JSSC संशोधित नियमावली के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को झारखंड हाइकोर्ट मे सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ने दलील पेश की. राज्य सरकार ने एफिडेविट दायर कर कहा है कि JSSC नियमावली में संशोधन इसलिए किया गया है ताकि यहां के एजुकेशन सिस्टम को बेहतर किया जा सके. पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्ति नियमावलियों को लेकर जारी जजमेंट का हवाला देते हुए कोर्ट के समक्ष दलील पेश की गयी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से ऐसे सभी जजमेंट की कंपाइल कॉपी की मांग की है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की बेंच में हुई, मामले की अगली सुनवाई 16 फरवरी को होगी.
कोर्ट ने दिया था समय
दो सप्ताह पूर्व हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार को अंतिम मौका दिया था. जहां, मौखिक टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि सरकार को अंतिम दस दिनों का समय दिया जा रहा है. जब सरकार को कांउटर एफिडेविट फाइल करना है. हालांकि पिछले दो सुनवाई में कोर्ट ने सरकार पर नाराजगी व्यक्त की थी. जब कोर्ट ने नियमावली को असंवैधानिक बताया था. कोर्ट ने बताया था कि नियमावली रही तो आने वाली बहालियां भी प्रभावित होगी. सुनवाई चीफ जस्टिस के बेंच में होगी.
दायर याचिका में क्या है
प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है. याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है. जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है.
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