रांची के रिम्स डीआईजी ग्राउंड इलाके में हुई कार्रवाई ने सरकारी व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। एक ही जमीन का दो बार म्यूटेशन, नक्शा पास, रेरा से प्रमाणन और बैंकों से होम लोन मिलने के बाद भी 16 फ्लैट मालिकों समेत कुल 24 परिवार आज बेघर हो गए हैं। करोड़ों रुपये की पूंजी मलबे में तब्दील हो रही है और सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं है।
सरकारी चूक की कीमत आम लोगों ने चुकाई
जिन लोगों ने अपनी पूरी जमापूंजी, रिटायरमेंट फंड और बैंक कर्ज के भरोसे घर खरीदे थे, वे आज सड़क पर खड़े हैं। प्रशासन का तर्क है कि जमीन विवादित थी, लेकिन सवाल यह है कि अगर जमीन विवादित थी तो वर्षों तक निर्माण कैसे चलता रहा। उसी जमीन पर नक्शा पास हुआ, म्यूटेशन हुआ, रेरा सर्टिफिकेट मिला और बैंकों ने दस्तावेज जांचकर होम लोन तक दे दिया।
अब अचानक उसी इमारत पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। यह सिर्फ अतिक्रमण हटाने का मामला नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का बड़ा उदाहरण बन गया है।
12 करोड़ का अपार्टमेंट, 16 परिवार उजड़े
रिम्स के साउथ ब्लॉक में बने आनंदम अपार्टमेंट पर हुई कार्रवाई ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। करीब 12 करोड़ की लागत से बने इस चार मंजिला अपार्टमेंट में कुल 20 फ्लैट थे, जिनमें से 16 फ्लैट बिक चुके थे। हर फ्लैट पर 65 से 80 लाख रुपये खर्च किए गए थे, जबकि इंटीरियर पर अलग से 15 से 20 लाख रुपये लगाए गए। कुछ ही दिनों में यह पूरी इमारत मलबे में तब्दील हो जाएगी।
विवादित जमीन, फिर भी नक्शा पास और म्यूटेशन
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जमीन को लेकर कोर्ट में मामला चल रहा था। इसके बावजूद नगर निगम ने नक्शा पास किया, अंचल कार्यालय ने म्यूटेशन कर दिया और रेरा ने परियोजना को वैधता दे दी। बैंकों ने भी सभी कागजात सही मानकर करोड़ों रुपये का लोन स्वीकृत कर दिया।
अब सवाल उठ रहा है कि अगर जमीन रिम्स द्वारा अधिग्रहित थी तो रजिस्ट्री कैसे हुई, और अगर रजिस्ट्री गलत थी तो म्यूटेशन कैसे हो गया। इस पूरी प्रक्रिया में किस स्तर पर चूक हुई, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
एक ही जमीन का दो बार म्यूटेशन
डीआईजी ग्राउंड के पास ही रिम्स के पूर्व चिकित्सक डॉ. आईडी चौधरी का दो मंजिला मकान भी तोड़ा गया। उनका दावा है कि जमीन रैयती है और वर्ष 2004 में उसका विधिवत म्यूटेशन हो चुका था। बीते 20 वर्षों से वे नियमित टैक्स भी भरते रहे, लेकिन अब उसी जमीन का दोबारा म्यूटेशन कर उसे रिम्स की जमीन बताया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का सवाल है कि अगर जमीन गलत थी तो 20 साल पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई। अब जब मकान बन गए और परिवार बस गए, तब बुलडोजर चलाना कितना न्यायसंगत है।
बुलडोजर के साए में बिखरते सपने
कार्रवाई के दौरान कई मार्मिक दृश्य सामने आए। कहीं बच्चे स्कूल नहीं जा पाए, तो कहीं गर्भवती महिलाएं बेघर हो गईं। लोग टूटे हुए मकानों से अपना जरूरी सामान निकालते दिखे। आंखों में आंसू और चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी।
फ्लैट मालिकों का कहना है कि वे कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन सरकारी गलती की सजा उन्हें क्यों दी जा रही है। अधिकारी सिर्फ आदेश का हवाला देकर कार्रवाई कर रहे हैं, लेकिन यह बताने को कोई तैयार नहीं कि गलती किसकी है।
करोड़ों का नुकसान, कर्ज का बोझ बरकरार
इस कार्रवाई से 16 फ्लैट मालिकों की करोड़ों रुपये की पूंजी डूब चुकी है। घर टूट जाएगा, लेकिन बैंक की ईएमआई चलती रहेगी। कई परिवारों ने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई घर में लगा दी थी।
पीड़ितों का सवाल है कि जब बैंकों ने दस्तावेज जांचकर लोन दिया, तो अब वे किस आधार पर ईएमआई चुकाएं। बिल्डर गायब है और पूरा बोझ आम लोगों पर डाल दिया गया है।
जवाबदेही तय करने की मांग
पीड़ित परिवारों ने दोषी अधिकारियों, बिल्डर और जमीन मालिकों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। साथ ही मुआवजा, बैंक लोन पर राहत और पुनर्वास की मांग भी उठ रही है।
रिम्स और डीआईजी ग्राउंड की यह कार्रवाई अब सिर्फ अतिक्रमण हटाने का मामला नहीं रह गई है, बल्कि सरकारी दस्तावेजों, म्यूटेशन और सिस्टम की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल बन चुकी है। आम आदमी अब पूछ रहा है—अगर सरकारी कागज और बैंक लोन भी सुरक्षित नहीं हैं, तो आखिर भरोसा किस पर किया जाए?