भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 2024 के लिए चुनावी फॉर्मूले का ऐलान कर दिया है। एनडीए ने चुनाव प्रभारियों मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के साथ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, आजसू प्रमुख सुदेश महतो और आजसू सांसद चन्द्र प्रकाश चौधरी की उपस्थिति में सीट शेयरिंग का खुलासा कर दिया है। इस फॉर्मेले के अनुसार इस बार भाजपा 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं गठबंधन की दूसरी बड़ी पार्टी आजसू 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जदयू को 2 सीटें मिली हैं, वहीं एलजेपी 1 सीट पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ कि कौन-कौन किस सीट पर चुनाव लड़ेगा।
खैर, एनडीए ने यह तय कर लिया है कि वह 2019 वाली गलती नहीं दोहरायेगा। क्योंकि 2019 में अलग-अलग चुनाव लड़ने के कारण सीटों की भारी हानि उठानी तो पड़ी ही थी, सत्ता भी हाथ से निकल गयी थी। अब जबकि यह स्पष्ट हो गया है कि एनडीए एकजुट होकर इस बार चुनाव लड़ेगा। तो एक सवाल भी मन में उठ रहा है कि अगर एनडीए के दलों को पिछली बार जीतना वोट मिला था, अगर उतना प्रतिशत ही वोट उसे इस बार भी मिले तो क्या वह सत्ता तक पहुंच पायेगा? तो पहले यह जान लें कि 2019 में अलग-अलग लड़ते हुए इन्हें कितना प्रतिशत वोट मिले थे।
2019 में भले ही भाजपा सत्ता तक नहीं पहुंच पायी थी, और सीटों के मामले में भी झामुमो के बाद दूसरे नम्बर पर थी। झामुमो को जहां 30 सीटें मिली थीं, वहीं भाजपा 25 सीटें ही जीत पायी थी। फिर भी वोट शेयरिंग के मामले में भाजपा ही सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। भाजपा को कुल 33.37% वोट मिले थे। इस बार की उसकी सहयोगी आजसू, जो कि 2019 में अकेले लड़ी थी, तो 4.54% वोट ला सकी थी। हालांकि आजसू तब 2 सीटें जीतने में सफल रही थी। यहां एक बात यह भी देखने वाली है कि 2019 के चुनाव में वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (JVM) भी अलग लड़ा था। झाविमो को भी 4.42% वोट मिले थे। यानी इन तीनों पार्टियों के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाये तो 42.33% हो जायेगा।
चूंकि एनडीए का मुकाबला इंडी गठबंधन से है तो यह भी देखना होगा की इस गठबंधन को 2019 में कितने प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 में झामुमो को 18.72% प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस 13.88%वोट लेने में सफल रही थी। राष्ट्रीय जनता दल को 2.75% वोट मिले थे। इस बार वाम दल भी इंडी गठबंधन के साथ हैं, इसलिए वाम दलों के 1.15% को भी में जोड़ना होगा। तो इंडी गठबंधन का इस हिसाब से 36.5% वोट बनता है। चूंकि हर चुनाव का गणित अलग होता है इसलिए वोटों में कुछ प्रतिशत का हेरफेर होता ही रहता है। जैसे एनडीए का कुछ प्रतिशत वोट कम हो जाये और इंडी गठबंधन का कुछ प्रतिशत वोट बढ़ जाये। उसी प्रकार एनडीए का वोट प्रतिशत बढ़ सकता है और इंडी गठबंधन का वोट प्रतिशत घट सकता है। वोटों का यह घट-बढ़ चुनाव के नतीजों पर असर तो डालेगा। लेकिन अगर 2019 की तरह ही वोटों का प्रतिशत बना रहा तब भी कहा जा सकता है कि मुकाबला कांटे का ही होगा।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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