चुनावी बॉन्ड स्कीम (Electoral Bond) को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगा दी है। चुनावी बॉन्ड की कानूनी वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को यह फैसला सुनाया है। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2 नवंबर को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। मामला राजनीतिक दलों को मिलने वाले गुमनाम तरीके से चंदे की है जो उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में मिलता है। बता दें कि पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसला में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक है, क्योंकि यह सूचना के अधिकार एक्ट (RTI) का पूरी तरह से उल्लंघन करता है। जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि किस पार्टी को किस दानदाता से कितनी रकम चंदे के रूप में मिल रही है। अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया है कि 2019 से लेकर अब तक चुनावी बॉन्ड के रूप में जो भी चंदा दिया गया है, उसकी जानकारी दे। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च तक की अवधि तय की है। इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों को भी आदेश दिया गया है कि जो बॉन्ड कैश नहीं किया गया है, उन्हें वापस किया जाये।
क्या है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड वह साधन है जिसके माध्यम से कोई भी दानदाता अपनी पहचान उजागर किए बिना, राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है। योजना के प्रावधानों के तहत, भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई चुनावी बांड खरीद सकते हैं। इनकी कीमत ₹1,000 से लेकर ₹1 करोड़ तक है और इन्हें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की सभी शाखाओं से प्राप्त किया जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 में पेश किया गया था।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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