Good Friday 2024: आज सम्पूर्ण विश्व में गुड फ्राइडे मनाया जा रहा है। इस दिन येसु ने अपनी जान की कुर्बानी सूली पर दी थी। उनकी स्मृति में ईसाई लोग इस दिन सम्मान पूर्वक मनाते हैं। गुड फ्राइडे अर्थात पुण्य शुक्रवार आस्था के दृष्टि से ईसाईयों के लिए बहुत बड़ा दिन है। इसे गुड फ्राइडे इसलिए कहा जाता है कि ईसा के क्रूस शहादत द्वारा मृत्यु से अमरता, पाप से पुण्य, अँधेरा से प्रकाश, बैर से प्रेम, नरक से स्वर्ग तथा शैतान के राज्य से ईश्वरीय राज्य पर विजयी पायी गयी। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह ने आज ही के दिन क्रूस काठ पर अपनी प्राण की आहुति दी थी। तैतीस वर्ष की आयु में यहूदिया प्रान्त के रोमन शासन काल में तात्कालिक शासक पिलातुस ने येसु को मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी। उस समय किसी घोर अपराधी को लकड़ी से बना क्रूस काठ पर चौराहे या सार्वजनिक स्थल पर मृत्यु दंड दिया जाता था। यह घृणित, अपमान, हार, विनाश, तथा मृत्यु का प्रतीक माना जाता था। येसु का कोई दोष नहीं था। उस पर झूठा आरोप लगाया गया। निर्दोष होते हुए भी उन्हें सजा-ए-मौत दिया गया।
सम्पूर्ण विश्व के ईसाई समुदाय के लोग ईसा मसीह के दुखभोग, सूली पर शहादत होना व उनके पनुरुथान को प्रति वर्ष ईस्टर त्यौहार के पूर्व चालीस से अधिक दिनों तक स्मरण करते है। इसे वे चालीसा काल भी कहते हैं। इस दौरान वे प्रार्थना, बाइबिल पठन, उपवास, परहेज, त्याग-तपस्य, भिक्षादान, अन्य परोपकार के कार्य, पश्चाताप और जीवन का मूल्यांकन करते हैं येसु के प्रेम, बलिदान, दुखभोग और मृत्य के रहस्य एवं पुनरुथान के रहस्यों का चिंतन करते हैं। चालीसा मुख्य रूप से तीन भागों में बटा है, प्रथम भाग सामन्या चालीसा काल राखबुध से लेकर खजूर पर्व के पूर्व संध्या तक तथा दूसरा भाग पुण्य सप्ताह तथा तीसरा भाग ईटर या पास्का काल। ईस्टर रविवार के पूर्व शुक्रवार को गुड फ्राइडे कहा जाता है। इस दिन ईसाई धर्मावलम्बी गिरजाघरों या अन्य उपयुक्त स्थलों में एकत्र होकर येसु के दुख,और मृत्यु पर चिंतन करते हैं। वे क्रूस कि उपासना, क्रूस रास्ता प्रार्थना, बाइबिल पठन, क्रूस पर मरते हुए येसु द्वारा कही गयी सात वाक्यों पर चिंतन व अन्य तरह की प्रार्थना करते हैं। उनके मुख मलिन और वे शोकाकुल रहते है। ये मायुशि ईटर के दिन समाप्त होती है जब वे अपने प्रभु को वे पुनर्जीवित पाते है।
येसु के सूली पर मरने के पीछे तीन वजह है – ऐतहासिक, तात्कालिक राजनितिक परिस्थियाँ एवं ईश्वर की योजना। येसु के जन्म से मृत्यु व स्वर्गारोहण तक की घटना इतिहास में घटित हुई है। आज से लगभग 2024 वर्ष की घटना है। उस समय के राजनितिक माहौल के मुताबिक येसु ख्रीस्त रोमन शासकों के षड्यंत्र के शिकार बने। इन सभी घटनाओं एवं परिस्थितिओं के पीछे कहीं न कहीं ईश्वर की योजना छिपी हुईं थी।
येसु के आने के पूर्व संसार में कई प्रकार के पाप एवं बुराई का अंधकार छाया हुआ था। लोग बुरी तरह पाप के गिरफ्त में आ चुके थे। उनका विनाश होना निश्चय था। दयालु ईश्वर ने अपनी सृष्टि पर प्रेम से अभिभूत होकर तरस खाया और सारी मानव जाति को पाप के बंधन से छुटकारा देने के लिए अपने एकलौते पुत्र को मुक्तिदाता के रूप में भेजने की योजना बनायीं, जो ‘मुक्ति इतिहास की योजना ‘ से जानी जाती है। इसे फलीभूत करने के लिए उन्होंने एक पवित्र व साधारण नारी मरियम को चुना। मरियम किसी पुरुष की संसर्ग से नहीं अपितु पवित्र आत्मा से गर्भवती हुई और इस भांति उन्होंने ईश्वर के पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम येसु था।
दरअसल, येसु के क्रूस पर मरने के मुख्य कारण है – ईश्वरीय प्रेम। जब मानव जाति पाप के गर्त में गिर गयी थी, तो उन्होंने हमें अपने एकलौते पुत्र येसु के द्वारा बचा लिय। “ईश्वर के प्रेम कि पहचान इसमें है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं बल्कि ईश्वर ने हमको प्यार किया और हमारे पापों के प्राश्चित के लिए अपने एकलौते पुत्र को भेजा । ” (1 योहन 4 :10 )। येसु ने हमारे दुःख को अपने ऊपर ले लिया और हमारे लिए कृपा का स्रोत खोल दिया। उनके दुःख और पीड़ा द्वारा हमें मुक्ति मिली है।
क्रूस हमारा सामर्थ्य है । संत पौलुस क्रूस की प्रज्ञा और सामर्थ्य के बारे लिखते हैं – “जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं वे क्रूस की शिक्षा को मूर्खता समझते हैं, किन्तु मसीह में चुने हुए लोगों के लिए वह ईश्वर की सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है। क्योंकि ईश्वर की मूर्खता मनुष्य से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की दुर्बलता मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है” (1 कुर 1 : 18 -25) । क्रूस जीवन का प्रतीक है, मृत्यु के बिना पुनरुथान संभव नहीं। क्रूस त्याग और समर्पण का चिन्ह है, बाइबिल बताती है – इससे बढ़कर कोई प्रेम नहीं की व्यक्ति अपने मित्रों के लिए अपना प्राण अर्पित कर दे। यह हमें क्षमा देने के लिए भी प्रेरित करता है -येसु ने मारने, अपमान करने व क्रूस पर ठोकने वालों को क्षमा क्र दिया ‘हे पिता इन्हें माफ़ कर दीजिए कि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे है।’
यदि क्रूस के प्रति श्रद्धा रखते हैं तो हम भी पाप और बुराई से बचे रहेंगे। ईश्वर कि मुक्ति योजना के भागी बनेगे। क्रूस के द्वारा हमें शांति और शक्ति मिलेगी। जब सिद्द्त के साथ मृत्यु को अपनाते हैं तो हमें पुनरुथान व नया जीवन मिल जायेगा।