न्य़ूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
संविधान निर्माता भीम राव आम्बेडकर हिंदू धर्म में जाति-व्यवस्था से इतने दुःखी थे कि उन्होंने अपना धर्म ही परिवर्तित कर लिया। आम्बेडकर जन्म से हिंदू थे, लेकिन मरना हिंदू के रूप में नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध धर्म अपनाने से पहले उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाना का विचार किया था। लेकिन उनकी यह सोच तब थी जब उन्होंने इस्लाम का नजदीक से अध्यययन नहीं किया था। इस्लाम का नजदीक से अध्ययन करने के बाद उनका इरादा और इस्लाम के प्रति नजरिया दोनों बदल गये। इस्लाम का गहराई से अध्ययन करने के बाद उन्होंने पाया कि हिंदू धर्म की जिस जाति-व्यवस्था से दूर भागकर इस्लाम अपना रहे हैं, उसकी जाति-व्यवस्था तो हिंदू धर्म से भी ज्यादा उलझी हुई है। वह जातिवाद और दलितों की स्थिति के मामले में इस्लाम को हिंदू धर्म से बहुत अलग नहीं मानते थे।
भीम राव आम्बेडकर ने जिस प्रकार हिंदू व्यवस्था पर बहुत बेबाक कलम चलाई है, उसी प्रकार उन्होंने इस्लाम धर्म की कुरीतियों को भी उजागर करने में कोई कोताही नहीं बरती। आम्बेडर ने इस्लाम को लेकर जो विचार अपनी किताबों में किये हैं उसको पढ़ने के बाद, आज के परिप्रेक्ष्य में लोगों को यही लगेगा कि यह कोई हिंदूवादी सोच वाले व्यक्ति की बयानबाजियां हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, आम्बेडर ने इस्लाम पर भी खूब कलम चलायी है। तो आइये देखते हैं अनेक मौकों और अपनी किताबों उन्होंने इस्लाम पर अपनी क्या राय रखी है-
- मुसलमान बनने पर हम भारतीयता की परिधि से बाहर चले जाएंगे, हमारी राष्ट्रीयता संदिग्ध हो जाएगी। यदि वे इस्लाम स्वीकार करते हैं तो मुसलमानों की संख्या इस देश में दूनी हो जाएगी और मुस्लिम प्रभुत्व का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
- इस्लाम में भी हिंदू धर्म की तरह ऊंची जातियों का बोलाबाला है और यहां भी दलित हाशिये पर हैं।
- दलितों की जो दशा है उसके लिए दास प्रथा काफी हद तक जिम्मेदार है। इस्लाम में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है। इस्लाम में भी उतना ही जातिवाद है जितना हिंदू धर्म में।
- मुसलमानों में भी जो हैसियत वाला वर्ग है वह हिंदू धर्म के ब्राह्मणों की तरह ही सोचता है।
- अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश का भाग्य तब बदलेगा जब हिंदू और इस्लाम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त हो पाएंगे.
- जैसे हिंदू धर्म में ब्राह्मणवादी राजनीति का बोलबाला था, वैसे ही इस्लाम की राजनीति भी ऊंची जातियों तक सीमित है।
- बहु विवाह प्रथा से स्त्रियों को कष्ट होता है। इस प्रथा में उनका शोषण और दमन होता है।
- जो कोई भी व्यक्ति एशिया के नक्शे को देखेगा उसे यह ध्यान में आ जाएगा कि किस तरह यह देश दो पाटों के बीच फंस गया है। एक ओर चीन व जापान जैसे भिन्न संस्कृतियों के राष्ट्रों का फंदा है तो दूसरी ओर तुर्की, पर्शिया और अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों का फंदा है। इन दोनों के बीच फंसे इस देश को बड़ी सतर्कता से रहना चाहिए, ऐसा हमें लगता है… इन परिस्थितियों में चीन एवं जापान में से किसी ने यदि हमला किया तो… उनके हमले का सब लोग एकजुट होकर सामना करेंगे। मगर स्वाधीन हो चुके हिन्दुस्थान पर यदि तुर्की, पर्शिया या अफगानिस्तान जैसे तीन मुस्लिम राष्ट्रों में से किसी एक ने भी हमला किया तो क्या कोई इस बात की आश्वस्ति दे सकता है कि इस हमले का सब लोग एकजुटता से सामना करेंगे? हम तो यह आश्वस्ति नहीं दे सकते।
- नेहरू कमेटी की छानबीन हमने स्वार्थ से अंधे होकर नहीं की है। नेहरू कमेटी की योजना का हमने जो विरोध किया है, वह इसलिए नहीं कि कमेटी ने अस्पृश्यों के प्रति तिरस्कार युक्त व्यवहार किया है बल्कि हमने विरोध इसलिए किया है क्योंकि उससे हिन्दुओं को खतरा है और हिन्दुस्थान पर अनिष्ट आया है।
- मुसलमान कभी भी मातृभूमि के भक्त नहीं हो सकते। हिन्दुओं से कभी उनके दिल मिल नहीं सकते। देश में रहकर शत्रुता पालते रहने की अपेक्षा उन्हें अलग राष्ट्र दे देना चाहिए। भारतीय मुसलमानों का यह कहना है कि वे पहले मुसलमान हैं और फिर भारतीय हैं। उनकी निष्ठाएं देश-बाह्य होती हैं। देश से बाहर के मुस्लिम राष्ट्रों की सहायता लेकर भारत में इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने की उनकी तैयारी है। जिस देश में मुस्लिम राज्य नहीं हो, वहां यदि इस्लामी कानून और उस देश के कानून में टकराव पैदा हुआ तो इस्लामी कानून ही श्रेष्ठ समझा जाना चाहिए। देश का कानून झटक कर इस्लामी कानून मानना मुसलमान समर्थनीय समझते हैं।
- मुस्लिम आक्रांता नि:संदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परंतु वे घृणा का गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगाकर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो वरदान माना जाता। वे इतने नकारात्मक परिणाम से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने तो भारत में इस्लाम का पौधा रोपा। इस पौधे का विकास बखूबी हुआ और यह एक बड़ा ओक का पेड़ बन गया।
- मुसलमानों में एक और उन्माद का दुर्गुण है। जो कैनन लॉ या जिहाद के नाम से प्रचलित है। एक मुसलमान शासक के लिए जरूरी है कि जब तक पूरी दुनिया में इस्लाम की सत्ता न फैल जाए तब तक चैन से न बैठे। इस तरह पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी है दार-उल-इस्लाम (इस्लाम के अधीन) और दार-उल-हर्ब (युद्ध के मुहाने पर)। चाहे तो सारे देश एक श्रेणी के अधीन आयें अथवा अन्य श्रेणी में। तकनीकी तौर पर यह मुस्लिम शासकों का कर्तव्य है कि कौन ऐसा करने में सक्षम है। जो दार-उल-हर्ब को दर उल इस्लाम में परिवर्तित कर दे। भारत में मुसलमान हिजरत में रुचि लेते हैं तो वे जिहाद का हिस्सा बनने से भी हिचकेंगे नहीं।
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