International Labour Day: झारखंड के 10 लाख प्रवासी मजदूरों का नहीं है सरकारी रिकॉर्ड, मजदूर दिवस पर पढ़िए विशेष रिपोर्ट

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International Labour Day: झारखंड में पेट की खातिर मजदूरों का पलायन आम बात है. हर साल लाखों मजदूर रोजी रोजगार के लिए ना केवल दूसरे राज्य की ओर रुख करते हैं बल्कि विदेश तक की यात्रा करते हैं. इस दौरान श्रमिकों के शोषण की घटना खबरों में आती रही हैं. इसके बावजूद मजदूर पलायन करने के लिए मजबूर होते हैं.

गिरिडीह से सबसे ज्यादा पलायन

झारखंड सरकार के श्रमाधान पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा पलायन गिरीडीह जिले से होता रहा है. उसके बाद संथाल के पाकुड़, दुमका, साहिबगंज शामिल है. गुमला और खूंटी की भी कमोबेश यही स्थिति है. श्रम विभाग के संयुक्त लेबर कमिश्नर राजेश प्रसाद के अनुसार 25 अप्रैल तक राज्य में निबंधित प्रवासी मजदूरों की संख्या 1 लाख 70 हजार 800 है. रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया काफी सरल है जो आधार नंबर से लिंक है. आधार सत्यापित होते ही निबंधन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है.

हर जिले में प्रवासी श्रमिक सहायता केंद्र

राज्य के हर जिले में प्रवासी मजदूरों की सहायता के लिए प्रवासी श्रमिक सहायता केंद्र खोले गए हैं. इसके अलावे राज्य स्तर पर श्रम विभाग के द्वारा स्वयंसेवी संस्था के सहयोग से सहायता केंद्र बनाए गए हैं. श्रम विभाग के कर्मी मृत्युंजय कुमार झा कहते हैं कि निबंधित प्रवासी मजदूरों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का जहां लाभ मिलता है, वहीं सरकार के पास भी इनका रिकॉर्ड रहता है, जिससे विकट परिस्थिति में भी उनके और उनके परिवार तक सहायता पहुंचाई जा सके.

चुनाव आयोग कर रहा मजदूरों से संपर्क 

राज्य चुनाव आयोग ने झारखंड के प्रवासी मजदूरों से संपर्क कर उन्हें मतदान के लिए प्रेरित करने का मन बनाया है. इसे लेकर आयोग ने उच्चस्तरीय बैठक भी की थी. लेकिन दुखद स्थिति यह है कि राज्य सरकार को पता ही नहीं है कि झारखंड के 10 लाख से अधिक मजदूर दूसरे राज्यों में काम करके अपना घर-परिवार चला रहे हैं. राज्य में 25 अप्रैल 2024 तक कुल एक लाख 70 हजार 832 श्रमिकों ने ही प्रवासी श्रमिक के रूप में निबंधन कराया है. बाकियों का कोई लेखा-जोखा राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं है. बता दें कि कोरोना काल में (वर्ष 2020-21) विभिन्न राज्यों में काम करनेवाले झारखंड लौटे श्रमिकों की संख्या करीब 10.50 लाख से अधिक थी. जिनका निंबधन लेबर कांट्रोल रूम के जरिए झारखंड सरकार ने कराया था. हालांकि ये संख्या और ज्यादा होती, लेकिन श्रम विभाग सभी प्रवासी श्रमिकों का निबंधन ही नहीं करा पाया. यही वजह विभाग की लापरवाही के कारण प्रवासी श्रमिकों को सरकार से मिलने वाली सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ता है. प्रवासी श्रमिक कंट्रोल रूम के पुराने आंकड़े बताते हैं कि लाखों श्रमिक बाहर काम कर रहे हैं, पर उन लोगों ने निबंधन नहीं कराया है. हालांकि कोरोना के समय यह आंकड़ा सामने आया था. ऐसे में सोचने वाली बात है कि चुनाव आयोग किस तरह इन मजदूरों से संपर्क करके उनको मतदान करने के लिए वापस बुला सकेगा. और बाहर रहने वाले लाखों मजदूर जब बाहर से आ नहीं पाएंगे, तो झारखंड में कैसे बढ़ पाएगा मतदान प्रतिशत.

मजदूरों के लिए झारखंड सरकार की योजना

  • झारखंड असंगठित कर्मकार मृत्यु या दुर्घटना सहायता योजना
  • मुख्यमंत्री असंगठित श्रमिक औजार सहायता योजना
  • मातृत्व प्रसुविधा योजना
  • अंत्येष्टि सहायता योजना
  • कौशल उन्नयन योजना
  • उपचार आजीविका सहायता योजना
  • सिलाई मशीन सहायता योजना
  • विवाह सहायता योजना
  • साइकिल सहायता योजना

इन वजहों से प्रवासी मजदूर नहीं कराते निबंधन

झारखंड के मजदूरों की डिमांड ना केवल देश के विभिन्न शहरों में है बल्कि विदेश में भी है. ऐसे में रोजगार की तलाश में मौका मिलते ही ये मजदूर घर छोड़कर निकल पड़ते हैं. आर्थिक कमी से जूझ रहे ये मजदूर स्थानीय दलाल के झांसे का शिकार होते हैं, जो बगैर निबंधन के शहर की ओर रुख करते हैं. ऐसे में निबंधन की औपचारिकता पूरी करना ये उचित नहीं समझते. झारखंड के अधिकांश मजदूर कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं, जो धान कटनी के वक्त दूसरे राज्य जाते हैं. उसके बाद जिनकी अच्छी खासी तादाद है वह है ईंट भट्टा में काम करनेवाले मजदूरों की, जो खेती से मौका मिलते ही इस काम में लग जाते हैं. इस दौरान पूरे परिवार के साथ वे दूसरे राज्य निकल पड़ते हैं. इस तरह से सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा मजदूर पलायन करते हैं.

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