आ गये विघ्नहर्ता गणपति विनायक भक्तों के कष्ट दूर करने, 10 दिन करें श्रद्धा से भक्ति

भारतीय जनमानस में भगवान गणपति सबसे श्रद्धेय हैं, इसीलिए प्रथम पूज्य भी हैं। गणेशजी को विघ्न विनायक कहा जाता है क्योंकि भगवान गणेश विघ्नों के नाश भी करते हैं और मंगल भी करते हैं। वैसे तो गणेश चतुर्थी हर महीने मनायी जाती है, लेकिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर चतुर्दशी तक चलने वाले गणेशोत्सव की विशेष महत्ता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु में विशेष रूप से मनाया जाता है, लेकिन यह उत्सव पूरे भारत में बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाता है। महाराष्ट्र में 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की धूम ही निराली होती है।

गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। देश के कई जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। प्रतिमाओं का नौ दिनों तक पूजा होती है और चतुर्दशी के दिन पूरी श्रद्धा से अगले वर्ष शीघ्र आने की कामना के साथ विदाई दी जाती है।

भगवान गणेश इसलिए प्रथम पूज्य हैं,

को बुद्धि का देवता माना जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी नए काम को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा करने के बाद प्रारंभ होने वाला कार्य हर हाल में पूरा होगा। भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार आने से दो-तीन महीने पहले ही कारीगर भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं। गणेशोत्सव के दौरान बाजारों में भगवान गणेश की अलग-अलग मुद्रा में बेहद ही सुंदर मूर्तियां मिल जाती है। गणेश चतुर्थी वाले दिन लोग इन मूर्तियों को अपने घर लाते हैं। कई जगहों पर 10 दिनों तक पंडाल सजे हुए दिखाई देते हैं जहां गणेश जी की मूर्ति स्थापित होती हैं। प्रत्येक पंडाल में एक पुजारी होता है जो इस दौरान चार विधियों के साथ पूजा करते हैं। सबसे पहले मूर्ति स्थापना करने से पहले प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उन्हें कई तरह की मिठाइयां प्रसाद में चढ़ाई जाती हैं। गणेश जी को मोदक प्रिय है। इसे चावल के आटे, गुड़ और नारियल से बनाया जाता है। पूजा में गणपति को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है।

इस त्योहार के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं जिनमें से उनके माता-पिता माता पार्वती और भगवान शिव के साथ जुड़ी कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है। शिवपुराण में रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड में वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया था। भगवान शिव ने जब भवन में प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे पार्वती नाराज हो उठीं। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। भगवान शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काट कर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्र पूज्य होने का वरदान दिया।

स्वतंत्रता आंदोलन और गणेश चतुर्थी पर्व

आजादी से पहले लोगों में अंग्रेजों के प्रति भय को खत्म करने के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की और सबसे पहले पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव का आयोजन किया गया। देश की आजादी के आन्दोलन में गणेश उत्सव ने बहुत महत्वपूण भूमिका निभायी थी।

1894 से पहले लोग अपने घरों में गणपति उत्सव मनाते थे लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे। पुणे के शनिवारवडा के गणपति उत्सव में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों को चेतावनी दी कि हम गणपति उत्सव मनाएगे, अंग्रेज पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके दिखाये। कानून के मुताबिक अंग्रेज पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम मे एकत्रित भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन किसी धार्मिक समारोह मे उमड़ी भीड़ को नहीं।

20 अक्तूबर 1894 से 30 अक्तूबर 1894 तक पहली बार 10 दिनों तक पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव मनाया गया। लोकमान्य तिलक वहां भाषण के लिए हर दिन किसी बड़े नेता को आमंत्रित करते। 1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा मे 11 गणपति स्थापित किए गए। उसके अगले साल 31 और अगले साल ये संख्या 100 को पार कर गई। फिर धीरे-धीरे महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरों अहमदनगर, मुंबई, नागपुर, थाणे तक गणपति उत्सव फैलता गया। गणपति उत्सव में हर वर्ष हजारों लोग एकत्रित होते और बड़े नेता उसको राष्ट्रीयता का रंग देने का कार्य करते थे। इस तरह लोगों का गणपति उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ता गया और राष्ट्र के प्रति चेतना बढ़ती गई।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस- झारखंड-बिहार

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