यह कैसा सौभाग्य है कि पेरिस में आज से पैरालंपिक खेल स्पर्धाओं की शुरुआत हो रही है और आज ही हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की 119वीं जयंती है। हॉकी के इस जादूगर की खेल का कुछ ऐसा कमाल है कि न सिर्फ ह़ॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, बल्कि उनका जन्मदिन ही भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस बन गया है। चूंकि आज भारत में हॉकी उस मुकाम पर नहीं है जो पहले हुआ करती थी, इसलिए जब भी इस खेल के जादूगर का नाम सामने आता है, हम खेल के उस पुराने इतिहास में पहुंच जाते है जहां दुनिया में भारत की हॉकी परचम लहराया करता था। मेजर ध्यानचंद को देश-विदेश में बहुत सम्मान तो मिला पर यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उन्हें भारत रत्न का सम्मान नहीं दे पाये। नियम बदल कर क्रिकेट के भगवान सचिन तेन्दुलकर को भारत रत्न दिया जा सकता है। लेकिन देश के सबसे बड़े खेल रत्न रत्न का सम्मान करना हम ही भूल गये।
29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में मेजर ध्यानचंद का जन्म हुआ था। मात्र 16 साल की उम्र में ही वह भारतीय सेना में भर्ती हुए। बड़े अचरज की बात है कि सेना में भर्ती होने के बाद उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। अपने खेल को निखारने के लिए ध्यानचंद काफी प्रैक्टिस किया करते थे। अधिकतर वह चांदनी रात में प्रैक्टिस करते थे। रात को उनके प्रैक्टिस सेशन को चांद निकलने से जोड़कर देखा गया। इसलिए उनके साथी खिलाड़ियों ने उनके नाम के आगे ‘चंद’ लगा दिया। उनका असली नाम ध्यान सिंह था, लेकिन बाद में वह ध्यानचंद बन गये।
हॉकी के जादूगर की को सर्वाधिक प्रसिद्धि 1928 के एम्सटर्डम ओलिंपिक खेलों में मिली थी। जहां वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने। पूरे टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने 14 गोल किए थे। उनकी प्रसिद्धि को इस बात से भी आंका जा सकता है कि एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, ‘यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था और तभी से ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।
मेजर ध्यानचंद के साथ एक बड़ी रोचक बात जुड़ी हुई है। तब लोग उनकी हॉकी स्टिक के बारे में सोचते थे कि उनकी स्टिक में चुम्बक तो नहीं लगा है, जो इतने रफ्तार से दनादन गोल कर देते हैं। कहते हैं कि, हिटलर ने खुद ध्यानचंद को जर्मन सेना में शामिल कर एक बड़ा पद देने की पेशकश की थी
सिवाय ध्यानचंद के ऐसा सम्मान किसी भी भारतीय खिलाड़ी को नसीब है कि जिसके नाम पर कोई खेल सम्मान खिलाड़ियों को दिया जाता है। ध्यानचंद के जन्मदिन पर देश में खेल रत्न अवॉर्ड दिये जाते हैं। पहले इसका नाम राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड था, लेकिन 2021 में इस पुरस्कार का नाम बदला गया और भारत के महान खिलाड़ी के नाम पर रखा गया।
न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार
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