दूर्गापूजा के बाद हर्ष और प्रसन्नता के पर्व दीपावली का समापन हो गया है। छोटी दीपावली, गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, चित्रगुप्त पूजा एक-दो दिनों में समाप्त हो जायेंगे। उसके बाद आयेगा भक्ति और आस्था का सैलाब। दीपावली की समाप्ति के साथ लोक आस्था और सूर्योपासना के महापर्व छठ की गूंज सुनाई देने भी पड़ी है। छठ पर्व के मधुर गीत कुछ दिनों पहले से ही कानों में मिस्री घोलने लगे हैं। नदी, तालाबों, सरोवरों की साफ-सफाई का काम भी पहले से ही शुरू हो चुका है। अब इस काम में तेजी आयेगी ताकि छठ-व्रती स्वच्छता के इस महापर्व को पूरी भक्ति के साथ सम्पन्न कर सकें। छठ कठोर साधना का महापर्व है। कहा जाता है कि कश्यप ऋषि के कहने पर माता अदिति ने जब यह व्रत किया तब इस व्रत के प्रभाव से उनकें गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया था।
आज राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तरराष्ट्रीय हो चुका है छठ महापर्व
छठ पर्व की शुरुआत जब हुई हो, मगर आज यह पर्व राष्ट्रव्यापी ही नहीं, बल्कि अन्तरराष्ट्रीय हो गया है। बिहार के अलावा पहले देश के दूसरे राज्यों यहां तक कि पड़ोसी राज्यों में भी छठ व्रत की कोई जानकारी नहीं थी। कुछ वर्षों पहले तक छठ पर्व बिहार के लोग ही किया करते थे, लेकिन आज भारत का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां छठ पर्व नहीं किया जाता है। दुनिया के कई देशों, अमेरिका, कनाडा, यूरोप, आस्ट्रेलिया, मॉरिशस समेत अनेक कई देशों में छठ पर्व वहां उपलब्ध पूजन सामग्री के अनुसार किया जाता है।
छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है यह व्रत स्वच्छता और आस्था के साथ किया जाता है। इस व्रत में दूसरे व्रतों-पूजा की तरह पुरोहितों की जरूरत नहीं पड़ती है। यह पर्व पूरी तरह से आडंबरों से दूर है। इस व्रत में तो किसी मूर्ति-प्रतिमा की भी आवश्यकता नहीं होती। इस व्रत के देव तो प्रत्यक्ष देव सूर्य भगवान हैं।
चार दिनों तक चलता है छठ महापर्व
दीपावली बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत हो जाती है। चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन व्रती कद्दू-भात का सेवन करते हैं। पंचमी को खड़ना पूजा के साथ व्रतियों का 36 घंटे का व्रत प्रारम्भ हो जाता है। खड़ना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती सप्तमी को उषा अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत तोड़ते हैं। षष्ठी के दिन व्रती नदी, तालाब, सरोवरों में जल में खड़े होकर प्रत्युषा अर्घ्य (डूबते सूरज को अर्घ्य) देते हैं। फिर सप्तमी को उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य) देने के साथ व्रत का समापन हो जाता है।
छठ की पौराणिक कथाएं
मान्यता है कि सूर्योपासना के महापर्व की परम्परा पौराणिक काल से चली आ रही है। वैसे तो यह निर्धारित करना बहुत कठिन है कि इसकी शुरुआत कब हुई और पहली बार किसने छठ पर्व किया था, लेकिन माना जाता है कि पौराणिक कथाओं में छठ व्रत किया जाने के कई उदाहरण हैं। सूर्य को अर्घ्य देने की कथा का वर्णन महाभारत और रामायाण में भी मिलता है। वनवास के दौरान द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर छठ व्रत का अनुष्ठान किया था। कुंती के पहले पुत्र और पांडवों के सबसे बड़े भाई कर्ण ने ही जल में रहकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा की शुरुआत की थी। भगवान श्रीराम भी सूर्यवंशी राजा थे। इसलिए सूर्य की उपासना उनके पूर्वजों द्वारा किये जाने के भी उदाहरण मिलते हैं। पौराणिक उदाहरण अपनी जगह हैं, लेकिन वर्तमान में माना जा सकता है कि बिहार से ही छठ व्रत की शुरुआत हुई होगी। आज चूंकि पूरे देश में बिहार के लोग निवास करते हैं। इसलिए वह यह धार्मिक परम्परा भी अपने साथ लेते गये। यह बड़े हर्ष की बात है कि पूरे देश ने भी छठ व्रत की परम्परा को हृदय से स्वीकार किया है और उसी आस्था के साथ वहां भी यह व्रत किया जाता है। अब तो सूर्योपासना के इस महापर्व के आगे तो पूरा विश्व नतमस्तक है।
चार दिवस छठ व्रत में किस दिन कौन-सा अनुष्ठान
- 17 नवंबर – नहाय खाय (कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी)
- 18 नवंबर – खड़ना (कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी)
- 19 नवंबर – अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्ध्य (कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी)
- 20 नवंबर – उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्ध्य (कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी)
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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