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Amla Navami: देवउठनी एकादशी से पहले आज है आंवला नवमी, आरोग्यता व सुख-समृद्धि के लिए की जाती है पूजा

Before Devuthani Ekadashi, tomorrow is Amla Navami, worship is done for happiness and prosperity.

147 दिनों के बाद 23 नवम्बर को देवउठनी एकदशी है। इस दिन क्षीर सागर में शयन कर रहे भगवान विष्णु नींद से जागेंगे और इस दिन से देश में शहनाइयां बजनी भी शुरू हो जायेंगी। लेकिन इससे दो दिन पहले यानी मंगलवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है। इस तिथि का सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है। इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

देव उठानी या देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने की निंद्रा के बाद जागते हैं। इस बार चूंकि एक मास का मलमास था इसलिए यह अवधि इस बार पांच महीने की हो गयी थी।

आंवले के वृक्ष की पूजा काफी सरल है।  आंवले के वृक्ष को सूत्र बांधा जाता है, धूप-दीप दिखाया जाता है। आंवले के वृक्ष की परिक्रमा की जाती है। मान्यता है कि आंवले के पेड़ में सूत बांधने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। पद्म पुराण में आंवला नवमी के माहात्म्य का वर्णन है। आंवले के वृक्ष की पूजा करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान विष्णु का वास होने के कारण धन, विवाह, संतान, एवं दांपत्य जीवन से समस्याओं का निवारण हो जाता है। इस दिन आंवला के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता एवं सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। वैसे भी आंवले का सेवन करने से व्यक्ति सेहतमंद रहता है। आंवला नवमी के दिन आंवले पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी विधान है। गरीबों को भोजन कराने से जीवन में सुख- समृद्धि आती है।

आंवला नवमी पूजा कथा

एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण कर रही थीं। रास्ते में भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की उन्होंने कामना की। तभी उन्होंने अहसास हुआ कि दोनों देवों की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है। भगवान विष्णु तुलसी से प्रसन्न होते हैं और भगवान शिव को बेलपत्र प्रिय है। तब देवी लक्ष्मी ने पाया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले के पेड़ में पाये जाते हैं। देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आंवले के पेड़ की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया और उसे विष्णु और शिव को परोसा। फिर वही भोजन प्रसाद रूप मे स्वयं ग्रहण किया। वह दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। अतः यह परंपरा उस समय से चली आ रही है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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