छठ महापर्व की मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो गयी है। कार्तिक महीने की चतुर्थी से नहाय-खाय की शुरुआत होती है। नहाय-खाय का विधान यही है कि व्रती पूरी तरह से सात्विक भोजन करते ही है। छठ व्रत की शुरुआत करते ही उनके भोजन का तरीका भी बदल जाता है। भोजन का तरीका ऐसा होता है ताकि व्रत के दिनों में भूख-प्यास कम लगे। क्योंकि छठ व्रत में व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास करते हैं। नहाय-खाय के दिन से बिना प्याज, लहसुन के सब्जी बनायी जाती है। वैसे भी लहसुन-प्याज को तामसी भोजन माना गया है, जिसका उपयोग उपवास के लिए उत्तम नहीं माना जाता।
नहाय-खाय के दिन लौकी और कद्दू की सब्जी बनाने का खास महत्व होता है। नहाय-खाय में कद्दू-भात खाने की प्राचीन परम्परा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। व्रती के भोजन में कद्दू की मुख्य भूमिका होती है। कद्दू एक नहीं कई तरीके से व्रती को उपवास सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में सहायता करता है। सही कहा जाये तो कद्दू व्रती को व्रत करने के लिए पूरी तरह से तैयार तैयार करता है। कद्दू से शरीर में पानी की कमी नहीं होती। साथ में चावल शरीर में लम्बे समय तक ताकत भी देता है।
कद्दू शरीर को अम्लीयता के असर से बचाता है!
लौकी यानी कद्दू एक ऐसी सब्जी है, जो कि कई छोटे-छोटे स्वास्थ्यकारी गुणों की खान है। इसमें से एक यह है कि यह शरीर को अम्लीयता के हमले से बचाता है, जबकि उपवास के दौरान सबसे बड़ा भयअम्लीयता का ही रहता है। चूंकि कद्दू की तासीर क्षारीय होती है। अगर शरीर में अम्ल बनता भी है तो उसके साथ क्रिया करके उसे नार्मल कर देता है। आपने स्कूली किताबों में भी पढ़ा होगा क्षार (Alkali) अम्ल (Acid) के साथ क्रिया कर उसे नार्मल कर देता है। यानी एक बड़ा खतरा अपने-आप दूर हो जाता है।
इसके अलावा भी कद्दू में कई गुण हैं जो सिर्फ व्रत में ही नहीं, सामान्य दिनों में भी शरीर को कई फायदा पहुंचाता है।
- 100 ग्राम लौकी में 15 कैलोरी होती है, जो कि काफी कम है। यानी इसे खाने के बाद कैलोरी का खतरा नहीं रहता।
- 100 ग्राम लौकी में बस 1 ग्राम फैट होता है
- कद्दू में 90 से लेकर 96 % तक पानी होता है।
- कद्दू में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है, जो कि पेट के लिए बहुत फायदेमंद है।
- कद्दू में विटामिन सी की भी अच्छी मात्रा होती है।
- इसके अलावा कद्दू में मौजूद राइबोफ्लेविन, जिंक, थियामिन, आयरन, मैग्नीशियम और मैंगनीज शरीर को अनेक तरीके से फायदा पहुंचाते हैं।
इससे हमें यह समझ लेना चाहिए कि हमारी धार्मिक परम्पराओं में बहुत-सी बातें यूं ही शामिल नहीं की गयी हैं। इनके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। सिर्फ सनातन धर्म में ही नहीं विश्व की अनेक संस्कृतियों में व्रत-उपवास की परम्परा है। सबसे बड़ी बात यह कि सनातन धर्म की आराधना-पूजा पद्धति, व्रत-त्यौहार सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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