न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
धर्म परिवर्तन और जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर देश में बहस चल रही है। इस बीच मद्रास हाई कोर्ट ने इस विषय पर एक नजीर पेश की है। मद्रास हाईकोर्ट ने शनिवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए कहा कि ‘अगर कोई व्यक्ति धर्म बदलता है और जाति के आधार पर आरक्षण का दावा करता है तो यह मान्य नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति जी.आर. की अध्यक्षता वाली मद्रास हाईकोर्ट की पीठ ने सुनाया है। पीठ ने सबसे पिछड़े समुदाय के एक हिंदू व्यक्ति, जिसने इस्लाम धर्म अपना लिया था, उसकी याचिका इसी धार पर खारिज करने का आदेश दिया है।
धर्म परिवर्तन के बाद याचिकाकर्ता ने नौकरियों में मांगा था आरक्षण
मद्रास हाई कोर्ट ने जिस याचिकाकर्ता की याचिका खारिज की है, उसने पहले अपना धर्म परिवर्तन किया और राज्य सरकार की नौकरियों में जाति आधारित कोटे का दावा किया। लेकिन हाई कोर्ट की पीठ ने उसकी मांग को खारिज कर कहा कि धर्म बदलने का मतलब है कि वह जाति व्यवस्था को नहीं मानता और तब उसका उस जाति से कोई नाता नहीं रह जाता, जिसमें वह पैदा हुआ था।
राज्य सिविल सेवा में असफल होने के बाद किया था दावा
बता दें, याचिकाकर्ता ने 2008 में इस्लाम धर्म अपनाया था। 2018 में तमिलनाडु संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा दी थी, लेकिन जब वह उत्तीर्ण हुआ तब पूछताछ में उसे पता चला कि उसे सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार माना गया था। तब उसे याद आया कि वह पिछड़े वर्ग से है, इसलिए उसने हाई कोर्ट में अपने पिछड़े होने का दावा करते हुए आरक्षण कोटे की मांग की थी।
झारखंड के लिए यह फैसला बन सकता है नजीर
झारखंड देश के उन राज्यों में जहां की पिछड़ी आबादी और आदिवासी ईसाई धर्म अपना रहे हैं। ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी वे अपनी पिछली जाति के हिसा से आरक्षण की मांग करते हैं। तो क्या सिर्फ लाभ लेने के इरादे से किये गये धर्म परिवर्तन करने वालों को वाकई आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए? क्योंकि मद्रास हाई कोर्ट ने भी ऐसा ही कहा है कि धर्म बदलने का मतलब है कि वह जाति व्यवस्था को नहीं मानता और तब उसका उस जाति से कोई नाता नहीं रह जाता, जिसमें वह पैदा हुआ था।
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