X पर दिखी चम्पाई की पीड़ा! झामुमो से जुदा होने के बाद किस ओर जायेंगे पूर्व सीएम के कदम, सामने तीन विकल्प!

Champai's pain was visible on X! Where will the former CM go after separating from JMM

शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर झामुमो को राजनीतिक फलक देने का काम करने वाले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री आज खुद राजनीति के ऐसे दोराहे नहीं, बल्कि तिराहे पर खड़े हैं जहां से उन्हें यह कर करना है कि अब उनकी अगली मंजिल क्या होगी। लेकिन उसके लिए यह विचार करना होगा कि आखिर यह नौबत क्यों आयी। सभी जानते हैं कि चम्पाई सोरेन झामुमो और शिबू परिवार के काफी वफादार सिपाही रहे हैं। अगर आज वह अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं तो यह छोटी बात नहीं हैं।

पिछले कुछ दिनों से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता चम्पाई सोरेन के पार्टी छोड़ने की अटकलें लग रही है। इसे चम्पाई सोरेन द्वारा स्वीकार नहीं किया गया तो खंडन भी नहीं किया गया। अटकलें यह भी लग रही थी कि चम्पाई सोरेन भाजपा में शामिल हो सकते हैं। लेकिन चम्पाई अचानक दिल्ली पहुंच गये और उनका एक पोस्ट X पर वायरल हुआ तो राजनीतिक हलकों में तूफान-सा खड़ा हो गया।

चम्पाई सोरेन ने इस पोस्ट में झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में अपने इस्तीफे से पहले की घटनाओं को याद किया और अपमानजनक अनुभवों की एक शृंखला के रूप में वर्णित अपनी निराशा व्यक्त की। इसके साथ ही चम्पाई सोरेन ने अपने लिए तीन विकल्पों को भी रखा। एक है कि राजनीति से संन्यास लेना। हालांकि इसकी सम्भावना बेहद कम है। वह इसलिए कि जिस समय उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगायी जा रही थीं, उस समय जब इस सम्बंध में उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि उनका राजनीतिक करियर काफी लम्बा है। उनका विकल्प है किसी पार्टी में शामिल हो जाना। कांग्रेस और राजद में तो वह  शामिल हो नहीं सकते, क्योंकि ये दोनों पार्टियां इंडी गठबंधन की सरकार में शामिल हैं। इसलिए भाजपा में शामिल होने की सम्भावना तो बनती है, लेकिन उनके मन में और क्या है, यह तो वही बता सकते हैं। तीसरे विकल्प के बारे में चम्पाई सोरेन अपनी अलग पार्टी बनाने की बात कहते हैं, हालांकि झामुमो से अलग होने के बाद उनके लिए नयी पार्टी के साथ चलना और उसे स्थापित करना बड़ी चुनौती होगी, लेकिन राजनीति में सबके अपने नफा-नुकसान होते हैं।

 X पर चम्पाई सोरेन ने झलकायी अपनी पीड़ा

पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं?दो दिन तक चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा। पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?

अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा या नहीं लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा। उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।

31 जनवरी को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तीन जुलाई तक मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।

जब सत्ता मिली तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा-बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान मैंने कभी भी किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच हूल दिवस के अगले दिन मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा तीन जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।

क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा लेकिन उधर से साफ इंकार कर दिया गया।

जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है। बाकी लोग जूनियर हैं और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? यदि वे सक्रिय होते तो शायद अलग हालात होते। कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था। बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था। इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था।

पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है। कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने को मजबूर हो गया। मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में यदि कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।

एक बात और, यह मेरा निजी संघर्ष है। इसलिए इसमें पार्टी के किसी सदस्य को शामिल करने या संगठन को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिस पार्टी को हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, उसका नुकसान करने के बारे में तो कभी सोच भी नहीं सकते लेकिन हालात ऐसे बना दिए गए हैं।

न्यूज डेस्क/ समाचार प्लस – झारखंड-बिहार

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