी रह गयी कि झारखंड का पर्यटन देश के दूसरे राज्यों के पर्यटन की तरह विकसित नहीं हो सका। बिहार में रहते हुए या बिहार से अलग होने के बाद भी पर्यटन पर ध्यान नहीं दिया गया। 2019 में झारखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद के दो साल कोरोना महामारी में बीत गये। इस कारण हेमंत सोरेन सरकार झारखंड की पर्यटन नीति पर कदम आगे नहीं बढ़ा सकी, लेकिन अपने बचे हुए कार्यकाल में सीएम हेमंत राज्य के लिए ऐसा करना चाहते हैं जिसका असर देर तक कायम रहे और उसका लाभ हमेशा मिलता रहे। इसी उद्देश्य से राज्य के समृद्ध पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शनिवार को पर्यटन, कला-संस्कृति, खेल और युवा मामले विभाग, झारखंड सरकार, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) की मेजबानी में झारखंड की नयी पर्यटन नीति लागू की जायेगी।
पर्यटन को विकसित करने की क्या है झारखंड सरकार की योजना?
प्रकृति झारखंड पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। जंगल, हरियाली से सजे पहाड़, खूबसूरत झरने, अक्षुण्ण परम्परा और संस्कृति से लेकर सुंदर और शांत पर्यटन स्थलों की बदौलत झारखंड पर्यटन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में सक्षम है। प्राकृतिक ही नहीं, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर भी पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। सरकार का ध्यान पारसनाथ, मधुबन और इटखोरी को धार्मिक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने पर है। लातेहार, नेतरहाट, बेतला, चांडिल, दलमा, मिरचैया, गेतलसूद सर्किट जैसे इको-सर्किट का विकास कर राज्य में इको-टूरिज्म की अपार संभावनाओं को तलाशा जायेगा। विभिन्न मेलों, त्योहारों, सांस्कृतिक और ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देकर राज्य की समृद्ध परम्परा और सांस्कृतिक विरासत से पर्यटकों को रूबरू कराने का प्रयास किया जायेगा। इस नीति में पैराग्लाइडिंग, वाटर स्पोर्ट्स, रॉक क्लाइम्बिंग, मोटर ग्लाइडिंग जैसी साहसिक गतिविधियों की शृंखला भी शामिल है। बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से सटे होने के कारण झारखंड को भौगोलिक लाभ भी प्राप्त होगा और इस तरह वीकेंड गेटवे की तलाश करने वालों के लिए झारखंड एक आदर्श स्थल के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर सकता है। नीति का एक अनूठा पहलू खनन पर्यटन को बढ़ावा देना भी है।
निवेश प्रोत्साहन देकर झारखंड के पर्यटन के विकास का प्रयास
नयी पर्यटन नीति में निवेशकों को आकर्षित करने का प्रयास किया जायेगा। सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से लाइसेंस, प्रोत्साहन और सब्सिडी के लिए एक सुव्यवस्थित प्रणाली के साथ पूरी प्रक्रिया परेशानी मुक्त हो जाएगी। बिल्ट ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी), बीओओटी (बिल्ट ऑन ऑपरेट ट्रांसफर), बीएलटी (बिल्ट लीज ट्रांसफर) के जरिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच एक रचनात्मक और पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी का प्रस्ताव किया गया है। विदेशी कॉर्पोरेट निकायों (ओसीबी) और एनआरआई के व्यवहार्य द्वारा विदेशी निवेश और तकनीकी सहयोग करने की प्रक्रियाओं को भी अपनाया गया है। झारखंड के पर्यटन को प्रतिभाशाली और मेहनतकश ग्रामीण आबादी के सहयोग से विकसित किया जाएगा। इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि रोजगार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवसर भी सृजित होंगे। साथ ही झारखंड पर्यटन विकास निगम का आधुनिकीकरण किया जाएगा तथा वर्तमान पर्यटक सूचना केंद्रों के उन्नयन पर जोर दिया जाएगा।
पर्यटकों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल, इससे समाधान जरूरी
झारखंड में पर्यटन को विकसित करने की एकआवश्यकता सुरक्षा की गारंटी भी है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन को तमाम सुरक्षा प्रबंधों के साथ आपराधिक गतिविधियों से भी मुक्त रहना होगा। हम आंध्र प्रदेश के पर्यटन का उदाहरण ले सकते हैं। आंध्र प्रदेश नक्सली प्रभावित राज्यों में एक होते हुए भी पर्यटन के क्षेत्र में अपनी पहचान रखता है। सरकार के सुरक्षा उपायों के कारण पर्यटक यहां निर्भय होकर पर्यटन का आनंद लेते हैं।
वहीं, झारखंड के पिछले कई वर्षों के रिकॉर्ड पर नजर डाली जाये तो झारखंड के कई पर्यटन स्थल पर्यटकों के लिए सुरक्षित साबित नहीं हुए हैं, जैसे- झारखंड के कई जलप्रपातों पर हर साल कोई न कोई दुर्घटना हो ही जाती है। ऐसा उन जल प्रपातों का खतरनाक होना तो कारण है ही, सुरक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण भी वहां दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इसी साल अप्रैल माह में देवघर के त्रिकूट पर्वत के रोपवे की घटना भी देश में चर्चा का विषय रही है। यदा-कदा पर्यटकों के साथ हुई अभद्र घटनाएं भी झारखंड कलंकित कर चुकी हैं। ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण लगाने पर भी सरकार को ध्यान देना होगा।
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