न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
शराब पीने से भले आपकी सेहत खराब हो जाये, लेकिन सरकारें खूब मोटी-तगड़ी होती हैं। क्योंकि इससे राज्यों को खूब राजस्व जो मिल जाता है। शराब से अब तक झारखंड सरकार को जो भी राजस्व प्राप्त होता था, लगता है उससे वह संतुष्ट नहीं है। इसलिए वह अब कारोबारियों की जेब में झांकने लगी है। उन पर दबाव दे रही है कि वे ज्यादा शराब बेचें और सरकार को ज्यादा लाभ पहुंचायें, वरना उनका कारोबार बंद!
शराब झारखंड की संस्कृति है।अब इसका नशा झारखंड सरकार पर भी चढ़ गया है। झारखंड ने नयी मद्यनीति को मंजूरी दी है, इस नयी मद्यनीति के तहत राज्य सरकार शराब बेचने के मोर्चे पर खुद खड़ी हो गयी है। वैसे यह कोई नयी मद्यनीति नहीं है, बल्कि यह पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की मद्यनीति की कॉपी है। इस नीति से सरकार के राजस्व पर जो भी असर पड़े, कारोबारियों पर इसका असर पड़ना ही पड़ना है। सरकार कारोबारियों से ही ज्यादा पैसा उगाह लेना चाहती है। कारोबारी भी इसके विरोध पर उतर आये हैं।
छत्तीसगढ़ी मॉडल क्यों अपना रही झारखंड सरकार?
हर राज्य का राजस्व एकत्र करने का अपना समीकरण होता है। दूसरे राज्य की राजस्व मॉडल किसी दूसरे राज्य पर फिट होगा या नहीं, यह वहां की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक धार्मिक… तमाम परिस्थितियों पर निर्भर होता है। कुछ समानताएं हो भी जायें तो भी वहां के स्थानीय लोगों की मानसिक सोच का भी अपना एक प्रभाव होता है। इस नाते सिर्फ नकल करने से यहां की सरकार को उसका कितना फायदा मिल जायेगा, इसके लिए तो थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।
यह तय हो चुका है कि शराब की खरीद-बिक्री में छत्तीसगढ़ मॉडल लागू होगा। बता दें, शराब की खरीद-बिक्री व राजस्व वृद्धि के लिए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कारपोरेशन लिमिटेड को कंसल्टेंट नियुक्त किया था, जिसने नयी शराब नीति पर उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग को अपनी रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट की समीक्षा के बाद उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के मंत्री जगरनाथ महतो ने नयी शराब नीति पर अपनी सहमति दी है। अब इससे संबंधित फाइल आगामी 24 फरवरी को प्रस्तावित कैबिनेट की बैठक में जाएगी। कैबिनेट की सहमति के बाद आगामी वित्तीय वर्ष में शराब की थोक व खुदरा बिक्री को राज्य सरकार अपने हाथों में ले सकती है।
प्रस्तावित नयी शराब-नीति का सरकारी प्लान
प्रस्तावित शराब नीति में अवैध शराब के परिचालन पर रोक लगाने व राजस्व बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा चेक पोस्ट बनाने, नकली शराब के धंधेबाजों को कड़ी सजा दिलाने, अवैध शराब के धंधेबाजों की धर-पकड़ तेज करने आदि से संबंधित प्रावधान हैं। साथ ही शराब की कीमत, देसी व विदेशी शराब एक ही काउंटर से बेचने व बार लाइसेंस के नियम को सुगम बनाने पर जोर दिया गया है।
सरकार की कारोबारी नीति सुगम तो फिर विरोध क्यों?
झारखंड सरकार शराब बेचने के लिए जो नियम बनाने जा रही है, उसी का विरोध कारोबारी कर रहे हैं। झारखंड बार एवं रेस्टोरेंट एसोसिएशन के अनुसार बार मालिकों पर 1 अप्रैल से सालभर के अंदर 11 हजार शराब की बोतलें बेचने का दबाव होगा। उन पर 18 हजार बीयर की बोतलें बेचने की भी बाध्यता होगी। फिर लाइसेंस रजिस्ट्रेशन की फीस सरकार तीन गुनी करने जा रही है। वर्तमान में बार की लाइसेंस फीस सालाना 9 लाख रुपये है, जिसे 1 अप्रैल से बढ़ाकर 27 लाख रुपये कर दिया जाएगा। वहीं मॉल में चलने वाले रेस्टोरेंट की लाइसेंस फीस 9 लाख से बढ़कर 31 लाख 20 हजार हो जाएगी।
किसी भी सरकार को राजस्व की चिंता अवश्य करनी चाहिए। लेकिन राज्य के लोगों की चिंता सरकारों की पहली प्राथमिकता है। कोरोना काल में रोजगार, कारोबार, उद्योग-धंधों के खत्म होने पर सभी राज्य सरकारें केन्द्र पर निशाना तो खूब साधती हैं। लेकिन खुद इस मार्ग से बच निकलना चाहती हैं। वे ऐसे मार्ग नहीं तलाशतीं जिससे लोग चैन से कारोबार कर सकें। आलोचना करना तो सहज है। अभी हाल में केन्द्र सरकार का आम बजट पेश हुआ, उसकी आलोचना करने वालों की कमी नहीं थी। झारखंड ने भी उसकी आलोचना की। आज जब उस पर एक जिम्मेदार सरकार होने की बारी आयी तो उसने अपने लिए आलोचनाओं का पिटारा खोल देने का मार्ग खोला दिया।
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