दुविधा में फंसी हेमंत सरकार! बिना OBC ट्रिपल टेस्ट 4 महीने में कैसे करायेगी निकाय चुनाव! HC का आदेश मानना भी जरूरी!

Nagar Nikay Chunav Jharkhand: झारखंड हाई कोर्ट ने एक बार फिर राज्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए 4 महीनों में  निकाय चुनाव कराने को कहा है। लेकिन सरकार की विवशता यह है कि महीनों पहले कोर्ट के आदेश के बाद भी राज्य में अभी भी ओबीसी ट्रिपट टेस्ट नहीं हुआ है। विडम्पना यह है कि ट्रिपल टेस्ट के लिए सबसे पहले ओबीसी आयोग का गठन करना होता है जो कि अब तक नहीं किया जा सका है। यानी इतने कम समय में झारखंड सरकार ओबीसी ट्रिपल टेस्ट कैसे करवायेगी और निकाय चुनाव कैसे होगा, यह एक बड़ा प्रश्न हैं।

क्या है ट्रिपल टेस्ट?

स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकताओं पूरी करनी होती है। इसकी निम्न प्रक्रिया है-

  • पिछड़ेपन की जांच के लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया जाता है।
  • आयोग की सिफारिशों के आलोक में निकाय-वार कोटे का प्रावधान किया जाता है।
  • अनुसूचित जाति (SC)/अनुसूचित जनजाति (ST)/अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित सीटों का निर्धारण जो कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक ना हो।

बता दें कि OBC Reservation के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट फार्मूला पूरे देश में लागू करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि ट्रिपल टेस्ट के बगैर निकाय चुनाव कराने की स्थिति में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को अनारक्षित मानना होगा। झारखंड में नगरपालिका अधिनियम 2011 में संशोधन करने के बाद आरक्षण रोस्टर में भी बदलाव का मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। राज्य सरकार के कैबिनेट की बैठक में नगर विकास विभाग की अधिसूचना को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में ट्रिपल टेस्ट के बाद निकाय चुनाव कराने का निर्णय लिया गया था।

इतने कम समय में निकाय चुनाव कराना क्या सम्भव है

लेकिन लगता नहीं है कि झारखंड में इतने कम समय में नगर निकाय चुनाव सम्भव हो पायेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हर राज्य में ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट करवाना अनिवार्य है। लेकिन झारखंड में ट्रिपल टेस्ट तो दूर की बात है, ओबीसी आयोग का यहां गठन भी नहीं हुआ है। जबकि ट्रिपल टेस्ट का पहला स्तर ही आयोग का गठन है। उसके बाद की प्रक्रिया लम्बी है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट का ही आदेश है कि ट्रिपल टेस्ट नहीं कराये जाने की स्थिति में ओबीसी वाली सीटों को जेनरल मानना होगा। अगर ऐसा सोच भी लिया जाये तो राज्य में इसको लेकर कितना बड़ा बवाल हो सकता है, इसको आसानी से समझा जा सकता है। क्योंकि ओबीसी वर्ग में आने वाली सीटों पर यह वर्ग अपनी दावेदारी किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहेगा। अब देखना यह है कि आने वाले चार वर्षों में राज्य सरकार क्या करती है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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