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सास पर हाथ उठाना या गाली देने पर बहू को हो सकती है उम्रकैद तक सजा, जानिए पूरा कानून

अगर बहू सास से मारपीट या गाली-गलौज करती है तो उसे जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है। IPC की धारा 323, 324, 325, 326 और 509 के तहत क्या है कानून, यहां पढ़ें पूरी जानकारी।

सास–बहू का रिश्ता अक्सर खट्टा-मीठा माना जाता है। आपसी समझदारी हो तो घर सुख-शांति से चलता है, लेकिन जब रिश्तों में तनाव बढ़ता है तो बात विवाद, गाली-गलौज और मारपीट तक पहुंच जाती है। कई मामलों में देखा गया है कि बहुएं अपनी सास के साथ दुर्व्यवहार करती हैं, उन्हें गालियां देती हैं या शारीरिक हिंसा तक कर बैठती हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि यदि बहू सास पर अत्याचार करे, तो सास के पास क्या कानूनी अधिकार हैं?

सास के खिलाफ हिंसा या गाली-गलौज पड़ेगी भारी

अक्सर डर के कारण सासें चुप रह जाती हैं कि कहीं बहू घरेलू हिंसा या दहेज कानून का गलत इस्तेमाल न कर दे। लेकिन कानून सभी के लिए समान है। यदि बहू सास के साथ मारपीट, अपमान या मानसिक-शारीरिक उत्पीड़न करती है, तो सास भी उसके खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करा सकती है और कड़ी कानूनी कार्रवाई संभव है।

सास के क्या हैं कानूनी अधिकार

अगर सास द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में लगाए गए आरोप सही साबित होते हैं, तो अदालत बहू के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं में सजा सुना सकती है।

  • IPC धारा 323: साधारण मारपीट या चोट पहुंचाने पर

  • IPC धारा 324: खतरनाक हथियार से चोट पहुंचाने पर

  • IPC धारा 325: गंभीर चोट पहुंचाने पर

  • IPC धारा 326: गंभीर चोट या जानलेवा हमला

  • IPC धारा 509: गाली-गलौज, अपमानजनक शब्द या महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने पर

कितनी हो सकती है सजा

  • धारा 323: 1 साल तक की जेल या 1,000 रुपये जुर्माना या दोनों

  • धारा 324: कुछ महीनों से लेकर 3 साल तक की जेल और जुर्माना

  • धारा 325: 7 साल तक की जेल और जुर्माना

  • धारा 326: 10 साल तक की जेल या आजीवन कारावास और जुर्माना

  • धारा 509: 3 साल तक की जेल और जुर्माना

जानना जरूरी

कानून सिर्फ बहू की सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि सास और बुजुर्ग महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए भी है। यदि कोई बहू अपनी सास के साथ हिंसा, अपमान या दुर्व्यवहार करती है, तो सास को चुप रहने की जरूरत नहीं है। वह पुलिस और अदालत की मदद लेकर न्याय पा सकती है।

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य कानूनी जागरूकता के लिए है। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले विशेषज्ञ या वकील से सलाह लेना जरूरी है।

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