बाबूजी, बाबा, अब्बा, पापा का है दिन, प्रणाम करें!
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
जन्म देने वाला, पालनहार, सबसे जिम्मेदार, सम्मानित, महान, सर्वोच्च। ये सब वे विशेषताएं हैं, जो हर व्यक्ति अपने पिता में देखता है, क्योंकि पिता ही हमें बनाते हैं, सिखाते हैं और हमारा निर्माण करते हैं। इसलिए पिता का रिश्ता सर्वोच्च है। शायद पिता के इन्हीं सब गुणों के कारण सबके पालनहार ईश्वर को परमपिता कहते हैं।
फादर्स डे आज से 122 साल पहले 19 जून को मनाया गया था। फादर्स डे भारत का मूल रिवाज नहीं है, बल्कि पश्चिमी देशों के प्रभाव से देश के कुछ बड़े शहरों में मनाया जाता है। वैसे, दुनिया भर के अलग-अलग हिस्सों में फादर्स डे अलग-अलग दिन मनाया जाता है, लेकिन भारत, अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ग्रीस, मैक्सिको, पाकिस्तान, आयरलैंड, वेनेजुएला और अर्जेंटीना आदि देशों में यह जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है।
कैसे शुरू हुआ फादर्स डे
फादर्स डे मनाने के पीछे एक कहानी प्रचलित है। एक अमेरिकी युवती सोनोरा स्मार्ट डोड के प्रयास के कारण ही फादर्स डे आरम्भ हो सका। दरअसल, एक चर्च में मदर्स डे पर आयोजित एक कार्यक्रम के बाद सोनोरा स्मार्ट डोड ने पिता दिवस को भी मान्यता दिलवाने का प्रण लिया। उसके पिता ने उसे और उसके 5 भाइयों को उसकी माता की मृत्यु के बाद अकेले पाला था। अपने पिता के प्यार, त्याग और समर्पण को देखकर सोनोरा स्मार्ट डोड ने सोचा कि पिता के नाम पर भी एक दिन होना चाहिए। उसी के प्रयासों से 19 जून को पिता दिवस मनाया गया। इसके बाद 1966 में अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे फादर्स डे मनाने की आधिकारिक घोषणा की। फिर 1972 से अमेरिका में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाने लगा।
हिंदू परंपरा में पिता
विश्व में आज कई परम्पराएं प्रचलित हैं, उनके मनाने के तौर-तरीके अलग हैं। भारतीय परम्परा इन परम्पराओं पर पृथक सोच रखती है। भारत में माता-पिता को सम्मान देने के लिए कोई दिवस तय नहीं है, वे हर दिन पूजनीय हैं। जीवित पिता को सम्मान देना भारतीय परम्परा का अनिवार्य अंग है, पितरों को सम्मान देने की भी विशेष परम्परा है। भारत आज पश्चिम देशों की नकल कर ‘फादर्स डे’ मनाता है, लेकिन पितरों को पूरे एक पक्ष यानी पन्द्रह दिन विशेष रूप से याद करता है। पितर पूजा हिंदू बाहुल्य वाले भारत तथा नेपाल में विशेष प्रचलित है। इन दिनों में पूर्वजों को याद करने के साथ-साथ वैदिक परम्पराओं अनुसार जल तर्पण का विधान है ताकि पूर्वज संतुष्ट हों और अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करें।
पौराणिक ग्रंथों में पिता का माहात्म्य
सनातन धर्म में पिता का महत्व युगों से प्रासंगिक है। रामायण, महाभारत, पुराणों में पिता का महत्व बतलाया गया है। महाभारत में भीष्म और उनके पिता शांतनु की कथा वर्णित है। यह घटना महाभारत का एक बहुत बड़ा टर्निंग पाइंट भी मानी जाती है। भीष्म के पिता राजा शांतनु को निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम हो जाता है। वह उसके पिता के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। सत्यवती के पिता राजा शांतनु से वचन मांगते हैं कि उसकी पुत्री से उत्पन्न संतान ही राजा बने। शांतनु ऐसा नहीं कर पाते हैं। जब यह बात भीष्म को पता चली तो वह निषाद राज के पास जाते हैं और भीष्म प्रतिज्ञा करते हैं कि वह आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और सत्यवती की संतान ही राजा बनेगी। शांतनु अपने पुत्र की भीष्म प्रतिज्ञा से प्रसन्न होकर उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दे देते हैं।
महाभारत में पुत्र अभिमन्यु के वध का बदला लेने की अर्जुन की प्रतिज्ञा भी पिता के प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है। अर्जुन अपने पुत्र अभिमन्यु से बहुत प्रेम करते थे। युद्ध में कौरवों ने छल से अभिमन्यु का वध कर दिया था। चूंकि दुर्योधन के बहनोई जयद्रथ की भूमिका के कारण ही अभिमन्यु युद्ध में मारा जाता है। इसलिए अर्जुन प्रण लेते हैं कि वह अगले दिन सूर्य ढलने से पहले जयद्रथ का वध करेंगे अन्यथा चिता में आत्मदाह कर लेंगे। अपने वचन के अनुसार अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्थ होने से पहले जयद्रथ का वध कर अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु का बदला पूरा किया था।
रामायण के पिता दशरथ का अपने पुत्र राम के प्रति जगजाहिर है। अयोध्या के राजा दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र श्रीराम से बहुत प्रेम करते थे। वह श्रीराम को राजा बनाना चाहते थे, लेकिन अपने वचनबद्ध होने के कारण न चाहते हुए भी राम को वनवास पर भेजते हैं। फिर भी वनवास पर जाने से पहले वह श्रीराम से कहते हैं कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ, लेकिन वन मत जाओ। श्रीराम के वनवास जाने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए थे।
रामायण की ही घटना है। राम के हाथों बालि का वध होता है, लेकिन मरने से पहले वानरराज बाली अपने पुत्र अंगद को राम को सौंप देता है। क्योंकि बाली जानता था कि राम ही उसके पुत्र अंगद का उद्धार कर उसकी शक्ति का सदुपयोग कर सकते हैं।
महाभारत में यक्ष और युधिष्ठिर संवाद प्रचलित प्रसंग है। यक्ष के एक प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहते हैं- आकाश से ऊंचा पिता है।
पुराणों में भी जिक्र मिलता है- सर्वदेव मय: पिता। यानी सभी देवता पिता में हैं।
पिता समतुल्य सम्मान
देश महात्मा गांधी को बापू कहकर पुकारता है। गांधीजी को देश ने औपचारिक रूप से ‘राष्ट्रपिता’ और प्रेम से ही ‘बापू’ कहा है। संविधान निर्माता भीमराव आम्बेडकर को ‘फादर ऑफ कॉन्स्टिट्यूशन’ और प्रेम से ‘बाबा साहब’ कहा जाता है। मौलाना अबुल कलाम आजाद को ‘अबुल’ शब्द महात्मा गांधी ने दिया था। ‘अबुल’ का अर्थ होता है ‘फादर ऑफ लिटरेचर’। धर्मगुरु ‘पोप’ और चर्च में पादरी को फादर कहा जाता है। धर्मगुरुओं को ‘बाबा’ कह कर सम्मान देने की परम्परा है। जीवन बनाने और बदलने वाले को ‘गॉडफादर’ कहा जाता है।
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