कुछ समय पहले एक रिपोर्ट आयी थी कि अगर इसी समय झारखंड में विधानसभा चुनाव हों तो भाजपा को कई सीटों का नुकसान हो सकता है। भाजपा की अपनी ही आंतरिक रिपोर्ट ने उसके माथे पर बल ला दिया। शायद इसीलिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह और असम के मुख्यमंत्र हिमंता बिस्वा सरमा को झारखंड का प्रभारी बनाकर भेजा गया है। शिवराज सिंह और हिमंता इस समय लगातार झारखंड दौरे पर हैं और उन्होंने झारखंड के लोगों की नब्ज पकड़नी भी शुरू कर दी है। शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा जाता है कि वह माइक्रो बूथ मैनेजमेंट के मास्टर हैं। यह महारथ मध्यप्रदेश के दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को भी हासिल है।
शिवराज सिंह रविवार को झारखंड दौरे पर आये थे। उन्होंने साफ-साफ कर दिया है कि झारखंड की इंडी गठबंधन सरकार राज्य की जनता को जो भी देना का दावा कर कर ही है, उसकी जमीनी हकीकत दिखलायेंगे। इतना ही नहीं, शिवराज सिंह ने यह भी कहा कि 2019 में महागठबंधन में शामिल झामुमो और कांग्रेस ने जो भी वादे किये हैं, उनमें यह सरकार पूरी तरह नाकाम रही है, यह भी जनता को बतायेंगे। इसके साथ ही शिवराज सिंह ने कहा कि झारखंड में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी ने आगामी विधानसभा चुनाव में आना और भ्रष्ट झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकना जरूरी है। शिवराज सिंह ने कहा कि सरकार किसानों, युवाओं का भला करने का दावा करती है लेकिन युवा परेशान है, क्योंकि उनके पास रोजगार नहीं है। राज्य में रेत, खदानों, खनिजों और संसाधनों की लूट मची हुई है। जरूरतमंदों को पेंशन नहीं मिल रही। बिजली भले न आये, बिजली बिल घर पर जरूर पहुंच जाता है।
महागठबंधन के घोषणा-पत्र पर भी भाजपा साधेगी निशाना
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा ने झारखंड की महागठबंधन सरकार के घोषणा पत्र को भी अपने निशाने पर ले लिया है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा इस घोषणा-पत्र को लेकर हमलावर रहेगी। बता दें कि 2019 में जब झारखंड विधानसभा चुनाव हुए थे तब इंडी गठबंधन का गठन नहीं हुआ था। महागठबंधन के रूप में झामुमो, कांग्रेस और राजद ने साफ मिलकर चुनाव लड़ा था। झामुमो 43, कांग्रेस 31 और राजद 7 सीटों पर चुनाव लड़े थे और अपने घोषणा-पत्र से मतदाताओं को लुभाने में सफल रहे थे। तो क्या वाकई में महागठबंधन अपने वादों को पूरा करने सफल रहा या फिर शिवराज सिंह चौहान के अनुसार नाकाम रहा। पिछले चुनाव में झामुमो और कांग्रेस ने अलग-अलग घोषणा पत्र जारी किये थे। तो आईए, देखते हैं किसने अपने कितने वादों को पूरा किया-
झामुमो को घोषणा पत्र
- गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का वादा।
- बेरोजगार अधिकार कानून बनाने और निजी क्षेत्रों में 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करवाने का वादा।
- सरकारी टेंडर में 25 करोड़ तक के काम सिर्फ स्थानीय लोगों को दिलवाने का वादा।
- भूमि अधिकार कानून बनाकर सभी स्थानीय भूमिहीनों को जमीन उपलब्ध कराने का वादा।
- झारखंड के पिछड़े समुदाय को 27 प्रतिशत, आदिवासियों को 28 प्रतिशत और दलितों को 12 प्रतिशत आरक्षण का वादा।
- झारखंड के स्थानीय संवर्ग वर्ग के गरीब छात्रों को निःशुल्क शिक्षा और छात्रवृत्ति देने का वादा।
- झारखंड आंदोलन के दौरान शहीद परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा।
- त्रुटि वश विशेष सुविधा से वंचित लोहार, लोहरा, बड़ाईक जातियों को कानून में संशोधन कर लाभ दिलाने का वादा।
- सरकार गठन के दो साल के अंदर खाली सरकारी पदों पर झारखंडी युवकों और युवतियों की नियुक्ति का वादा।
- सभी बेरोजगार स्नातकों को 5000 तथा स्नातकोत्तर को 7000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा।
कांग्रेस का घोषणा पत्र
- हर परिवार से एक सदस्य को नौकरी का वादा।
- रांची में मेट्रो रेल चलाने का वादा।
- किसानों की कर्जमाफी का वादा।
- महिलाओं को अधिक नौकरी देने का वादा।
- 10 हजार से कम आय वाले परिवार की लड़कियों को मुफ्त साइकिल
- मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़ा कानून बनाने का वादा।
- पेट्रोल-डीजल पर वैट घटाने का वादा।
- हर ग्राम सभा में इन्टरनेट सुविधा पहुंचाने का वादा।
- रिक्त पड़े पदों को छह माह में भरने का वादा।
राजद का घोषणा पत्र
- जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने का वादा।
- महिलाओं का आरक्षण बढ़ाने का वादा।
- पर्यटन को रोजगार से जोड़ने का वादा।
- ‘पुनर्वास से पहले विस्थापन नहीं’ का वादा।
- बंजर जमीन को कृषि योग्य बनाकर किसानों को लाभ पहुंचाने का वादा।
- प्रतिवर्ष 50,000 रोजगार सृजन करने का वादा।
- ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधा सुदृढ़ करने का वादा।
- बालू घाटों को पंचायतों के अधीन करने का वादा।
- आंगनबाड़ी सेविकाओं को स्थायी करने का वादा।
- वनोपजों पर ग्रामीणों और आदिवासियों को हक देने का वादा।
यहां एक बात यह भी देखने वाली है कि राज्य में झामुमो के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद कोरोना महामारी के कारण करीब 2 साल तक गतिविधियां ठप-सी हो गयी थीं। उसके बाद हेमंत सोरेन की सरकार ने काम की गति को तेज करने का प्रयास किया। अब यह सरकार पर है कि उसने जिन योजनाओं को जनता के लिए प्रस्तुत किया, उसमें उसे कितने प्रतिशत सफलता मिल पायी।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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