न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
आज यानी 26 मार्च को अपना राष्ट्रीय दिवस मनाने वाला बांग्लादेश झारखंड के लिए किसी नासूर से कम नहीं है। ऐसा इसलिए, जो राज्य 1932 के खतियान का राग अलाप कर अपनी अस्मिता का रोना रो रहा है, उस राज्य के पतले से कॉरिडोर से आकर करीब 15 लाख घुसपैठिये झारखंड की छाती पर मूंग दल रहे हैं। झारखंड में सरकार किसी की भी रही हो, सबने इस समस्या से अपनी आंखें बंदें रखी हैं। इन घुसपैठियों से अपनी आंखें मूंद कर झारखंड अपनी ‘जल-जंगल-जमीन’ की अस्मिता को कैसे सुरक्षित रख पायेगा?
बांग्लादेश वह देश है जिसके कारण हर दिन भारत की मुश्किलें बढ़ रही हैं, इस देश ने जानवरों और नकली नोटों की अवैध घुसपैठ कराकर हमारा सिरदर्द बढ़ा रखा है। लेकिन दुःख इस बात का होता है कि हमारे राजनीतिज्ञों के ये आंखों के तारे बने हुए हैं, क्योंकि चुनावों में ये इनके कंधों पर सवार होकर अपनी राजनीतिक लिप्सा शांत करते हैं, भले ही इनके कुकर्मों से देश लहुलुहान हो गया है। बता दें, भारत में रहने वाले कुल बांग्लादेशी घुसपैठियों में से 80 फीसदी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल तथा असम में रहते हैं।
देश के कई राज्य बांग्लादेशी घुसपैठियों से त्रस्त तो हैं ही झारखंड भी इस समस्या से कम ग्रसित नहीं है। भारत से अगर बांग्लादेश में कोयला, पत्थर, चावल, आयोडाईज्ड नमक, नशे वाली कफ सीरप व दवाइयां, चावल के पशुओं की बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है तो बांग्लादेश से तस्करी के जरिए भारत में भारतीय जाली नोट, अफीम, ब्राउन शूगर, कोकिन आदि कई तरह के मादक पदार्थों के साथ ही बड़े पैमाने पर इनसानी घुसपैठ करायी जाती है। यही वजह है कि बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों की अधिकांश आबादी इन्हीं घुसपैठियों की है। जिन्हें वोट के सौदागर राजनेताओं ने न सिर्फ रहने को जमीन, बल्कि भारतीय नागरिकता संबंधी सभी दस्तावेज भी उपलब्ध कराया है। पूरे देश में ऐसे लोगों की आबादी तकरीबन दो करोड़ होगी।
झारखंड के ‘जल-जंगल-जमीन’ को अपवित्र कर रहे 15 लाख बांग्लादेशी
बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट गृह विभाग को भेजी गयी थी। रिपोर्ट में जिक्र है कि बांग्लादेशी नागरिक बिहार और बंगाल के रास्ते झारखंड में शरण ले रहे हैं। झारखंड में अवैध प्रवासियों की संख्या 10-15 लाख है। इन घुसपैठियों के कारण झारखंड की सांस्कृतिक पहचान और सुरक्षा खतरे में हैं। दरअसल, बांग्लादेश सीमा से झारखंड की दूरी 25-40 किलोमीटर है। इसी हिस्से का इस्तेमाल कर बांग्लादेशी यहां आ रहे हैं। बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद के रास्ते भी अधिकांश बांग्लादेशी यहां पहुंच रहे हैं। झारखंड में अधिकांश बांग्लादेशी फरक्का, उधवा, पियारपुर, बेगमगंज, फुदकलपुर, अमंथ, श्रीधर, दियारा, बेलूग्राम, चांदशहर, प्राणपुर से आते हैं। रिपोर्ट में जिक्र है कि बांग्लादेशियों के आने से अपराध व देशविरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं। पाकुड़ जिले में 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 फीसदी थी, लेकिन 2011 में यह बढ़कर 35.87 फीसदी हो गई है। इसी के चलते अवैध प्रवासियों के अधिक आबादी वाले जिलों में आदिवासी आबादी तेजी से घटी है, क्योंकि साल 1951 में राज्य में 8.09 फीसदी मुस्लिम आबादी थी, लेकिन 2011 में यह आबादी बढ़कर 14.53 फीसदी हो गई है, जो राष्ट्रीय आंकड़े से अधिक है।
असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में अवैध बांग्लादेशियों की बड़ी संख्या
आज भारत के कई राज्यों में बांग्लादेशियों की घुसपैठ हो चुकी है। इनमें असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में तो बड़े पैमाने पर घुसपैठ है ही उत्तर भारत के सीमावर्ती प्रदेश बिहार और झारखंड भी अछूते नहीं हैं। बांग्लादेशी देश की राजधानी दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक पहुंच चुके हैं। दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में भी अवैध बांग्लादेशी नागिरकों की एक बड़ी आबादी की पुष्टि हुई है। महाराष्ट्र में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की धरपकड़ बताती है कि वे वहां भी पहुंचे हुए हैं।
बांग्लादेशियों का सबसे बड़ा हितैषी पश्चिम बंगाल
बांग्लादेशियों का सबसे हितैषी राज्य पश्चिम बंगाल है, और उनकी सबसे बड़ी हितैषी हैं ममता बनर्जी। इन्हीं के वोटों के सहारे ममता ने 2011, 2016 और 2021 में पश्चिम बंगाल में अपना डंका बजाया है। उन्होंने तो इन्हें वोटर आईडी और राशन कॉर्ड देकर भारतीय नागरिक भी बना दिया है। वाममोर्चा के सत्ता में आने के समय से ही मुस्लिम घुसपैठियों को वोटर बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। हालांकि उस समय विपक्ष में रहीं ममता बनर्जी भी मानती थीं कि राज्य में दो करोड़ से अधिक बोगस वोटर हैं। तब एक मोटे अनुमान लगाया गया था कि भारत में डेढ़ से दो करोड़ घुसपैठिए महज वोट बैंक के लिए अवैध रूप से बसाए गए हैं।
मुस्लिम बंगभूमि की मांग
राजनीतिक प्रश्रय पाकर इन घुसपैठियों हिम्मत काफी बढ़ गयी है। अब तो इनकी इतनी हिमाकत हो गयी है कि ये बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्सों को मिलाकर मुस्लिम बंगभूमि की मांग करने लगे हैं। यह कितना आश्चर्यजनक है कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, ऋृषि अरविंद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी महापुरुषों को पैदा करने वाला पश्चिम बंगाल संवैधानिक धोखाधड़ी को बर्दाश्त कर रहा है। अनुमान है कि पश्चिम बंगाल में 57 लाख अवैध बांग्लादेशी हैं।
बिहार के कई जिलों में बांग्लादेशी
बिहार में भी भारी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों के होने की आशंका है। किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और सुपौल सहित प्रदेश की एक दर्जन सीटों पर बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी जमे हुए हैं। इसकी तस्दीक उन जिलों के आंकड़े करते हैं। अररिया जिले में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.52 फीसदी थी, लेकिन 2011 में मुस्लिम आबादी 42.94 फीसदी पहुंच गई। इसी तरह कटिहार में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.58 फीसदी थी, लेकिन 2011 में बढक़र 44.46 फीसदी पहुंच गई। पूर्णिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 31.93 फीसदी थी, लेकिन 2011 में बढक़र 38.46 फीसदी हो गई। यह स्पष्ट इशारा है कि यहां बदलाव घुसपैठिए के चलते हुआ हो। बांग्लादेशी घुसपैठियों ने सिर्फ बिहार में ही 66 लाख लोगों के रोजगार पर कब्जा कर लिया है।
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