रामलीला मैदान से एकजुट होकर भी अलग दिखा विपक्षी गठबंधन! कायम है विरोधाभाषी चरित्र

Opposition alliance looks different even after uniting at Ramlila Maidan!

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी का विपक्षी दलों ने जबर्दस्त विरोध किया। विरोध प्रदर्शन करने लिए इंडी गठबंधन के 28 दलों के नेता दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा होकर महारैली की। इस महारैली का उद्देश्य साफ था, देश में जो राजनीतिक हालात हैं, उनका विरोध करना, अपनी एकजुटता प्रदर्शित करना और इसी एकजुटता के सहारे वर्तमान की सत्ताधारी पार्टी को उखाड़ फेंकना। पिछले रविवार को अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद विपक्षी कुनबे की रामलीला मैदान में जो ‘पंचायत’ लगी थी, उसका उद्देश्य था  इंडी गठबंधन दलों के खिलाफ जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, विपक्षी नेताओं, खासकर दो मुख्यमंत्रियों को जेल भेजना, इलेक्टोरल बॉन्ड, कांग्रेस पार्टी के अकाउंट सीज किया जाना। विपक्षी दलों ने जो मुद्दा उठाया था, ऐसा नहीं है कि जनता का इन मुद्दों से वास्ता नहीं है, लेकिन अब यह विपक्षी दलों पर निर्भर है कि वह सत्ताधारी दलों के विरुद्ध उनकी की तैयारी क्या है। इंडी गठबंधन जब से बना है तब से इसमें एकता कम विरोधाभाषों की परतें ज्यादा मिलेंगी। आपसी प्रतिस्पर्धा व खींचतान में एक-दूसरे को कमजोर करने की पुरानी रीति और नीति कहां खत्म हुई है?

आप की ब्रांडिंग

इंडी गठबंधन बनने के बाद के अब तक के उदाहरणों को न लेकर सिर्फ रामलीला मैदान में ही जो हुआ उससे भी यह बात भली-भांति समझ आ जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस रैली के आयोजन में मुख्य भूमिका आम आदमी पार्टी की थी, तो पार्टी ने ब्रांडिंग करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसको लेकर सबसे ज्यादा मिर्ची कांग्रेस को ही लगी। चूंकि आप अपने ही नेता को केंद्र में रखना चाहती थी, इसलिए मंच पर बने डायस पर अरविंद केजरीवाल की जेल के सलाखों वाली तस्वीर लगा दी गई। जिसपर कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता उखड़ गए और मंच पर कांग्रेस के बड़े नेताओं के आने से पहले वह तस्वीर हटाई गई।

आप की गारंटियां

यह तो एक बात हुई। रैली के दौरान अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने जो भाषण पढ़ा उसमें लोकसभा चुनाव के लिए केजरीवाल की 6 गारंटी भी उन्होंने पढ़ी। यानी इंडी गठबंधन के मंच से वह आप की गारंटियों का ज़िक्र कर रही थीं। जबकि उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए था कि ये गारंटियां सिर्फ आप के लिए है या बाकी विपक्षी दल भी इससे इत्तेफाक रखते हैं।

कांग्रेस का अलग राग

ठीक इसी तरह कांग्रेस ने आगामी चुनाव के लिए किसानों, महिलाओं, युवाओं और श्रमिकों के लिए अपना विजन रखा। लेकिन गठबंधन में उसके ही साथी दलों का इससे कोई सरोकार नहीं दिखता। इंडी गठबंधन जनता से सहयोग की अपेक्षा रखता है, लेकिन अबतक जनता के लिए उनके पास कोई साझा विजन नहीं है।

अपने गिरेबान में झांके राजद

अब आते हैं बिहार के बउवा तेजस्वी यादव की ओर। तेजस्वी ने रामलीला मैदान की रैली से मोदी पर हमला बोलते हुए ‘तुम तो धोखेबाज हो’ गाना गाकर जनता की खूब तालियां बटोरी, लेकिन उनके ही राज्य बिहार में महागठबंधन का सुरत-ए-हाल देख लीजिये। बिहार में महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में राजद ने क्या किया। पूर्णिया, सुपौल, वाल्मीकिनगर, मधुबनी जैसी अधिकांश सीटें अपने पाले में रख ली। ये वे सीटें हैं जहां कांग्रेस बेहतर लड़ सकती थी। लेकिन चूंकि लालू प्रसाद तेजस्वी के भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित हैं तो उनके भविष्य को लेकर यह तो करना ही था। इसके लिए लालू यादव ने पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को तरीके से किनारे लगा दिया। जबकि महागठबंधन की और से ये दोनों जिताऊ उम्मीदवार हो सकते थे।

कांग्रेस का नकारात्मक रुख

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के बीच सीटों का पेंच तो सुलझ गया, लेकिन कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली दोनों सीटों, अमेठी और रायबरेली पर गांधी परिवार लड़ने को तैयार नहीं दिख रहा है। बहुत संभावना है कि कांग्रेस इन दोनों सीटों से किसी और को लड़ाए। ऐसा होता है तो जनता में इसका यही संदेश जाएगा कि गांधी परिवार को अपनी ही पुश्तैनी सीटों पर अगर हार का खतरा सता रहा है, तो फिर कांग्रेस किस विश्वास के साथ बाकी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और राष्ट्रीय स्तर पर इंडी गठबंधन की अगुवाई कर रही है। इन दोनों सीटों से गांधी परिवार को लड़कर यह संदेश देना था कि भले परिणाम चाहे कुछ भी हो।

बंगाल में राहें अलग

विपक्षी दलों के मजबूत गढ़ पश्चिम बंगाल का हाल भी कुछ कम नहीं है। यहां से तृणमूल कांग्रेस ने डैरेक ओ ब्रायन और सागरिका घोष को रामलीला मैदान की रैली में अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजा था, लेकिन बंगाल की चुनावी बिसात पर कांग्रेस और तृणमूल की राह जुदा हैं। दोनों दलों ने अगर बड़ा मन दिखाया होता तो यह गठबंधन आकार ले सकता था, लेकिन गठबंधन, अधीर रंजन की तू-तू मैं-मैं और ममता बनर्जी के निजी स्वार्थ की भेंट चढ़ गया।

महाराष्ट्र का हाल बेहाल

विपक्ष का एक और महत्वपूर्ण चेहरा उद्धव ठाकरे हैं। हर मंच पर विपक्षी एकजुटता की बातें करते रहते हैं। रामलीला मैदान में भी विपक्षी एकता पर बड़ी-बड़ी बातें कर गये। लेकिन महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे पर अलग घमसान मचाए हुए हैं। उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी को बिना विश्वास में लिये एकतरफा फैसला करते हुए राज्य की 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिये। कांग्रेस इस पूरे प्रकरण में महाराष्ट्र में असहाय दिख रही है। 48 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में विपक्ष की मजबूती दिखती है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दल अगर अपनी-अपनी राह चल रहे।

सियासी पेंच में केरल

भारत के नक्शे पर सुदूर दक्षिणी राज्य केरल की लीला तो और भी विचित्र है। सीताराम येचुरी राहुल गांधी के राजनीतिक अभिभावक की तरह देखे जाते हैं। लेकिन केरल में वाम दलों का लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट कांग्रेस की अगुवाई वाले युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के आमने-सामने है। सबसे हैरत की बात यह है कि इंडी गठबंधन के हर मंच पर शिरकत करने वाले सीपीआई महासचिव डी राजा की पत्नी और सीपीआई की प्रमुख नेताओं में से एक एनी राजा राहुल गांधी के खिलाफ वायनाड से ताल ठोंक रही हैं.

कुल मिला कर दिल्ली के रामलीला मैदान पर सभी विपक्षी दल एक साथ तो आये, लेकिन अपनी एका के लिए उनके इस प्रयास का वह कितना फायदा उठा सकते हैं, या फायदा मिल सकता है, यह बात सभी दल अच्छी तरह से समझ सकते हैं। विपक्षी गठबंधन अपनी एकता के लिए अब तक जिस तरह से पास आकर भी दूर-दूर था, शायद उतना ही दूर अब भी है। यह चुनाव परिणाम बतायेगा कि उनकी एकता में वाकई कितना दम था।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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