नीति आयोग के सामने मुख्य सचिव अलका तिवारी ने खींची झारखंड के विकास की रेखा

कृषि के क्षेत्र की सम्भावनाएं बतायीं, दलहन उत्पादन पर विशेष फोकस

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के फिर से सत्ता सम्भाल लेने के बाद झारखंड अपने राज्य के विकास को किस तरह से आगे ले जाना चाहता है, इसकी रूपरेखा तीन दिनों की मुख्य सचिवों की सम्पन्न बैठक में देखने को मिली। नीति आयोग द्वारा आयोजित मुख्य सचिवों की बैठक में झारखंड की मुख्य सचिव श्रीमती अलका तिवारी शामिल हुई थीं। झारखंड सरकार की तरफ से इस सम्मेलन की अध्यक्षता मुख्य सचिव अलका तिवारी ने की। बता दें कि मुख्य सचिवों का यह आयोजन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी को सशक्त बनाने के साथ देश में सहकारी संवाद स्थापित करने की अहम कड़ी है

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि झारखंड के 24 वर्षों का सफर तय कर लेने के बाद भी विकास के कई आयाम अभी इससे अछूते हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चाहते हैं कि झारखंड के विकास की गति को आगे बढ़ाया जाये। इन्हीं बातों और मुद्दों को राज्य की मुख्य सचिव ने सम्मेलन में भी प्रमुखता से उठाया। इस सम्मेलन में उन्होंने विकास के लिए राज्य के आत्मनिर्भर होने की प्रक्रिया को रेखांकित किया। चाहे वह कृषि रोजगार हो, शहरी विकास हो, नवीनीकरण ऊर्जा हो, उन्नतशील अर्थव्यवस्था हो, आदि विषयों पर विचार विमर्श किया।

बता दें कि सम्मेलन का विषय जनसांख्यिकी लाभांश का लाभ उठाना और विकास के नए आयामों के मार्ग प्रशस्त करना था।

मुख्य सचिव अलका तिवारी ने राज्य की कृषि से जुड़ा एक बहुत अच्छा मुद्दा उठाया। यह मुद्दा है- दलहन उत्पादन पर प्रदेश की सहभागिता पर विशेष जोर दिया। यह सही है कि झारखंड कृषि के मामले में दूसरे राज्यों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन कृषि की सम्भावनाएं कम नहीं है, हां, इस पर ध्यान कम दिया गया और इस पर शोध कम हुए हैं। यहां बता दें कि राज्य में लातेहार जिले में अरहर की बेहतरीन खेती होती है। पश्चिम सिंहभूम की मसूर दाल की खेती भी ऐसी है। पश्चिम सिंहभूम तो मसूर दाल के कटोरे के रूप में विकसित किया जा सकता है। झारखंड की जलवायु और मिट्टी पूरे राज्य में लगभग एक जैसी है, यानी अगर योजनाद्ध तरीके से  इसे  विकसित किया गया तो दालों पर दूसरे राज्यों की निर्भरता कम होगी और यहां के किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी।

सिर्फ दाल ही नहीं, उत्तम किस्मों के धान  की भी यहां सम्भावनाएं हैं। यहां आलू के उत्पादन के लिए मिट्टी भी उपयुक्त है और जलवायु भी। आलू की खेती पर भी सरकार ध्यान दे और प्रोत्साहन दे तो राज्य और राज्य के किसानों का भला हो सकता है।

कुछ समय पहले तक जब राज्य में नक्सलियों का बोलबाला था, तब यहां की खेती के उजाड़ होने की बात मानी जा सकती है। लेकिन अब नक्सलियों का प्रभाव कम होने के बाद इस ओर ध्यान दिया जा सकता है। हां, एक समस्या अब भी है, वह है अफीम की खेती। नक्सलियों के द्वारा शुरू की गयी अफीम खेती की लत अब भी यहां के ग्रामीणों से छूटी नहीं है, इस पर नियंत्रण का प्रयास करना भी सरकार की जिम्मेदारी है।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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