Hizla Mela Dumka: हिजला जनजातीय मेला (Hizla Mela Dumka) का इतिहास 132 साल पुराना है. दुमका जिला में मयूराक्षी नदी के तट पर 1890 से यह मेला आयोजित होता आ रहा है. इस मेले की शुरुआत वर्ष 1890 में संथाल परगना के तात्कालीन उपायुक्त जेएस कॉस्टेयर्स ने की थी. इसका उद्देश्य प्रशासन और जनता के बीच तालमेल बैठाना था. इस मेले में सामानों की खरीद बिक्री तो होती ही थी. इसके साथ ही साथ दूरदराज से आए लोगों के साथ बैठकर उनकी समस्याएं सुनी जाती थी, उनके लिए नीतियां और योजनाएं बनती थीं.
आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ना था उद्देश्य
1855 के संताल हूल के समय ही आदिवासी अंग्रेज शासकों से खफा थे और उनसे अलग चल रहे थे. उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से तत्कालीन उपायुक्त जान आर कास्टेयर्स ने इस मेले की शुरुआत करायी थी और यह आज़ादी के बाद भी जारी रहा. जिसका उद्देश्य अब बदल गया है. सरकारी स्तर पर आयोजित हिजला जनजातीय मेला का एक प्रमुख उद्देश्य जनजातीय समाज को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना है. झारखण्ड सरकार ने इस मेले को राजकीय मेला घोषित कर रखा है.

दिखती है आदिवासी सभ्यता की झलक
दुमका का राजकीय जनजातीय हिजला मेला पूरे संथाल परगना के लिए किसी त्योहार से कम नहीं है. जिसमें काफी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं. जनजातीय लोक कला, आदि संस्कृति, आदिवासी सभ्यता की झलक इस मेले में देखी जा सकती है.

मेले की खासियत
इस मेले में जहां एक ओर सरकार की विभिन्न योजनाओं से रुबरु कराने के उद्देश्य से विभागों के द्वारा स्टॉल लगाये जाते हैं, तो वही दूसरी ओर किसानों को आधुनिक तकनीक से अवगत कराने के लिए कृषि, आत्मा, उद्यान तथा मत्स्य पदाधिकारियों के द्वारा कृषकों में जागरूकता बढ़ाई जाती है।हिजला मेले में जनजातीय संस्कृति, नृत्य-संगीत का प्रदर्शन होता है, वहीं कॉलेज विद्यार्थियों के द्वारा पारंपारिक कथानकों का मंचन, बाहरी कला मंच पर सांस्कृतिक दलों के मध्य प्रतियोगिता तथा सांस्कृतिक संध्या जिसमें राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों का प्रदर्शन, खेल-कूद प्रतियोगिता के साथ-साथ पुस्तक, खानपान, मनोरंजन, पशु आदि से संबंधित दुकाने लगायी जाती है.
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