झारखंड के ग्रामीण इलाकों में इन दिनों जंगली हाथी ने आतंक (Elephant terror in Jharkhand) मचा रखा है. जान गंवा चुके हैं. गत सोमवार-मंगलवार की रात रांची जिले के प्रखंड में हाथी के हमले में चार लोगों की जान गई है. घटना के बाद से इटकी ब्लॉक में धारा 144 लागू कर दी और ग्रामीणों को विशेष रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान अपने घरों के अंदर रहने के लिए कहा गया है, ताकि हाथी के हमले में और लोग हताहत न हों. पिछले 12 दिनों में हजारीबाग, रामगढ़, चतरा, लोहरदगा और रांची जिलों में 16 लोगों को हाथियों ने मार डाला है. झारखंड में हजारीबाग, सिमडेगा, गिरिडीह, खूंटी सहित 15 से अधिक जिले हैं, जहां जंगली हाथियों का आतंक है. इसमें हजारीबाग जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है जहां, हाथियों के गांव में घर तोड़ने या फसल बर्बाद करने की खबरें सबसे ज्यादा आती है. झारखंड में हाथियों का आतंक (Elephant terror in Jharkhand) लगातार बढ़ता जा रहा है, यह चिंता का विषय है.

हाथियों के रहने का सिकुड़ता जा रहा है दायरा
राजधानी रांची से सटे क्षेत्रों में हाथियों के उग्र होने की घटना से ग्रामीण भय के माहौल में जी रहे हैं. इन घटनाओं पर नियंत्रण लगाना अति आवश्यक है. ऐसे में वन संरक्षक की अगुआई में चार संभागों के वन अधिकारियों की बनी समिति से यह उम्मीद है कि वह यह जल्द तय करे कि क्या एक ही हाथी के हमले में ही सभी 16 लोगों की मौत हुई है? साथ ही समिति इस बात का भी पता लगाए कि मतवाले की तरह व्यवहार करने वाला यह हाथी जानबूझकर लोगों पर हमला कर रहा है या लोग अपनी मौत के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं. हाथियों के इस तरह के हिंसक व्यवहार या मानव- हाथी संघर्ष की वजहों के पीछे का प्रमुख कारण हाथियों के रहने का सिकुड़ता दायरा है. राज्य में बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियों के बीच जानवरों के आवास सिकुड़ते जा रहे हैं. अगर उनके रास्ते रोके गये हैं तो वह भटक कर दूसरे गांवों तक पहुंचेंगे ही.

मानव- हाथी संघर्ष की घटना में वृद्धि हुई है
हाथियों के हमले की हम यदि पिछले वर्ष से तुलना करें तो राज्य में मानव- हाथी संघर्ष की घटना में वृद्धि हुई है. गत वर्ष हाथी के हमले में 133 लोगों की मौत हुई.जो कि इससे पहले की साल की तुलना में 84 ज्यादा है. एक आंकड़े की मानें तो 2017 के बाद से पांच साल की अवधि में मानव हाथी संघर्ष में राज्य में 462 लोग मारे गए. अनियोजित विकास कार्य, खनन गतिविधियों, अनियमित चराई, माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ों ने जानवरों के आवासों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. जहां एक ओर राज्य के वन क्षेत्रों में वृद्धि हुई है, वहीँ यह भी सच है कि एक दशक में जानवरों के आवास सिकुड़े हैं. हाथियों के सामने जंगलों के सिकुड़ते जाने से उनके सामने भोजन की समस्या भी खड़ी हो गई है. हमारे देश में पर्यावरणीय पर्यटन से जुड़े नियम-कानून बहुत कमजोर हैं. इसी का लाभ उठाकर वन्य प्राणियों की शरणस्थलियों का मनमाना उपयोग भी किया जा रहा है. उनके विचरण-पथ को बाधित किया जा रहा है, जिसके चलते पशु अन्य वैकल्पिक मार्गों का सहारा लेते हैं, जो मानव के साथ उनके टकराव का कारण बनता है. दरअसल बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, वनोन्मूलन, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण मानव-हाथी टकराव को बढ़ावा दिया है. ऐसे में यह जरूरी है कि विकास के साथ इनके लिए जो अनुकूल स्थान हैं, को संरक्षित किया जाए, अन्यथा मानव हाथी संघर्ष समय के साथ बढ़ता ही जाएगा. जिससे मानव जीवन, संपत्ति और फसलों को नुकसान हो सकता है.
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