महाकुम्भ से आस्था का उबाल और मंदिरों की आय चरम पर, झारखंड भी फायदे में

प्रयागराज महाकुम्भ  से आस्था का उबाल अपने चरम पर है। प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुम्भ काफी खास है। चूंकि यह अवसर 144 वर्षों के बाद आया है, इसलिए इसे पूर्ण महाकुम्भ कहा जा रहा है। दरअसल, 12 पूर्ण कुम्भ के बाद 144 वर्षों के बाद एक पूर्ण महाकुम्भ का आयोजन होता है। यह सिर्फ प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है। 12 राशियों भ्रमण करने के बाद जब पुनः गुरु राशि में वापस आने के बाद पूर्ण महाकुम्भ मनाया जाता है। इसलिए इस बार का महाकुम्भ सनातन आस्था को मानने वालों के लिए बेहद खास है। न सिर्फ खास है, बल्कि इसका लाभ भी दिख रहा है।

सनातन धर्म में महाकुम्भ का क्या महत्व है इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि पूरे 45 दिनों तक चलने वाले इस महाकुम्भ के कारण सिर्फ प्रयागराज में ही नहीं, पूरे देश में लोगों की आस्था अपने चरम पर है। और यह आस्था दिख भी रही है। इस समय देशभर के मंदिरों का माहौल पहले से ज्यादा भक्तिमय हो गया है। यह तय है जब तक महाकुम्भ चलेगा, देशभर के तमाम मंदिरों में विशेष अवसरों पर विशेष आयोजन आयोजित होंगे। इनमें भक्ति अपने उबाल पर नजर आयेगी। ऐसा मकर संक्राति पर देखा भी गया है। इस मकर संक्राति पर पूर्व की तुलना में मंदिरों में लोगों की भीड़ ज्यादा दिखी। मंदिरों में तो लोग ज्यादा उमड़े ही, नदियों, सरोवरों, तालाबों आदि के किनारे कुम्भ के नाम पर आयोजन कर अपनी आस्था को इस तरह प्रदर्शित किया कि उनके लिए कुम्भ यही है।

देश के दूसरे स्थानों और मंदिरों में जो दिख रहा है, वह झारखंड में भी दिखाई पड़ रहा है। महाकुम्भ शुरू होने के बाद से छोटे-बड़े मंदिरों में लोगों आना और भक्ति दिखाना बढ़ा है। मकर संक्रांति के दिन झारखंड के सबसे चर्चित मंदिरों बाबा बैद्यनाथ, बासुकिधाम, छिन्नमस्तिका रजरप्पा, भद्रकाली मंदिर चतरा, रांची के पहाड़ी मंदिर समेत अनेक मंदिरों में विशेष आयोज किये गये और भक्त इन मंदिरों में टूटकर उमड़े।

भक्तों का मंदिरों पर इस प्रकार से उमड़ना मंदिरों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। अभी तो महाकुम्भ की शुरुआत हुई है। और अभी तो सिर्फ मकर संक्रांति बीती है। 26 फरवरी तक हिंदू पंचांग के अनुसार कई महत्वपूर्ण तिथियां आयेंगी और इस तिथियों को मंदिरों में विशेष आयोजन भी किये जायेंगे। विशेष आयोजना पर जब भक्तों का मंदिरों पर आगमन होगा तो जाहिर है कि मंदिरों की आय भी बढ़ेगी। वैसे भी आस्था का सम्बंध अर्थ से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है। यह सिद्धांत आज का नहीं, बल्कि सदियों पुराना है। हमारे पूर्वजों ने ही ऐसी सामाजिक व्यवस्था बना रखी है जिससे कि समाज का पोषण होता रहे और समाज निर्बाध रूप से चलता रहे।

महाकुम्भ तक आने वाली प्रमुख तिथियां

  • 14 जनवरी – पौष पूर्णिमा – महाकुम्भ आरम्भ
  • 15 जनवरी – मकर संक्रांति
  • 17 जनवरी – संकटी चतुर्थी
  • 21 जनवरी – कालाष्टमी
  • 25 जनवरी – षटतिला एकादशी
  • 27 जनवरी – मास शिवरात्रि
  • 29 जनवरी – मौनी अमावस्या
  • 30 जनवरी – गुप्त नवरात्रि आरम्भ
  • 1 फरवरी – गणेश जयंती
  • 2 फरवरी – गणेश चतुर्थी
  • 2 फरवरी – वसंत पंचमी
  • 3 फरवरी – स्कंद षष्ठी
  • 4 फरवरी – नर्मदा जयंती
  • 7 फरवरी – रोहिणी व्रत
  • 8 फरवरी – जया एकादशी
  • 10 फरवरी – प्रदोष व्रत
  • 12 फरवरी – रविदास जयंती
  • 12 फरवरी – कुम्भ संक्रांति
  • 12 फरवरी – माघ पूर्णिमा
  • 13 फरवरी – फागुन आरम्भ
  • 20 फरवरी – कालाष्टमी
  • 24 फरवरी – विजया एकादशी
  • 25 फरवरी – प्रदोष व्रत
  • 26 फरवरी – महाशिवरात्रि

प्रयागराज महाकुम्भ को प्रमुख स्नान

  • 13 जनवरी – पौष पूर्णिमा
  • 14 जनवरी – मकर संक्रांति
  • 29 जनवरी – मौनी अमावस्या
  • 3 फरवरी – वसंत पंचमी
  • 12 फरवरी – माघी पूर्णिमा
  • 26 फरवरी – महा शिवरात्रि

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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