तेलंगाना के विश्व प्रसिद्ध और सबसे अमीर हिन्दू मंदिर तिरुपति मंदिर की विडम्बना देखिये कि अपने भक्तों के लिए शुद्ध प्रसाद (लड्डू) भी नहीं उपलब्ध करा सकता। आज तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में पशु चर्बी की चर्चा हर ओर है। यह विवाद इस तरह से गहराया हुआ है कि हर हिन्दू इससे मर्माहत है। लेकिन राजनीतिज्ञ इसमें भी अपनी रोटी सेंक कर हिन्दुओं की तकलीफें और बढ़ा रहे हैं। हर बात दरकिनार, सबसे बड़ा विषय आस्था पर चोट पहुंचने का है। पर एकसवाल तो है कि आखिर इसकी शुरुआत कहां से हुई है। लगता तो यही है कि मंदिर चूंकि बहुत बड़ा और प्रसिद्ध है तो प्रसाद के रूप में वितरित किये जाने वाले लड्डुओं की मात्रा भी तो बड़ी है। और हर साल बढ़ते हुए भक्तों की संख्या के कारण प्रसाद की संख्या बढ़ने का दबाव भी उस पर है। फिर यही से शुरू हुई पशु चर्बी वाले घी का उपयोग। इसका मतलब यह नहीं है कि यह मिलावट मंदिर द्वारा की जा रही थी। मंदिर पर जब प्रसाद का भार बढ़ा तब ठीका देने की परम्परा कि शुरुआत हुई। यहीं से गोरखधंधे की भी शुरुआत मान सकते हैं। ठीकेदार ने अपना ईमान-धर्म ताक पर रखकर वह काम शुरू कर दिया, जो नहीं किया जाना चाहिए। उसी का नतीजा है आस्था के साथ यह खिलवाड़ और उसके चलते देशभर में गम और गुस्सा का माहौल।
क्या यह सिर्फ राजनीति का विषय?
तिरुपति मंदिर के लड्डुओं के विवाद की शुरुआत आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के एक बयान के बाद हुई। उन्होंने पहले बार यह बताया कि तिरुपति के मंदिर के लड्डुओं में पशुओं की चर्बी का इस्माल किया जा रहा है। अपने बयान के समर्थन में उन्होंने गुजरात के एक लैब की टेस्ट रिपोर्ट भी प्रस्तुत की। फिर उन्होंने YSR कांग्रेस सरकार पर प्रसादम की गुणवत्ता से समझौता करने का आरोप लगाया। लड्डुओं में जानवरों की चर्बी इस्तेमाल होने की बात कहे जाने के बाद ही विवाद खड़ा कर दिया। हालांकि तेलंगाना के मुख्यमंत्री जगनमोहन ने इन आरोपों का खंडन किया और इसके विरोध में वह कोर्ट भी पहुंच गया। बता दें कि मामले में गुजरात की एक प्रयोगशाला की जो रिपोर्ट सामने आयी है, उसमें घी में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल पाया गया है। मामले में विशेष जांच दल (SIT) गठित है। साथ ही डेयरी विशेषज्ञों की समिति भी जांच कर रही है। विपक्षी दलों से हालांकि वैसी प्रतिक्रियाएं नहीं आ रही है वे सिर्फ भाजपा राजनीति नहीं करने की सलाह भर दे रहे हैं, लेकिन मामले की संजीदगी को वह भी समझ रहे हैं।
आस्था के साथ खिलवाड़ का है मामला?
प्रसाद में पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल आस्था के साथ खिलवाड़ है, इसमें कोई शक नहीं है। हिन्दुओं में भले ही लोग मांसाहार करते हों, लेकिन उनकी पूजा-अर्चना बिल्कुल शुद्ध और सात्विक तरीके से होती है। तिरुपति मंदिर, जो कि वैष्णव सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ मंदिर है, इसकी शुद्धता और शुचिता तो बिल्कुल अलग होती है। इसलिए तिरुपति मंदिर के प्रसाद में पशु चर्बी का इस्तेमाल अपने आप ही हैरत उत्पन्न करता है। इसलिए यह विवाद तिरुपति मंदिर की प्रतिष्ठा को प्रभावित तो कर ही रहा है, लाखों श्रद्धालुओं की आस्था भी मर्माहत हुई है।
तिरुपति मंदिर के लड्डुओं के भ्रष्ट करने के पीछे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र!
एक सम्भावना यह भी है कि तिरुपति मंदिर के लड्डुओं में पशु चर्बी के उपयोग कहीं अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र तो नहीं है। चूंकि पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार देश में धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम किया गया है और उसके पीछे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र की खबरें आती रही हैं, उससे इस आशंका को भी बल मिलता है यह विदेशी षड्यंत्र भी हो सकता है।
कुछ लोगों का मानना है कि देश के अंदर ही नहीं, विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म को कमजोर करने के प्रयास किये जा रहे हैं। विदेशी ताकतें चाहती हैं कि भारत की धार्मिक एकता और सामाजिक सौहार्द को किस प्रकार भंग किया जाये। हालांकि इस मामले में अभी तक कोई ठोस सुबूत नहीं मिले हैं, लेकिन जांच की मांग की जा रही है। वैसे यह मामला भारतीय एजेंसियों और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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