दुमका जिला के मसलिया और जामा प्रखंड के विभिन्न गांवों में रविवार को परम्परागत मांझी परगना व्यवस्था के तहत बैठक कर संताली ओल चिकी लिपि को सभी शिक्षण संस्थानों में लागू करने की मांग की है। दुमका और राज्य के संताल बाहुल्य क्षेत्र के सरकारी भवनों के नामपट्ट संताली के ओलचिकी लिपि से भी लिखने के मांग की गई. जिला के मसलिया और जामा के झिलुवा,मसलिया,उपरबहाल आदि गांव में बैठक किया गया. बैठक के पूर्व ग्रामीणों ने पूज्य स्थल मंझी थान में पूजा अर्चना और गांव को चलाने वाले मंझी बाबा,नायकी,जोग मंझी आदि और ग्रामीणों का मांग है कि बंगाल राज्य के तर्ज पर झारखण्ड में भी सभी शिक्षण संस्थानों में सभी विषयों का पढाई संताली के ओल चिकी लिपि से भी किया जाए जाये।
झारखंड राज्य बनने के 25 वर्षों के बाद भी संताल आदिवासी समुदाय का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हुआ.कार्मिक,प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के पत्रांक 15/विविध-एक फरवरी 2019 का.-1359 , दिनांक तेरह फरवरी-2019 के अनुसार संताल बाहुल्य क्षेत्रो में सरकारी कार्यालयों, के नामपट्ट में संताली भाषा के ओलचिकी लिपि में भी नाम अंकित करने का दिशा निर्देश प्राप्त है.उसके बाद भी अभी तक दुमका जिला के साथ राज्य के अन्य संताल बाहुल्य क्षेत्रो के कई कार्यालयों में नामपट्ट संताली के ओलचिकी लिपि से नही लिखा गया है.अत: सभी छूटे हुए सरकारी कार्यालयों भवनों के नामपट्ट में संताली भाषा के ओलचिकी लिपि में भी कार्यलय का नाम अंकित किया जाय.ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार,प्रशासन जल्द हमारी मांगो को पूरा नही करती है तो आन्दोलन को और तेज किया जायेगा,यह संताल समुदाय के अस्तित्व और सम्मान कि बात है।
इस मौके में सुरेंद्र किस्कू,लखन किस्कू,देना किस्कू, सुनील किस्कू,लुखिराम किस्कू,गोपिन किस्कू, चुरू मुर्मू, देवराज हेम्ब्रम,लखिन्दर हेम्ब्रम,मनोज मुर्मू,सूर्यदेव हेम्ब्रम, संजय हांसदा,मार्गेन मरांडी, राजकिशोर मरांडी आदि उपस्थित थे।
दुमका से आगस्टीन हेम्बरम की रिपोर्ट/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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