Heeraben Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की मां हीराबेन (Heeraben Modi) का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। उन्हें बुधवार को उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। हीराबेन (Heeraben Modi) की उम्र 100 साल थी। 100 की उम्र के बावजूद वह काफी सक्रिय रहती थीं। इस उम्र में भी अपना काम वह खुद निपटाने की कोशिश करती थीं। आये जानते हैं कैसी थी हीराबेन के जीवन के संघर्ष की कहानी।
”संघर्षों ने मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था”
प्रधानमंत्री ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट ‘नरेंद्रमोदी डॉट इन’ पर ‘मां’ शीर्षक से एक भावुक कर देने वाला ब्लॉग लिखा था। उसमें उन्होंने बताया कि बचपन के संघर्षों ने उनकी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। उन्होंने उल्लेख किया था कि हम आज के समय में इन स्थितियों को जोड़कर देखें तो कल्पना कर सकते हैं कि मेरी मां का बचपन कितनी मुश्किलों भरा था। शायद ईश्वर ने उनके जीवन को इसी प्रकार से गढ़ने की सोची थी। आज उन परिस्थितियों के बारे में मां सोचती हैं, तो कहती हैं कि ये ईश्वर की ही इच्छा रही होगी। लेकिन अपनी मां को खोने का, उनका चेहरा तक ना देख पाने का दर्द उन्हें आज भी है।

पालनपुर में हुआ था जन्म
पीएम मोदी ने ब्लॉग में बताया कि हीराबेन (Heeraben Modi) उम्र भर संघर्षशील महिला रहीं। शुरुआती जीवन से लेकर अब तक हीराबा की दिनचर्या काफी अनुशासित रही। उन्होंने ब्लॉग में बताया था कि वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे।उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे। उन्होंने कहा था कि सामान्य रूप से जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी रहता है। मेरे माता-पिता की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया। दोनों ने ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियां साझा की हुईं थीं।

घर का खर्चा चलाने के लिए दूसरे के घरों में बर्तन धोती थीं
ब्लॉग में उन्होंने लिखा था कि आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव। भाई प्रह्लाद मोदी के मुताबिक उनकी मां न केवल घर के सभी काम खुद करती हैं, बल्कि घर की मामूली आय को पूरा करने के लिए भी काम करती हैं। वह कुछ घरों में बर्तन धोती थीं और घर के खर्चों को पूरा करने के लिए चरखा चलाने के लिए समय निकालती थीं। उन्होंने वडनगर के उस छोटे से घर को याद किया जिसकी छत के लिए मिट्टी की दीवारें और मिट्टी की टाइलें थीं, जहां वे अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहते थे। उन्होंने उन असंख्य रोजमर्रा की प्रतिकूलताओं का उल्लेख किया, जिनका सामना उनकी मां ने किया और सफलतापूर्वक उन पर विजय प्राप्त की।
समय की पाबंद थीं मां
मां भी समय की उतनी ही पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है। एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं।