करवा चौथ व्रत सुगागिन स्त्रियां पतियों की लंबी आयु के लिए रखती है। यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ रखा जाता है। मान्यता है कि करवा चौथ के दिन व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, साथ ही भगवान श्रीगणेश से आशीर्वाद से पति को लंबी आयु का वरदान मिलता है। करवा चौथ के दिन भगवान शिव-पार्वती चंद्रमा की पूजा की जाती है, शाम के समय चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद सुहागिनें अपना व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ की पूजा में लगने वाली सामग्री
करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है। इसलिए इसकी पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। इसलिए इस पूजा में लगने वाली सामग्री और पूजा-विधि की सही-सही जानकारी होनी चाहिए। तो पहले जान लें कि करवा चौथ की पूजा में कौन-कौन सी सामग्री लगती है। पूजा में बैठने से पहले सभी पूजन-सामग्री एकत्र कर लेना चाहिए।
- मिट्टी का बना टोंटी वाला छोटा-सा कलश
- उसके ऊपर ढंकने के लिए मिट्टी का दीया (मिट्टी की जगह पीतल का करवा भी लिया जा सकता है)
- मिट्टी के दो दीये
- करवे में लगाने के लिए कांस की तीलियां
- पूजन के लिए कुमकुम, चावल, हल्दी, अबीर, गुलाल, मेहंदी, मौली, फूल, फल, प्रसाद
- चंद्र दर्शन के बाद पति का चेहरा देखने के लिए छलनी
- जल से भरा कलश या आचमनी
- चौकी
- करवा चतुर्थी पूजन का पाना (जिसमें चंद्रमा, शिव, पार्वती, कार्तिकेय आदि के चित्र बने हों)
- करवा चौथ कथा की पुस्तक
- धूप-दीप
- सुहाग की सामग्री (हल्दी, मेहंदी, काजल, कंघा, सिंदूर, छोटा कांच, बिंदी, चुनरी, चूड़ी)
- करवे में भरने के लिए गेहूं, शकर, खड़े मूंग
करवा चौथ की पूजन विधि
सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत पूजा स्थान को स्वच्छ कर, भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए करवा चौथ व्रत का संकल्प लें। संकल्प के साथ ही निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। पूजन स्थप पर सामने दीवार पर करवा चौथ पूजा का पाना चिपकाएं। नीचे चौकी पर एक करवा रखें जिसमें गेहूं, चावल या शकर भरे जाते हैं। पाने पर गणेशजी से प्रारंभ करके समस्त पूजन सामग्री से पूजन करें। करवे का पूजन करें। करवे पर स्वस्तिक बनाएं फल रखें, फूल अर्पित करें, कुछ मुद्रा अर्पित करें। करवे के ढक्कन में खड़े हरे मूंग या शकर भर दें। गणेश गौरी का पूजन करें। करवा चतुर्थी व्रत की कथा सुनें। कथा सुनने से पहले हाथ में चावल के 13 दानें लें। इन दानों को साड़ी के छोर पर बांध लें। इस प्रकार तीन बार पूजन किया जाता है। फिर रात्रि में चंद्रोदय की प्रतीक्षा की जाती है। रात्रि में चंद्रोदय होने पर चंद्रदेव का पूजन करें। जल का अर्घ्य दें, साड़ी के छोर में बंधे चावल के 13 दानें निकालकर उन्हें अर्घ्य के साथ चंद्र को अर्पित करें। दीपक से चंद्र की आरती करें। फिर छलनी में से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और भोजन ग्रहण करें।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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