Jagannath Yatra 2022: ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ महीने में विश्वविख्यात जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है. भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा बेहद मशहूर है. इसमें शामिल होने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं. रथ यात्रा की ही तरह पुरी का प्रसाद भी बेहद मशहूर है, इसे ‘महाप्रसाद’ कहा जाता है. आज 1 जुलाई को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो चुकी है और यह 12 जुलाई तक चलेगी. रथ यात्रा के मौके पर जानते हैं कि आखिर क्यों जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को ‘महाप्रसाद’ कहा जाता है और इसे बनाने की प्रक्रिया की खासियतें क्या-क्या हैं.
गंगा-यमुना के पानी से बनता है ‘महाप्रसाद’
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में बनने वाले प्रसाद को तैयार करने के लिए ना केवल पवित्रता का ख्याल रखा जाता है बल्कि इसे बनाने के लिए पानी भी खास तरह का इस्तेमाल होता है. भगवान के भोग को किचन के पास बने 2 कुओं के जल से तैयार किया जाता है और इन कुओं के नाम गंगा-यमुना हैं. बहुत बड़ी मात्रा में तैयार किए जाने वाले इस भोग को बनाने में केवल इन गंगा-यमुना कुओं के पानी का ही इस्तेमाल होता है.
800 लोग मिलकर तैयार करते हैं भोग
जगन्नाथ मंदिर के किचन को दुनिया का सबसे बड़ा किचन कहा जाता है. यहां बहुत बड़ी मात्रा में रोजाना भोग (महाप्रसाद) तैयार किया जाता है. भोग की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि इसे तैयार करने के लिए एक बार में किचन में कम से कम 800 लोग काम करते हैं. इसमें से करीब 500 रसोइए होते हैं और 300 लोग इनकी मदद के लिए होते हैं.
महाप्रसाद पकाने का तरीका भी अजीब
जगन्नाथ मंदिर में तैयार होने वाले महाप्रसाद को पकाने में केवल मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है. इसके लिए इन बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है और चौंकाने वाली बात यह है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना सबसे पहले और नीचे रखे बर्तन का भोजन सबसे बाद में पकता है. मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर के किचन में पूरा भोग मा लक्ष्मी की देख-रेख में तैयार होता है. इस महाप्रसाद की महिमा ऐसी है कि इसे पाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.
गरुड़ध्वज
जगन्नाथ जी का रथ ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ कहलाता है. 16 पहियों वाला यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग होता है. विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है. रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या नंदीघोष कहते हैं.
तालध्वज
बलराम का रथ तालध्वज के नाम से पहचाना जाता है. यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है. यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है. रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं. रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं. त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं. जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है.
पद्मध्वज या दर्पदलन
सुभद्रा का रथ पद्मध्वज कहलाता है. 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का प्रयोग होता है. रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं. रथध्वज नदंबिक कहलाता है. रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं. इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं. दसवें दिन इस यात्रा का समापन हो जाता है.
ये भी पढ़ें – बिना इंटरनेट के भी किया जा सकता है UPI पेमेंट, जानिए क्या है इसका पूरा तरीका
Jagannath Yatra 2022