Jharkhand: कांग्रेस गठबंधन की डुबायेगी नैया या फिर हेमंत-कल्पना बनेंगे खेवैया?

झारखंड विधानसभा चुनाव का प्रथम चरण अब सिर पर आ गया है। 11 नवम्बर को प्रथम चरण का चुनाव प्रचार भी खत्म हो जायेगा। एनडीए की ओर से भाजपा और आजसू ने पूरा जोर लगाया हुआ है। झामुमो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के दम पर धुआंधार चुनाव प्रचार में जुटा हुआ है। लेकिन हैरत की बात है कि इंडी गठबंधन की सहयोगी पार्टी का चुनाव प्रचार में अभी दम दिख ही नहीं रहा है। 8 नवम्बर को राहुल गांधी के झारखंड दौरे और उससे पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के के दौरे को छोड़ दें तो कांग्रेस के बड़े चेहरे झारखंड में नदारद हैं। अब नहीं आयेंगे तो कब आयेंगे? 13 नवम्बर को झारखंड में प्रथम चरण में कुल 43 सीटों पर मतदान होना है। इन 43 सीटों में कांग्रेस 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यानी कांग्रेस के कुल 29 उम्मीदवारों में से करीब फिफ्टी परसेंट। फिर चुनाव प्रचार में ऐसी उदासीनता? ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के उम्मीदवार अपने चुनाव  क्षेत्रों में प्रचार और जनसम्पर्क में नहीं जुटे हुए हैं, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का जो जमावड़ा आम तौर पर होता है, वह नहीं दिख रहा है।

झारखंड में कांग्रेस इंडी गठबंधन का महत्वपूर्ण घटक है। इंडी गठबंधन की जीत-हार सभी दलों के आपसी सहयोग पर ही निर्भर है। मगर, झामुमो इंडी गठबंधन की जीत को लेकर जितना चिंतित है, उतना कांग्रेस नहीं दिख रही। अब तो हालत यह है कि झामुमो के शीर्ष दो नेता हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन कांग्रेस के क्षेत्रों में भी जाकर जनसभाओं को सम्बोधित कर रहे हैं, लेकिन ऐसा कांग्रेस के साथ नहीं दिख रहा है। वह अपने दूसरे सहयोगियों के साथ ऐसा सहयोग नहीं कर पा रहा है।

सच देखा जाये तो, झामुमो ने प्रचार की अधिकांश जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है, क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने आधे-अधूरे मन से काम किया है और उसके अधिकांश शीर्ष नेता अभी तक मैदान में नहीं दिखे हैं। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के प्रचार अभियान से बड़े पैमाने पर अनुपस्थित रहने के कारण, झामुमो के शीर्ष नेता हेमंत सोरेन और स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन ने राज्य भर में झामुमो और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के लिए ताबड़तोड़ दौरे और लगातार बैठकें करके मोर्चा संभाल लिया है।

अब तो लोग दबी जुबान से यह भी कहने लगे हैं कि कांग्रेस दूसरों के भरोसे चुनाव लड़ती है। जीत गयी तो अपनी वाह-वाह, हार गयी तो अगला दोषी। शायद कांग्रेस यह जानती है कि अगर वह अपनी रणनीति पर चुनाव लड़ेगी, तो कई गलतियां होंगी। और तो और जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भी कमज़ोर रहा है।

इंडी गठबंधन के लिहाज से अगर निष्कर्ष निकाला जाये तो यही समझ में आता है कि अगर गठबंधन नुकसान में रहता है तो यह कमजोर कड़ी कांग्रेस ही साबित होगी। और कांग्रेस की सफलता का श्रेय कांग्रेस से ज्यादा हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन को जायेगा, क्योंकि वही कांग्रेस के खेवनहार साबित होंगे।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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