2000 Rupee Note: RBI द्वारा 2000 रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर करने की चारों तरफ निंदा हो रही है। कुछ लोग इसे एक बार फिर की गयी नोटबंदी मान रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग यह मानते हैं कि इसका कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी 2000 के नोटों को प्रचलन से बाहर किये जाने की रविवार को निंदा की है। उनके अनुसार 2000 का नोट चलन से हटाना 2016 की नोटबंदी की तरह ही एक राजनीतिक निर्णय है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि 2000 रुपये के नोट की उम्र महज छह-सात साल रही। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि नोटबंदी के चलते दो लाख से अधिक छोटे एवं मझोले उद्योग बंद हो गये। हर चीज की एक उम्र होती है, लेकिन 2000 के नोट की उम्र काफी छोटी रही।
2000 के नोटों का चलन गलत या चलन से बाहर करना गलत?
सवाल यह उठता है कि केन्द्र सरकार ने 2000 रुपये के नोटों का चलन शुरू कर गलती की या अब 2000 के नोटों का प्रचलन बंद करके गलत कर रही है। याद होगा 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर 2000 रुपये का नोटों की शुरुआत की गयी थी। अब आरबीआई मान रहा है कि 2000 रुपये के नोट आमतौर पर लेन-देन में इस्तेमाल नहीं किये जाते हैं जबकि दूसरे मूल्य के नोटों का भंडार इतना है कि वे जनता की नोटों की जरूरतों को पूरा कर सकते है। आरबीआई 2000 के नोट बंद कर कोई नयी मुद्रा शुरू नहीं कर रहा है। जबकि 2016 में 500 और 1000 का नोट बंद कर 500 के नये और साथ ही 2000 के नोट जारी किये गये थे। 2016 में पुराने नोटों का चलन उसी समय बंद कर दिया गया था, जबकि 2000 के नोट वर्तमान में वैध मुद्रा है और 30 सितंबर तक इन्हें बैंकों में जमा करने के साथ लेनदेन के इस्तेमाल किया जा सकता है।
कुल मुद्रा में 2,000 के नोटों का हिस्सा काफी कम
आरबीआई के अनुसार 2,000 रुपये के नोट वर्तमान में बाजार में मौजूद कुल मुद्रा का काफी छोटा हिस्सा रखते हैं। अब आम लोगों के पास 2,000 के नोटों की काफी कम मात्रा हैं। जिनके पास यह मुद्रा है भी तो पूरे देश की आबादी में उनका प्रतिशत काफी कम है। और सबसे बड़ी बात यह है कि 2016 में नोटबंदी के दौरान लोगों में नोट बदलने की जो दहशत फैली थी वह ना के बराबर है।
RBI के मुताबिक, मार्च, 2020 में बाजार में 2,000 रुपये के कुल 274 करोड़ नोट मौजूद थे, जो कुल नोटों की संख्या का मात्र 2.4 प्रतिशत था। वहीं मार्च, 2022 के अंत में 2,000 रुपये के नोटों की संख्या गिरकर 1.6 प्रतिशत यानी 214 करोड़ हो गई।
क्या कहना है आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी का?
राजनीतिक प्रतिक्रिया अपनी जगह है। आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी का कहना है कि देश में 500 रुपये से बड़े नोटों की कोई जरूरत नहीं है। जिस तरह से डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ रहा है, उच्च मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की अब और जरूरत नहीं है। हालांकि 2014 से 2017 तक आरबीआई में डिप्टी गवर्नर रहे आर गांधी ने स्वीकार किया कि 2000 रुपये के नोट की शुरुआत डिमोनेटाइजेशन के सिद्धांतों के खिलाफ थी।
कुल मिलाकर 2000 रुपयों के नोट क्यों शुरू किये गये, इस पर राजनीतिक हो तो समझ आता है। 2016 में नोटबंदी करनी ही क्यों पड़ी इस पर सवाल उठाये जायें तब भी समझ में आता है। लेकिन हर बात की सिर्फ आलोचना करनी ही है, यह समझ से परे है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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