Bihar: पूर्णिया को पप्पू यादव ने क्यों बनाया अपनी प्रतिष्ठा का विषय? राजद-कांग्रेस में छिड़ सकती है रार

Bihar: Why did Pappu Yadav make Purnia the subject of his prestige?

तीन बार पूर्णिया से सांसद रह चुके पप्पू यादव एक बार फिर यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं। जबकि उनके साथ आज जो हो रहा है, वह सरासर उनकी ही ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ के कारण हो रहा है। एक तो लालू प्रसाद की राजनीति के आगे नतमस्तक कांग्रेस में शामिल होने में उन्होंने काफी हड़बड़ी दिखायी, और जब गड़बड़ी हो गयी तब हाय-तौबा मचा रहे हैं। खबर है कि पप्पू यादव पूर्णिया से 2 अप्रैल को अपना नामांकन भरेंगे, जहां दूसरे चरण में मतदान होने वाला है। चूंकि कांग्रेस और राजद में इस सीट पर सहमति नहीं बनी है, इसलिए यह तो तय है कि वह कांग्रेस के चुनाव चिह्न से चुनाव तो नहीं लड़ पायेंगे।

पप्पू यादव चुनाव में खड़े हुए तो निश्चित ठनेगी राजद-कांग्रेस में!

पप्पू यादव अगर पूर्णिया से खड़े होते हैं तो राजद और कांग्रेस में तकरार होनी तय है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मसले को लेकर दोनों दलों में बिहार के चुनाव पर कितना असर होगा। लेकिन उससे पहले यह देखना होगा कि पप्पू यादव के पूर्णिया लोकसभा सीट से परचा दाखिल करने पर कांग्रेस आलाकमान क्या रुख अपनाता है। क्योंकि अब तो यह तय हो चुका है कि पप्पू यादव किसी भी सूरत में आरजेडी प्रत्याशी को पूर्णिया में समर्थन नहीं करेंगे। राजद ने पूर्णिया से बीमा भारती को अपना प्रत्याशी बनाया है। बीमा भारती हाल ही में जदयू छोड़कर राजद में शामिल हुई हैं। बता दे कि बिहार में इंडी गठबंधन के तहत राजद को 26 सीटें मिली हैं। जबकि कांग्रेस को 9 और वामदलों को 5 सीटें मिली हैं।

पप्पू यादव की बौखलाहट की आखिर क्या है वजह?

पूर्णिया से चुनाव लड़ने के लिए ही पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनकी मंशा यही थी कि उनका क्षेत्र पर अपना अच्छा-खासा जनाधार है। कांग्रेस प्रत्याशी होने से उन्हें पार्टी का समर्थन तो मिलेगा ही, साथ ही गठबंधन दलों राजद और वाम दलों का भी समर्थन प्राप्त हो जायेगा। लेकिन उनका पूरा दांव तब उल्टा पड़ गया जब गठबंधन दलों में समझौते के अनुसार कांग्रेस को पूर्णिया सीट नहीं मिली। कांग्रेस के कोटे से पूर्णिया सीट जाने से पप्पू यादव के हाथ से तोते उड़ गये। अब उन्हें कांग्रेस में अपनी पार्टी के विलय का कितना अफसोस हो रहा है, यह तो वही जानें, लेकिन उनकी मंशा धरी की धरी रह गयी, यह तो उजागर हो गया है। इसी बौखलाहट में ही वह लगातार बयानबाजी करने लगे हैं। जबकि पप्पू यादव इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि राजनीति में यह सब तो होता रहता है। गठबंधन धर्म निभाने में अपने स्वार्थ की तिलांजलि देनी ही पड़ती है। इसी लोकसभा चुनाव को देखें तो पूरे देश में पप्पू यादव जैसी स्थिति में कई नेता होंगे, जिन्हें गठबंधन के सीट बंटवारे के कारण अपनी सीट गंवानी पड़ी है। जो भी हो, उनकी इस बयानबाजी का राजद और कांग्रेस पर शायद ही असर हो। क्योंकि कांग्रेस एक सीट के लिए पूरे बिहार, यहां तक कि झारखंड में अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मार सकती।

यहां एक बात भी बताना जरूरी है। कांग्रेस में शामिल होने से पहले उन्होंने राजद में भी शामिल होने का प्रयास किया था। कांग्रेस में शामिल होने से पहले उन्होंने लालू प्रसाद से मुलाकात भी की थी। लेकिन राजद में उनकी बात इस लिए नहीं बन पायी, क्योंकि वह लालू प्रसाद के अंडर में तो काम कर सकते थे, लेकिन तेजस्वी यादव के अंडर में काम करना उन्हें मंजूर नहीं था। अगर वह यहां समझौता कर लेते तो शायद यह नौबत नहीं आती जो आज उनके सामने आयी हुई है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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