कुछ राज्यों में कांग्रेस की कुछ पार्टियों के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ने को यह नहीं मानना चाहिए की विपक्षी दलों का इंडी गठबंधन जिंदा है। विपक्षी दलों के गठबंधन में अब तक जो 28 पार्टियां साथ चल रही थी, उनका अब अता-पता नहीं है। यूपी में सपा, दिल्ली में आप और तमिलनाडु में डीएमके का ही गठबंधन दिख रहा है, वह भी वहां की स्थानीय पार्टियों की शर्तों पर। यूपी में कांग्रेस 17 सीटों पर ही लड़ेगी, दिल्ली मे 3 सीटों पर तो तमिलनाडु में 7 सीटों पर ही कांग्रेस को उतरने की इजाजत मिली है। यूपी में 17 सीटें RLD के गठबंधन के हटने के कारण ही कांग्रेस को मिली है। अन्यथा वहां भी कांग्रेस को 11 सीटों से ज्यादा नहीं मिल रही थीं। यानी सहयोगियों की शर्तों के आगे कांग्रेस को झुकना पड़ा है। कांग्रेस का इस तरह झुकना उसके लिए एक इतिहास भी बना रहा है। कांग्रेस चुनावी इतिहास में पहली बार इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
गठबंधन पार्टियों की प्रेशर पॉलिटिक्स और कांग्रेस का समझौता
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गठबंधन से किनारा कर लेने के बाद इंडी गठबंधन बिखरने लगा है। यूपी में कांग्रेस और सपा और दिल्ली, गुजरात, हरियाणा के लिए आप और कांग्रेस में सीटों पर सहमति बनी भी है तो वह गठबंधन के साथियों के प्रेशर पॉलिटिक्स के कारण। इन राज्यों में कांग्रेस को अपनी डिमांड से समझौता करना पड़ा है। कांग्रेस को दिल्ली में 3 सीटें इस शर्त पर मिली है कि उसे आम आदमी पार्टी के लिए गुजरात में दो और हरियाणा में एक सीट देनी पड़ी है। पंजाब में तो दोनों दलों में कोई समझौता नहीं हो सका है। अब केरल में घमसान मचा है, जहां सीपीआई ने वायनाड से कैंडिडेट का ऐलान कर दिया है। बिहार में अभी भी आरजेडी और कांग्रेस के बीच तोलमोल नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु में भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कुल मिलाकर अगर हालात ऐसे ही रहे तो कांग्रेस अपने चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ने का रेकॉर्ड बना लेगी।
पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस ने कितनी सीटों पर लड़ा चुनाव
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव मैदान में 421 कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें 52 ही लोकसभा पहुंच पाए थे। जबकि उससे पहले 2014 में कांग्रेस ने 464 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे और 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बंगाल, केरल, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में जिस तरह से सीट शेयरिंग पर कांग्रेस का पेंच फंसा हुआ है, कांग्रेस का कम सीटों पर चुनाव लड़ना का रिकॉर्ड निश्चित ही बनेगा। पहले के चुनावों की बात करें तो आजादी के बाद से कांग्रेस का ही एक छत्र राज रहा है, इसलिए कम सीटों पर चुनाव लड़ने जैसी नौबत पहले नहीं आयी।
दूसरे राज्यों में कांग्रेस की क्या है स्थिति
दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस का पेंच फंसा हुआ है। जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की कुछ 6 सीटें हैं। जिनमें से 3 पर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पहले से ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को दो सीटों से ज्यादा नहीं देना चाहतीं। तमिलनाडु में डीएमके कांग्रेस को 7 सीटों से ज्यादा नहीं देना चाहती। महाराष्ट्र में भी शिवसेना (यूबीटी) 23 सीटों पर दावेदारी कर चुकी है। कांग्रेस को यहां अधिकतम 15 सीटें ही मिल सकती हैं। केरल में तो कांग्रेस को बड़ा झटका लग चुका है। क्योंकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने वायनाड लोकसभा सीट पर अपने उम्मीदवार एनी राजा का नाम तय कर दिया है। बता दें कि 2019 में राहुल गांधी वाडनाड से जीतकर सांसद बने थे। इतना ही नहीं, सीपीआई तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर और मवेलिककारा में भी अपने कैंडिडेट उतारेगी।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार