Dumri byelection : झारखंड में जगरनाथ महतो (jagarnath mahto)के निधन के बाद डुमरी (गिरिडीह) विधानसभा सीट पर उपचुनाव की सुगबुगाहट के बीच मुख्य राजनीतिक दलों ने चुनाव (Dumri byelection) की तैयारी तेज कर दी है. साथ ही चर्चा इस बात की जोरों पर है कि जगरनाथ महतो की जगह अब कौन लेगा? झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जगरनाथ महतो के रूप में कुर्मी समाज का लोकप्रिय और जनाधार वाला नेता खो दिया है.
इन कुर्मी बहुल एरिया में भी था प्रभाव
जगरनाथ महतो झारखंड सरकार के केवल एक शिक्षा मंत्री मात्र नहीं थे. वह कुर्मी बहुल गिरिडीह, बोकारो और धनबाद इलाके में झामुमो के प्रभावशाली नेता भी थे। इस क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ थी. इस लिहाज से जगरनाथ महतो (jagarnath mahto) के जाने के बाद हेमंत सोरेन सरकार के अंदर और बाहर, दोनों के समीकरण बदलने की संभावना बढ़ गई है.

खुद सीएम हेमंत सोरेन भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि कुर्मी समाज जितना इन पर विश्वास करता था, उतना यहाँ के इस समाज के नेता पर शायद नहीं.यही कारण है कि हेमंत सरकार में उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिली. इसलिए यह बात स्पष्ट है कि अगर बेबी देवी झामुमो की ओर से प्रत्याशी बनाई जाती है तो उन्हें इस सीट पर जबरदस्त जीत मिल सकती है. साथ ही अन्य कुर्मी बहुल विधानसभा क्षेत्र के कुर्मी मतदाताओं में इससे अच्छा सन्देश जाएगा. जिसका फायदा जेएमएम को आगे हो सकता है.
पत्नी बेबी देवी या ‘ट्रिपल एम’ गठजोड़ से कोई और?
पार्टी सूत्रों के मुताबिक दिवंगत जगरनाथ महतो (jagarnath mahto) की पत्नी बेबी देवी होंगी. डुमरी के उपचुनाव (Dumri byelection) में झामुमो द्वारा उन्हें चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी की जा रही है. चूंकि उनके बेटे की उम्र 25 वर्ष से कम है, इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि दिवंगत जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी डुमरी विधानसभा उपचुनाव में जेएमएम की ओर से प्रत्याशी होंगी. लेकिन दूसरी ओर महतो समाज के साथ मांझी और मुस्लिम चेहरे में से किसी की उम्मीदवारी की भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहां जेएमएम जिस सामाजिक समीकरण को आधार बनाकर सियासत करता रहा है, उसमें महतो, मांझी मुस्लिम यानी कि ‘ट्रिपल एम’ को दरकिनार नहीं किया जा सकता, क्योंकि झामुमो ने 2019 में इसी सोशल इंजीनियरिंग के तहत 30 सीटों पर जीत हासिल की थी.
1977 से लेकर 2009 तक के चुनाव में झामुमो का पांच बार कब्जा रहा
वर्ष1972 में कांग्रेस के मुरली भगत यहां से विधायक बने थे. उसके बाद से कांग्रेस का कोई प्रत्याशी यहां मजबूत स्थिति में नहीं सका. 1977 से लेकर वर्ष 2009 तक के चुनाव में इस सीट पर झामुमो का पांच बार कब्जा रहा है. तीन बार सूबे के प्रथम ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो विधायक बने हैं. 1977 के पहले राजा पार्टी कांग्रेस का इस सीट पर वर्चस्व रहा था. वर्ष 1952 के पहले इस सीट से कांग्रेस के लक्ष्मण मांझी विजयी हुए. वर्ष 1957 के चुनाव में छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी (राजा पार्टी) के प्रत्याशी हेमलाल प्रगणैत विधायक बने. 1962 में राजा पार्टी के हेमलाल ही विजय हुए. 1967 में राजा पार्टी के एस मंजरी विजयी हुए. 1969 के मध्यावधि चुनाव में राजा पार्टी के कैलाशपति विधायक बने. 1972 में कांग्रेस के मुरली भगत जीते. 1977 में कांग्रेस प्रत्याशी मुरली को लालचंद महतो ने जनता पार्टी के बैनर तले पराजित किया. 1980 में पहली बार इस सीट से झामुमो ने खाता खोला तथा झामुमो प्रत्याशी शिवा महतो विजय हुए. उन्होंने लालचंद महतो को पराजित किया. 1985 में पुन: झामुमो के शिवा महतो जीते. उन्होंने लोकदल के लालचंद को पराजित किया. 1990 के चुनाव में लालचंद जनता दल के टिकट पर लड़कर दूसरी बार विधायक बने. 1995 में झामुमो के शिवा महतो ने समता पार्टी के लालचंद को हराया. 2000 में लालचंद जदयू के टिकट पर तीसरी बार विधायक बने.

2005 में पहली बार हासिल की थी विधायकी
2005 के चुनाव में झामुमो के जगरनाथ महतो (jagarnath mahto) ने राजद के लालचंद महतो को परास्त कर पहली बार विधायकी हासिल की थी. वर्ष 2009 में उन्होंने लालचंद महतो को दूसरी बार पराजित किया.2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में डुमरी विधानसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी जगरनाथ महतो ने बाजी मारी थी. उन्हें कुल 77984 वोट पड़े थे और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के लालचंद महतो को 32481 मतों से हराया था. 2009 में और 2005 के विधानसभा चुनाव में भी जगरन्नाथ महतो ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर इस सीट से जीत हासिल की थी.